यह सहारनपुर के गुरु नानक इंटर कॉलेज के मतदान केंद्र की तस्वीर है। यह सवेरे 9.30 बजे का हाल है। यह हाल उसे जिले है का जहां पहले चरण की आठ सीटों में सबसे ज्यादा मतदान हुआ।
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मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए अभियान चलाए गए। पर, पहले चरण के मतदान में ये प्रयास सफल नहीं हो सके। मतदान 5.4 फीसदी कम हो गया। सियासी पंडित इसके पीछे तमाम वजहें गिना रहे हैं। गेहूं की कटाई, सहालग और गर्म हवा के थपेड़े तो जिम्मेदार माने ही जा रहे हैं, स्थानीय राजनीतिक कारणों के चलते भी मतदाताओं में उत्साह नहीं दिखा। हालांकि मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा ने कहा, अगले चरणों में मतदान बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे। पहले से किए जा रहे उपायों को और भी प्रभावी बनाएंगे।
मुरादाबाद : एसटी हसन का टिकट कटने से कम दिखा उत्साह
2019 में लोकसभा चुनाव लिए 12 मार्च को आचार संहिता लागू हुई थी। मुरादाबाद में मतदान 23 अप्रैल को हुआ था। इस बार आचार संहिता 18 मार्च को लागू हुई और मतदान 19 अप्रैल को हुआ। दोनों चुनावों में गर्मी कमोबेश एक जैसे ही रही। पिछली बार करीब 66 प्रतिशत मतदान हुआ था और इस बार 62 प्रतिशत। सियासी पंडितों का मानना है कि ऐसे में मतदान पर मौसम का असर पड़ने की दी जा रही दलील उतनी सही नहीं है। उनका मानना है कि इस बार कहीं कोई लहर नहीं थी, इसलिए मतदाता सुस्त रहे।
- भाजपा प्रत्याशी कुंवर सर्वेश कुमार चुनाव के दौरान बीमार हो गए और शनिवार को उनका निधन हो गया। भाजपा के चुनाव का संचालन पार्टी के साथ ही उनके बेटे विधायक सुशांत सिंह कर रहे थे। वहीं, दूसरी तरफ सपा में सांसद डॉ.एसटी हसन का टिकट कटने के बाद बिजनौर की रहने वाली रुचि वीरा को टिकट मिला। एसटी हसन फैक्टर की वजह से मुस्लिम मतदाताओं में भी उदासीनता दिखी।
- राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर है। बसपा प्रत्याशी इरफान सैफी की परफॉर्मेंस जीत-हार का फैसला करेगी।
रामपुर : घरों से कम ही निकले आजम समर्थक मुस्लिम मतदाता
रामपुर सीट पर 55.75 फीसदी मतदान हुआ, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 64.40 फीसदी मतदान हुआ था। आजम खां की अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी मौलाना मोहिब्बुल्लाह नदवी को लेकर नाराजगी और चुनाव बहिष्कार की अपील को भी राजनीतिक विश्लेषक कम मतदान से जोड़कर देख रहे हैं। उनकी दलील है कि नराजगी की वजह से आजम समर्थकों ने मतदान से परहेज किया। सपा के कई पदाधिकारियों ने भी मतदान से दूरी बनाए रखी। शुक्रवार को अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस था, जबकि पिछले चुनाव में यहां का तापमान 40 डिग्री से नीचे रहा था। शहरी सीट पर मतदाताओं ने कम दिलचस्पी दिखाई।
पीलीभीत : प्रत्याशियों के बाहरी होने से बेरुखी
मतदान के मामले में पीलीभीत पंद्रह साल पीछे चला गया। सीट पर मतदान प्रतिशत 63.11ही रहा। यह 2019 के मुकाबले 4.30 प्रतिशत कम है। वर्ष 2014 में यहां 62.86 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार के मतदान से अधिक वोट वर्ष 2009 और 1984 में पड़े थे। गर्म हवा के थपेड़ों, प्रशासन के प्रयासों में कमी और वरुण गांधी के समर्थकों की कम सक्रियता को सियासी पंडित कम मतदान की वजह मान रहे हैं। पिछले 35 वर्षों से पीलीभीत सीट पर मेनका और वरुण गांधी का कब्जा रहा है।
- इस बार भाजपा ने वरुण की जगह जितिन प्रसाद को मैदान में उतारा। ऐसे में गांवों में वरुण के समर्थकों ने बूथों से दूरी बनाई। जितिन और सपा के भगवत सरन गंगवार दोनों जिले के बाहर के हैं। जमीनी स्तर पर पकड़ नहीं बन पाने के कारण भी मतदाताओं ने कम उत्साह दिखाया। हालांकि, विश्लेषक जितिन और गंगवार के बीच सीधा मुकाबला मान रहे हैं। उनका मानना है कि बसपा अपनी जगह नहीं बना पाई है।
कैराना : बूथ तक नहीं ला सके वोटर को
कैराना में पिछली बार के मुकाबले पारा नीचे होने के बावजूद मतदान प्रतिशत कम रहा। कैराना सीट पर इस बार 62.46 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि वर्ष 2019 में 67.44 प्रतिशत हुआ था। वर्ष 2019 में मतदान के दिन अधिकतम तापमान 38 डिग्री सेल्सियस था। इस बार 19 अप्रैल को यहां अधिकतम तापमान 36 डिग्री सेल्सियस रहा।
- गेहूं की कटाई करने, मजदूरों के ईंट-भट्ठों पर काम के लिए जाने के कारण भी मतदान प्रतिशत प्रभावित हुआ। गेहूं कटाई और ईंट भट्ठों पर काम कर रहे मजदूरों को लाने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। गंगोह, नकुड़ और थानाभवन में ठाकुर मतदाताओं की नाराजगी का भी असर दिखा। इन इलाकों में पहले की अपेक्षा कम मतदान हुआ।
बिजनौर : भाजपा की बूथ कमेटियों में नहीं दिखा पहले जैसा उत्साह
बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में इस बार करीब 7 प्रतिशत कम मतदान हुआ है। इसके पीछे प्रमुख कारणों में गर्मी के साथ ही शहरी मतदाताओं की उदासीनता व कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी को भी माना जा रहा है। बिजनौर में रालोद से चंदन चौहान प्रत्याशी हैं। भाजपा का सिंबल नहीं होने से पार्टी की बूथ कमेटियों में उत्साह कम नजर आया। मतदाताओं को घर से बुलाकर वोट डलवाने में पीछे रहे।
- ग्रामीण इलाकों में तमाम मतदाता गेहूं की कटाई में व्यस्त दिखे। मीरापुर, पुरकाजी और हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र में ऐसे नजारे खूब दिखे। बिजनौर विधानसभा क्षेत्र के रामसहायवाला बूथ पर दिन में बहिष्कार के चलते महज 3.76 प्रतिशत मतदान ही हो सका। वहीं, मीरापुर विधानसभा क्षेत्र में चंदेड़ा और भोपा क्षेत्र के पित्ता गांव में बहिष्कार के चलते मतदान नहीं हुआ। सड़क नहीं बनने से यहां लोग नाराज थे। यह बूथ करीब छह हजार मतदाताओं का था।
नगीना : स्थानीय नेताओं में नाराजगी से कम हुआ मतदान
नगीना में इस बार 60.72 प्रतिशत ही मतदान हुआ, जबकि पिछली बार 63.53 प्रतिशत हुआ था। हालांकि, यहां मतदान प्रतिशत गिरने में अहम वजह गर्मी के तल्ख तेवर को माना जा रहा है। भाजपा और सपा से कई नेता टिकट मांग रहे थे। जानकारों का कहना है कि टिकट नहीं मिलने से ये नेता दूसरे को चुनाव लड़ाने में उत्साहित नजर नहीं आए। सपा के उम्मीदवार गांव-गांव पहुंच नहीं बना सके, तो भाजपा के उम्मीदवार से कई जगहों पर नाराजगी भी दिखी।
मुजफ्फरनगर : कार्यकर्ताओं के दिल न मिलने से आई दिक्कत
मुजफ्फरनगर में इस बार गेहूं की कटाई का कार्य 2019 के मुकाबले अधिक चल रहा है। पछुआ हवा से गेहूं की फसल जल्दी पकी और मौसम विभाग ने 19 अप्रैल को बारिश होने की आशंका भी जताई थी। ऐसे में किसान-मजदूर फसल को संभालने में जुटे रहे। वर्ष 2019 की बात करें तो तब एक तरफ अजित सिंह और दूसरी तरफ केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान थे। प्रतिष्ठा का चुनाव होने से दोनों ही दलों ने पूरी ताकत झोंक दी थी। इस बार ऐसा प्रतिष्ठा का सवाल नहीं था।
सहारनपुर : कई गांवों में कम निकले मतदाता
सहारनपुर लोकसभा सीट पर इस बार 66.65 प्रतिशत मतदान हुआ। 2019 में यहां 70.87 प्रतिशत मतदान हुआ था। 2019 और इस बार मतदान के दिन तापमान कमोबेश बराबर ही रहा।
- मुस्लिम मतदाताओं ने जमकर मतदान किया। कांग्रेस व बसपा से मुस्लिम और भाजपा की तरफ से हिंदू प्रत्याशी मैदान में हैं। भाजपाई खेमा हिंदू बहुल ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं को घरों से बाहर नहीं निकाल सका। इसकी वजह राजपूत समाज की नाराजगी भी मानी जा रही है।
कम मतदान से सभी दलों के माथे पर बल
पहले चरण में मतदान प्रतिशत का गिरना सभी दलों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है, हालांकि सार्वजनिक तौर पर वे यही कह रहे हैं कि इसका नुकसान प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी को होगा। बहरहाल इंडिया और एनडीए अपना-अपना मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए बूथ स्तर पर अधिक सक्रिय हो गए हैं। उनके प्रतिनिधियों के बयान तो कम से कम यही बता रहे हैं। अब यह तो आने वाले चरणों का मतदान ही बताएगा कि वे अपने प्रयासों में कितना सफल हुए। पर, मतदान प्रतिशत गिरने का यह सिलसिला जारी रहा तो इससे राजनीतिक दलों का समीकरण जरूर गड़बड़ाएगा।
अंतर्विरोध के कारण विपक्ष के मतदाता बाहर नहीं निकले
मतदान प्रतिशत भले ही घटा हो, भाजपा के मतदाता बढ़े हैं। विपक्ष के मतदाताओं में उत्साह की कमी रही। विपक्ष द्वारा थोपे गए बाहरी प्रत्याशियों को लेकर नाराजगी भी एक वजह है। कई जगह अंतर्विरोध के कारण विपक्ष के समर्थक मतदाता बाहर नहीं निकले।
आगे क्या : प्रत्येक बूथ को मतदाता बढ़ाने के दिए गए लक्ष्य की समीक्षा की जाएगी। मतदाता चाहे किसी दल का समर्थक हो, उसे मतदान के लिए प्रेरित किया जाएगा।
-जेपीएस राठौर, सह संयोजक, भाजपा प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति
भाजपा से लोग नाराज, इसलिए कम पड़े वोट
भाजपा शासन की विफलता के चलते ही तमाम लोग मतदान के प्रति उदासीन हुए हैं। इसका सीधा नुकसान भाजपा को होगा। सपा के समर्थक मतदाताओं को प्रशासन ने रोका। उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया, लेकिन इससे हमारे समर्थकों का संघर्ष का माद्दा बढ़ा है।
आगे क्या : विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिले मतों के आधार पर हर बूथ को हरे, पीले या नीले रंग में बांटा गया है। स्थानीय संगठन को सक्रिय कर दिया गया है।
-राजेंद्र चौधरी, मुख्य प्रवक्ता सपा
नहीं चला ध्रुवीकरण, मतदाता हो चुका है निराश
चुनाव में जब दो पक्षों में सीधी लड़ाई होती है, तो एक पक्ष की वोटिंग देखकर दूसरा भी निकलता है। इस बार कहीं भी धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं दिख रहा है। मोदी से लोगों का मोह भंग हो रहा है। मुद्दों की बात नहीं होने से भी लोग निराश हैं और मतदान के लिए नहीं निकल रहे हैं।
चुनाव में जब दो पक्षों में सीधी लड़ाई होती है, तो एक पक्ष की वोटिंग देखकर दूसरा भी निकलता है। इस बार कहीं भी धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं दिख रहा है। मोदी से लोगों का मोह भंग हो रहा है। मुद्दों की बात नहीं होने से भी लोग निराश हैं और मतदान के लिए नहीं निकल रहे हैं।
अजय राय, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस
जाट और क्षत्रियों की नाराजगी से कम मतदान
बसपा का पूरा वोट पार्टी को मिला है। कम मतदान की वजह पश्चिमी उप्र में जाट और क्षत्रिय समुदाय की नाराजगी है। वहीं सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने से दोनों दलों के कार्यकर्ता निराश हैं।
-विश्वनाथ पाल, प्रदेश अध्यक्ष, बसपा