सांकेतिक तस्वीर…
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गन्ना किसान राजनीति का बड़ा मुद्दा रहा है। पश्चिम से लेकर पूरब तक गन्ना राजनीति के केंद्र में रहा है। समय से भुगतान, बकाये पर ब्याज, गन्ना मूल्य और चीनी मिलों की मनमानी से उपजी नाराजगी का असर गन्ना बेल्ट की राजनीति पर साफ दिखता है। पिछले छह सालों में गन्ने से लेकर चीनी उत्पादन तक को पारदर्शी बनाने के लिए उठाए गए कदमों ने यहां की राजनीति पर भी असर डाला।
किसानों को मेहनत का सही दाम मिले और चीनी मिलें भी फायदे में चलें, इसे ध्यान में रखकर कई फैसले लिए गए। एथेनाॅल इंडस्ट्री ने तो गन्ना किसानों और चीनी मिलों के लिए ‘टॉनिक’ का काम किया है। एथेनाॅल से मिलों का मुनाफा बढ़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि किसानों को जल्द भुगतान होने लगा। इस बीच किसानों की मांग पर 20 रुपये रेट बढ़ाए गए। मुनाफा बढ़ने की वजह से ही गन्ने का रकबा भी बढ़ गया। या यूं कहें कि पश्चिम में जैसे-जैसे गन्ना मजबूत हुआ, भाजपा भी मजबूत होती गई। गन्ना किसानों की नाराजगी सुरेश राणा को भारी पड़ी थी। वजह थी शामली में चीनी मिल का देरी से भुगतान करना। हालांकि, अब भुगतान समय से हो रहा है। आज देश में चीनी उत्पादन में यूपी ने महाराष्ट्र को पीछे छोड़ दिया है। छह साल में रिकाॅर्ड 682 लाख टन से ज्यादा चीनी उत्पादन किया गया।
गन्ना बकाये को तकरीबन हर चुनाव में मुद्दा बनाया जाता रहा है। किसान आंदोलित होते थे और सरकार तरह-तरह की सफाई देती थी। वर्ष 2018 से गन्ने के पूरे अर्थशास्त्र को डिजिटल करने की शुरुआत की गई। नतीजतन सहकारी केंद्रों में गन्ना बेचने के लिए जरूरी पर्ची लेने के लिए जो मारामारी मची रहती थी, अब वह नहीं है। चीनी मिलों की घटतौली पर अंकुश लगा। किसान को केवल गन्ना पैदा करना है। मार्केटिंग यानी बेचने की जिम्मेदारी सरकार ने ले ली। एक खेत में कितना गन्ना होगा और कब बेचा जाएगा, सब कुछ एप पर ही आ रहा है। करीब 48 लाख किसान एप से जुड़े हैं। उनके पास गन्ने के उत्पादन से लेकर पैसा ट्रांसफर तक का डाटा होता है।
एथेनाॅल का उत्पादन 42 करोड़ लीटर से पहुंचा 175 करोड़ लीटर
गन्ना चीनी के अलावा तमाम कीमती उत्पादों का जरिया है। शोध में पाया गया है कि गन्ने के 82 फीसदी हिस्से से तमाम उत्पाद और केमिकल बन सकते हैं। इससे चीनी का हिस्सा केवल 18 फीसदी रह जाएगा। इस दिशा में प्रदेश सरकार ने उल्लेखनीय काम किए हैं। पिछले सात साल में एथेनाॅल बनाने में सबसे ज्यादा प्रोत्साहन दिया गया। गन्ने से ब्यूटाइल एल्डिहाइड जैसे कीमती केमिकल उत्पाद बन सकते हैं।
- गन्ने के ऊपर लगा गोंद खाद्य होता है। फलों को चमकदार बनाने के लिए इसकी पाॅलिश की जाती है
- पैरासिटामाॅल चीन से आयात होती है। ये भारत में एथेनाॅल से बनाया जा सकता है
- एथेनाॅल को पेट्रोल केे विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है। प्रदेश में 81 डिस्टिलरी हैं। 64 एथेनाॅल बनाती हैं
- वर्ष 2016-17 में कुल एथेनाॅल उत्पादन 42.70 करोड़ लीटर था। जो आज 175 करोड़ लीटर से ज्यादा हो गया है
छह साल में ऐसे बदला गन्ने का अर्थशास्त्र
गन्ना ऐसी फसल है, जो कटते ही सूखनी शुरू हो जाती है। जितनी जल्दी गन्ना चीनी मिल पहुंचेगा, उतना ही ज्यादा शीरा मिलेगा। ज्यादा शीरा यानी ज्यादा चीनी और ज्यादा मुनाफा। उधर, किसान का खेत भी जल्द खाली हो जाएगा और गेहूं समय से बोया जा सकेेगा। जल्दी गन्ना बिकने से किसानों को 7 फीसदी वजन ज्यादा मिला।
पहले गन्ने के खेतों की नपाई और उत्पादन के अनुमान का काम मैनुअल था। 2018 के बाद इसे पूरी तरह डिजिटाइज किया गया। कागजी खेल पर लगाम कसी। हैंडहेल्ड डिवाइस की मदद से हर खेत की डिजिटल नापजोख और अनुमानित उत्पादन का डाटा तैयार हो रहा है। पहले गन्ने की तौल चीनी मिलें करती थीं। अब किसानों को अपना गन्ना केवल केंद्र तक लाना होता है। वहां डिजिटल तौल के साथ मिल में गन्ना पहुंचाने की तारीख सब मोबाइल एप में मिल जाती है। इस वजह से पहले मिलों में गन्ना बेचने के लिए पर्ची की जो मारामारी रहती थी, वह अब खत्म हो गई है। फोन पर ई पर्ची दिखाकर नियत तारीख पर गन्ना बेचने किसान पहुंच जाते हैं। मिल पर पहुंचने के बाद अधिकांश मामलों में समय से भुगतान सीधे खाते में आता है। किस किसान के खाते में, कब, कितना भुगतान आया, इसका ब्योरा भी एप पर रहता है।
फर्जी लेनदेन हुआ बंद
25 साल पहले पर्ची का काम सहकारी समितियों से लेकर चीनी मिलों को दिया गया। इसका जमकर दुरुपयोग हुआ। गन्ना माफिया पैदा हो गए। अब ये काम चीनी मिलों से लेकर पुन: सहकारी समितियों को दे दिया गया। इसका असर यह हुआ कि 14 लाख नए किसान सदस्य बने। इससे फर्जी लेनदेन बंद हो गए।
इस तरह बदली तस्वीर
- वर्तमान में 46 लाख से ज्यादा गन्ना किसानों को 2.14 लाख करोड़ से ज्यादा भुगतान
- प्रदेश में पहली बार विभागीय व चीनी मिल अफसरों के संयुक्त हस्ताक्षर से चीनी मिलों के खुलवाए गए एस्क्रो अकाउंट
- चीनी मिलों ने चीनी, खोई व प्रेसमड (गन्ना रस की मैल) बिक्री से प्राप्त रकम का 85 फीसदी इसी एस्क्रो अकाउंट में जमा होगा। एस्क्रो अकाउंट से किसानों को भुगतान में देरी पर अंकुश के साथ कीमतें बेहतर हुईं
- 2016-17 में औसत गन्ना उत्पादकता 72.38 मी. टन थी। आज 83.95 मी. टन। किसानों को 25 फीसदी की अतिरिक्त आमदनी
यहां के गन्ने से सबसे ज्यादा निकलती है चीनी, गन्ना मूल्य उसी अनुपात में बढ़े
ब्रिटिश शासन ने 1932 में शुगर कंट्रोल एक्ट लागू किया। इसके तहत केवल लाइसेंसधारी ही चीनी मिल लगा सकते थे। इसके पीछे केवल ब्रिटिश उद्योगपति और अंग्रेजों के कृपापात्र भारतीयों को ही लाभ देने की नीति थी। एकाधिकार के दुष्परिणाम सामने आए। गन्ने का उत्पादन तो बढ़ा, पर मनमानी भी बढ़ गई। वे मनमाने दाम पर गन्ना खरीदते थे। मनमर्जी से पेमेंट करते थे। 1954 में उत्तर प्रदेश शासन ने गन्ना क्रय अधिनियम पारित किया। इसमें प्रावधान किया गया कि मिल में गन्ना सप्लाई के 14 दिन के अंदर भुगतान कर दिया जाएगा। वरना 12 फीसदी ब्याज दिया जाएगा। भुगतान नहीं करने पर मिल के चीनी स्टाॅक को जब्त कर लिया जाएगा। उसे बेचकर पैसा किसानों को देने का अधिकार राज्य सरकार को दिया गया। अगर ये रकम भी पर्याप्त न हो तो चीनी मिल की संपत्ति तक बेचने का प्रावधान किया गया।
मैं 1998 में लोकसभा पहुंचा और कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। संसद की खाद्य मंत्रालय की स्थायी समिति ने भी चीनी मिल लाइसेंस प्रणाली से मुक्त करने की सिफारिश की। वाजपेयी सरकार ने इसे लागू किया और चीनी उद्योग लाइसेंस से मुक्त हो गया। इसमें एक प्रावधान जोड़ दिया कि 15 किलोमीटर के दायरे में दूसरी मिल नहीं लग पाएगी। 2500 टन से बड़ी मिल होगी तो क्षेत्रफल दोगुना हो जाएगा।
- पहले चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक महाराष्ट्र था। पिछले तीन साल से उत्तर प्रदेश नंबर वन है। पहले महाराष्ट्र से चीनी की औसत रिकवरी 12 फीसदी और यूपी की 10 फीसदी थी। महाराष्ट्र में जहां चीनी की रिकवरी घट गई, वहीं यूपी में बढ़कर 12 फीसदी हो गई। पंजाब और हरियाणा में चीनी की रिकवरी 9-10 फीसदी है। पिछले दस वर्ष से चल रही गन्ना बकाये के भुगतान की समस्या का समाधान जल्द निकाला जाए। रिकवरी के अनुपात में गन्ना मूल्य भी बढ़े।
सोमपाल शास्त्री, पूर्व कृषि मंत्री और पूर्व सदस्य, योजना आयोग
पहले दो-दो साल में पेमेंट होता था
गन्ने में दो ही समस्याएं थीं- एक तो रेट और दूसरा लेट पेमेंट। लेट पेमेंट पर ब्याज के मुद्दे पर तीस साल से आवाज उठा रहा हूं। हमारी दलील है कि जब किसान गन्ना लगाने के लिए वित्तीय संस्थानों से ब्याज पर पैसा लेता है, तो लेट पेमेंट पर किसान को ब्याज क्यों न मिले? नौ जनवरी 2014 को हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि ब्याज देना पड़ेगा लेकिन अखिलेश सरकार ने मिल मालिकों का 2000 करोड़ का ब्याज ही माफ कर दिया।
वर्ष 2018 पर अवमानना का केस लड़ा। कोर्ट ने घाटे वाली मिलों को 7 फीसदी और फायदे वाली मिलों को 12 फीसदी ब्याज देने का आदेश दिया। हमें 12 फीसदी नहीं बल्कि 15 फीसदी ब्याज चाहिए। आज भी इसका इंतजार है। गन्ने का रेट बढ़ाने का अधिकार हमने दिलवाया है। चीनी मिलों ने बढ़े रेट पर भुगतान करने से इन्कार कर दिया था। तब अखिलेश सरकार थी। इस मुद्दे पर राजनीति गरमा गई। मांग की गई कि अगर चीनी मिल बंद होती है, तो खेत में खड़े गन्ने का पैसा किसान को मिलना चाहिए। किसानों को पैसा इसीलिए जल्दी मिल रहा है। 6 अगस्त 2012 को हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि अगर किसान को गन्ने का भुगतान समय से नहीं होगा, तो लोन न चुकाने पर बैंक आरसी नहीं काट सकता। चीनी मिलें इसी डर से समय से भुगतान कर रही हैं। पहले दो-दो साल तक किसानों को पेमेंट नहीं होता था।
-वीएम सिंह, संयोजक, राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन