इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2008 के रामपुर सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर हुए आतंकी हमले से जुड़े एक महत्वपूर्ण फैसले में, निचली अदालत की ओर से चार दोषियों को दी गई मौत की सज़ा और एक दोषी को दी गई आजीवन कारावास की सज़ा को पलटते हुए सभी पांच आरोपियों को बरी कर दिया है। यह फैसला जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने फैसला सुनाया।
यह मामला 31 दिसंबर 2007 की रात और 1 जनवरी 2008 की सुबह रामपुर CRPF ग्रुप सेंटर गेट नंबर-1 पर हुए आतंकी हमले से संबंधित है। इस हमले में सात सीआरपीएफ जवान (कांस्टेबल आनंद कुमार, हवलदार ऋषिकेश राय, हवलदार अफ़ज़ल अहमद, हवलदार रामजी सरन मिश्रा, कांस्टेबल मनवीर सिंह, कांस्टेबल देवेंद्र कुमार, और कांस्टेबल विकास कुमार) और एक रिक्शा चालक (किशन लाल) की मौत हो गई थी।
निचली अदालत का फैसला
निचली अदालत, अतिरिक्त ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश, रामपुर ने इस मामले में मोहम्मद शरीफ़, सबाउद्दीन, इमरान शहज़ाद, और मोहम्मद फ़ारूक को हत्या और अवैध हथियार रखने सहित अन्य गंभीर धाराओं में दोषी ठहराया था और उन्हें मौत की सज़ा सुनाई थी। वहीं, जंग बहादुर ख़ान को आजीवन कारावास की सज़ा दी गई थी। जांच में गंभीर खामियां पाते हुए सभी दोषियों की अपीलें स्वीकार कर लीं। कोर्ट ने पाया कि जांच में कई गंभीर त्रुटियां थीं, जिन्होंने मामले की जड़ को प्रभावित किया। अभियोजन पक्ष मुख्य अपराधों के लिए आरोपियों के खिलाफ़ उचित संदेह से परे मामले को साबित करने में विफल रहा। जांच एजेंसियों ने मालखाने में हथियारों और गोला-बारूद के सुरक्षित रखरखाव से जुड़े सरकारी निर्देशों का पालन नहीं किया।
इन कारणों के आधार पर, हाईकोर्ट ने अपीलें स्वीकार कर लीं और सभी पाँचों आरोपियों को हत्या, आतंकवादी गतिविधियों और अन्य गंभीर धाराओं से बरी कर दिया। हालांकि, न्यायालय ने उन्हें आर्म्स एक्ट की धारा 25(1-ए) के तहत दोषी माना। कोर्ट ने राज्य सरकार को जांच में हुई लापरवाही के लिए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ कानून के तहत कार्रवाई करने की छूट दी है।











