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उन्होंने आगे बताया था, ‘जब तक हम असम के डिब्रूगढ़ पहुंचे, तब तक हमारा समूह घटकर आधा रह गया था. कुछ बीमार पड़ गए थे और पीछे रह गए थे, कुछ भूख और बीमारी से मर गए थे. रास्ते में मेरी मां का गर्भपात हो गया था. बचे हुए लोगों को इलाज के लिए डिब्रूगढ़ अस्पताल में भर्ती कराया गया था. मां और मैं लगभग कंकाल बन गए थे और मेरे भाई की हालत गंभीर थी. हमने दो महीने अस्पताल में बिताए. जब हम ठीक हो गए, तो हम कलकत्ता (अब कोलकाता) चले गए, और दुख की बात है कि मेरे भाई की चेचक के कारण वहां मृत्यु हो गई.’