सोनभद्र/एबीएन न्यूज। उत्तर प्रदेश रेशम उत्पादन के क्षेत्र में लगातार नए आयाम स्थापित कर रहा है। कृषि आधारित कुटीर उद्योगों में रेशम उत्पादन एक प्रमुख स्थान रखता है और प्रदेश की जलवायु, भौगोलिक स्थिति व जैव विविधता इसे अत्यंत उपयुक्त बनाते हैं। राज्य में शहतूती, टसर और एरी—तीनों प्रकार के रेशम का उत्पादन होता है जो कि कुल 57 जनपदों में संचालित है।
मुख्य बिंदु:
- क्षेत्रीय अनुकूलता: शहतूती रेशम के लिए मैदानी व तराई क्षेत्र, टसर के लिए विन्ध्य व बुन्देलखण्ड, और अरण्डी (एरी) रेशम के लिए यमुना के समीपवर्ती जनपद उपयुक्त हैं।
- कीटपालन फसलें: शहतूती में 4, अरण्डी में 3 और टसर में 2 फसलें प्रतिवर्ष ली जाती हैं।
- औद्योगिक विकास: 7 जनपदों में रीलिंग इकाइयां स्थापित की गई हैं, जिससे किसानों को उचित मूल्य मिल रहा है।
- डिजिटल पहल: इच्छुक लाभार्थी अब रेशम मित्र पोर्टल पर ऑनलाइन पंजीकरण कर योजनाओं का लाभ ले सकते हैं।
- महिला सशक्तिकरण: पिछले 5 वर्षों में 5000 स्वयं सहायता समूहों की 50000 महिलाओं को “रेशम सखी” के रूप में जोड़ा गया है।
- राज्य पोषित योजनाएं: पहली बार “मुख्यमंत्री रेशम विकास योजना” के तहत ₹100 लाख का बजट 14 जनपदों में स्वीकृत किया गया है।
- टेक्नोलॉजी और पहचान: “Soil to Silk” प्रदर्शन व सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के माध्यम से शुद्ध सिल्क की पहचान का कार्य प्रगति पर है।
- ई-मार्केटिंग: sericulture.eservicesup.in पोर्टल पर ककून की पारदर्शी बिक्री की सुविधा शुरू कर दी गई है।
- पुरस्कार और प्रोत्साहन: 8 श्रेणियों में रेशम से जुड़े श्रेष्ठ व्यक्तियों को मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।
- वृक्षारोपण: एग्रोफॉरेस्ट्री के तहत सोनभद्र में 1.12 लाख टसर वृक्षों का रोपण 60 हेक्टेयर क्षेत्र में किया गया।
- उत्पादन में वृद्धि: वर्ष 2023-24 की तुलना में 2024-25 में रेशम उत्पादन में 10% की वृद्धि दर्ज की गई है।
रेशम विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम न केवल किसानों को सशक्त बना रहे हैं, बल्कि महिलाओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर भी अग्रसर कर रहे हैं। इन योजनाओं से जुड़कर ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक बदलाव संभव हो रहा है।