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राजधानी लखनऊ में लोकसभा की दो सीट हैं। आमतौर पर वोट डालने में ग्रामीण मतदाता शहरी से ज्यादा जागरूकता दिखाते हैं। लखनऊ में यह चलन कुछ अलग तरह से नजर आता है। शुरुआती छह लोकसभा चुनाव में शहरी मतदाताओं ने ग्रामीण सीट के मुकाबले ज्यादा मतदान किया। इसके बाद अब लगातार मोहनलालगंज सीट के मतदाता ज्यादा मतदान करते नजर आ रहे हैं।
पहले लोकसभा चुनाव में राजधानी में लखनऊ संसदीय सीट के अलावा बाराबंकी को शामिल करते हुए ग्रामीण सीट थी। तब लखनऊ सीट पर महज 42.03 फीसदी और ग्रामीण सीट पर 34.10 फीसदी मतदान हुआ। वर्ष 1957 में हुए अगले चुनाव में लखनऊ में सिर्फ एक ही सीट थी। और इस पर कुल 45.12 फीसदी मतदान हुआ।
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लखनऊ की सीट पर आज तक नहीं हुआ 60% मतदान : देश की राजनीति की दिशा प्रदेश से तय होती है। इसके बावजूद यहां के राजधानीवासी मतदान में हमेशा पिछड़े ही रहे हैं। यही वजह है कि आजादी के बाद आज तक किसी भी चुनाव में लखनऊ सीट पर एक भी बार 60 फीसदी आंकड़ा पार नहीं हुआ है। सबसे ज्यादा 58.49 फीसदी मतदान वर्ष 1962 के चुनाव में हुआ था। मोहनलालगंज सीट पर जरूर पिछले दो चुनाव में मतदान प्रतिशत ने साठ फीसदी का आंकड़ा पार किया है।
1977 तक ग्रामीणों पर भारी रहे शहरी मतदाता
वर्ष 1962 के चुनाव में लखनऊ सीट पर 58.49 और मोहनलालगंज सीट पर 46.20 फीसदी मतदान हुआ। वर्ष 1977 के चुनाव तक वोट देने में शहरी मतदाता ग्रामीणों पर भारी रहे। इसके बाद स्थिति बदली और मोहनलालगंज के मतदाताओं ने बढ़त बना ली। इस बीच वर्ष 1996 ही ऐसा चुनाव रहा, जिसमें लखनऊ के मतदाताओं ने मतदान प्रतिशत के मामले में बढ़त ली। यह सुखद रहा और जागरूकता में भी आगे बढ़ाया।