Amalaki Ekadashi 2025: जगत के पालनहार भगवान विष्णु को एकादशी व्रत बेहद प्रिय है. पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति एकादशी व्रत करता है उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है, संसार के सभी दोष, दुख, रोग से मुक्ति पाकर वो मोक्ष को जाता है.
फाल्गुन में होली से पहले आने वाले एकादशी को आमलकी और रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है. आमलकी एकादशी व्रत का पुण्य एक सहस्र गौदान के फल के समान है. इस व्रत में कथा का पाठ जरुर करे, तभी इसकी पुण्य की प्राप्ति होती है. इस साल आमलकी एकादशी 10 मार्च 2025 को है.
आमलकी एकादशी की संपूर्ण कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में वैदिक नाम का एक नगर था. उस नगर में ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, शूद्र, चारों वर्ण के मनुष्य प्रसन्तापूर्वक निवास करते थे. उस नगर में चैत्ररथ नामक चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था. वह उच्चकोटि का विद्वान तथा धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था, उसके राज्य में कोई भी निर्धन एवं लोभी नहीं था.
एक बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आमलकी नामक एकादशी आयी. उस दिन राजा एवं प्रत्येक प्रजाजन, वृद्ध से बालक तक ने आनन्दपूर्वक उस एकादशी को उपवास किया. उस मन्दिर में रात को सभी ने जागरण किया. रात के समय उस स्थान पर एक बहेलिया आया. वह महापापी तथा दुराचारी था.
अपने कुटुम्ब का पालन वह जीव-हिंसा करके करता था. वह भूख-प्यास से अत्यन्त व्याकुल था, कुछ भोजन पाने की इच्छा से वह मन्दिर के एक कोने में बैठ गया.
उस स्थान पर बैठकर वह भगवान विष्णु की कथा तथा एकादशी माहात्म्य सुनने लगा। इस प्रकार उस बहेलिये ने सम्पूर्ण रात्रि अन्य लोगों के साथ जागरण कर व्यतीत की. प्रातःकाल सभी लोग अपने-अपने निवास पर चले गये. इसी प्रकार वह बहेलिया भी अपने घर चला गया और वहाँ जाकर भोजन किया. कुछ समय व्यतीत होने के पश्चात उस बहेलिये की मृत्यु हो गयी.
हालाँकि, जीव-हिंसा करने के कारण वह घोर नरक का भागी था, परन्तु उस दिन आमलकी एकादशी व्रत तथा जागरण के प्रभाव से उसने राजा विदुरथ के यहाँ जन्म लिया. उसका नाम वसुरथ रखा गया. बड़ा होने पर वह चतुरङ्गिणी सेना सहित तथा धन-धान्य से युक्त होकर दस सहस्र ग्रामों का संचालन करने लगा. वह प्रजा का समान भाव से पालन करता था। दान देना उसका नित्य का कर्म था.
एक समय राजा वसुरथ शिकार खेलने के लिये गया. दैवयोग से वन में वह रास्ता भटक गया. वह एक वृक्ष के नीचे सो गया. डाकू वहां आए और कहने लगे कि, “इस दुष्ट राजा ने हमारे माता-पिता, पुत्र-पौत्र आदि समस्त सम्बन्धियों को मारा है तथा देश से निकाल दिया. अब इससे बदला लेना चाहिए. डाकुओं ने राजा पर आक्रमण किया. वह अस्त्र-शस्त्र राजा के शरीर से स्पर्श होते ही नष्ट होने लगे इसके बाद डाकू स्वंय मूर्च्छित हो गये.
उसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य देवी प्रकट हुई. उसने देखते-ही-देखते उन सभी डाकुओं का समूल नाश कर दिया. राजा डाकुओं को मृत देख आश्चर्य में पड़ गया. उस समय आकाशवाणी हुयी – “हे राजन! इस संसार में भगवान विष्णु के अतिरिक्त तेरी रक्षा कौन कर सकता है!”
महर्षि वशिष्ठ ने कहा- “हे राजन! यह सब आमलकी एकादशी के व्रत का प्रभाव था, जो मनुष्य एक भी आमलकी एकादशी का व्रत करता है, वह प्रत्येक कार्य में सफल होता है तथा अन्त में वैकुण्ठ धाम को पाता है.
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