Atal Bihari Vajpayee
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मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक कागज के टुकड़ों की अहम भूमिका होती है। इन्हीं कागज के टुकड़ों से रिश्ते जुड़ते हैं और कई बार टूट जाते हैं। राजनीति के क्षेत्र में भी कागज के टुकड़ों पर भविष्य तय होते हैं और इसी से कर्मस्थली से नाता टूट भी जाता हैं, लेकिन यह कम लोगों को पता होगा कि इसी कागज की पर्ची के खेल से अटल बिहारी वाजपेयी का बलरामपुर से नाता टूट गया था।
साल 1957 में पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी अविभाजित गोंडा जिले के बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े। तब उनकी पार्टी अखिल भारतीय जनसंघ का चुनाव निशान दीपक था और पार्टी ने कागज पर फरमान जारी कर उन्हें सिंबल प्रदान किया था।
वह जब चुनाव जीते तो निर्वाचन आयोग की ओर से कागज पर ही जीत का प्रमाण पत्र दिया गया। इन्हीं कागजों से उनका बलरामपुर से रिश्ता जुड़ गया था। साल 1962 में हारने के बाद उन्होंने 1967 में जीत हासिल की तब भी कागज के पन्ने पर ही जीत का प्रमाण पत्र मिला था, लेकिन 1971 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और जनसंघ ने उन्हें ग्वालियर से चुनाव लड़ाने का फैसला किया।
अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर से लड़ाने की बात बलरामपुर तक पहुंची तो आनन-फानन में कार्यकर्ताओं ने बैठक कर तय किया कि संघ के निर्णय का विरोध होगा और अटल जी को बलरामपुर से ही लड़ाया जाएगा।