अमर उजाला ग्राउंड रिपोर्ट
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मुकाबला कांटे का है। एक तरफ कांग्रेस के पुश्तैनी नेता गनी खान के देसी-जमीनी वारिस ईशा तो दूसरी तरफ विदेश में पढ़े-लिखे तृणमूल कांग्रेस से दावेदार शाहनवाज रेहान। सीधे मुकाबले का रूप बदलती श्रीरूपा। कोई भी दावेदार किसी से कम दमदार नहीं। गनी का गुनगान हुआ, तो बाजी ईशा के हाथ लगेगी, भाजपा को हराने में तृणमूल पर भरोसे वाली राज्यव्यापी हवा यहां भी चली तो शाहनवाज बन सकते हैं शाह और अगर हिंदू वोट एकतरफा भाजपा को गया व मुस्लिम वोट मुस्लिम उम्मीदवारों में बंट गए तो जीत श्रीरूपा का श्रीवरण कर सकती है। मोदी ने शुक्रवार को यहां जनसभा में आए लोगों से उन्होंने दो असर डालने वाली बातें कहीं। पहली, घर लौटकर घरवालों से मेरा राम-राम कहना और आपका वोट सीधे मेरे खाते में जाएगा।
भाजपा को ध्रुवीकरण की उम्मीद
यहां की सात विधानसभा सीटों में से छह पर तृणमूल का कब्जा है। भाजपा बस इंग्लिश बाजार सीट जीतने में सफल रही। 2019 में भाजपा इस संसदीय सीट पर मात्र आठ हजार वोटों से हार गई। हाशिम खान को 34.73% मत मिले, तो भाजपा की श्रीरूपा मित्रा चौधरी को 34.09%। कुल मतदान हुआ 81.24%। 2014 में भी भाजपा दूसरे स्थान पर रही। मुस्लिम बहुल क्षेत्र में इस बार माहौल बदला-सा है।
हर उम्मीदवार अपने आप में खास
42 साल के शाहनवाज रेहान ऑक्सफोर्ड से पढ़े हैं। कट्टर इस्लामिक छवि है, मुस्लिम आक्रांताओं की खुलकर तारीफ करते हैं, आतंकवादियों पर नरम रुख दिखाते हैं। नागरिकता कानून के खिलाफ लंदन में भारतीय दूतावास के बाहर भारत विरोधी और आजादी के नारे लगाए। मार्क्स और मुहम्मद पर लंदन से डीफिल कर रहे हैं। जय भीम-जय मीम का नारा देकर दलितों को अपनी तरफ लाने की कोशिश कर रहे हैं।
बीमार मौजूदा सांसद हाशिम
खान के बेटे ईशा खान चौधरी शाहनवाज से कतई इतर नजर आते हैं। प्रचार में राममंदिर चले जाते हैं, तिलक भी लगवा लेते हैं। सवाल करो तो कहते हैं-राम किसी की जागीर थोड़े ही हैं। ये तो हमारी रिवायत है। चचा गनी खान खुद परचा दाखिल करने से पहले मंदिर जाते थे, पूजा करते थे। श्रीरूपा मित्रा चौधरी निर्भया दीदी के नाम से जानी जाती हैं। मोदी ने भी उनके इस रुतबे का जिक्र किया। महिला अत्याचार के खिलाफ बनी गुलाबी गैंग की संस्थापक और सरपरस्त श्रीरूपा के प्रचार का अलग रंग है-सब कुछ गुलाबी। प्रचार की गाड़ी, समर्थक महिलाएं…सब। महिलाओं के बीच अच्छा जनाधार है। तीन तलाक कानून के बाद अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के वोट मिलने की उम्मीद लगाए हैं।
मालदा में 1957 के बाद से ही कांग्रेस बरकत साहब की बदौलत जीतती चली आ रही है। बरकत यानी कांग्रेस के धाकड़ नेता पूर्व रेल मंत्री स्वर्गीय अबू बरकत अताउर गनी खान चौधरी। 2006 में नहीं रहे, तो भाई अबू हाशिम खान यहां से सांसद चुने जाते रहे हैं। मालदा दक्षिण जिला उत्तर बंगाल में जाने का प्रवेश द्वार है। यह जिला कभी बंगाल की राजधानी हुआ करता था। मालदा से ही गंगा नदी इस राज्य में आती है। पहले इसे इंग्लिश बाजार के नाम से जाना जाता था। आम, जूट व सिल्क उत्पादन के लिए मशहूर जिले में करीब 60% मुस्लिम वोटर हैं।
गनी के कराए काम भतीजे के नाम
इंग्लिश बाजार विस क्षेत्र के हैंटोकाली मंदिर से थोड़ा आगे मुख्य मार्ग पर एक दुपहिया मरम्मत सेंटर पर विप्लव पोद्दार और मोमिन इस्लाम गपियाते मिले। बातचीत में दोनों तृणमूल समर्थक निकले। चुनाव की चर्चा पर बोले, गनी खान का कराया काम उनके भतीजे को जिता देगा। यहां वोटर उनके लिए वफादार है। दोनों अब्दुल गनी खान चौधरी के काम गिनाते हैं-महानंदा नदी पर पुल बनवाया, कई सड़कें बनवाई। रेलमंत्री रहते लोगों को खूब नौकरियां दीं, लोग उपकृत हैं और खानदानी कांग्रेसी वोटर भी। हां, विप्लव यह मानते हैं कि तृणमूल के कार्यकर्ता गुंडागर्दी करते हैं।
- 26 साल के श्रीयन दास कहते हैं- दीदी का उम्मीदवार ठीक नहीं। दूसरा होता तो वोट देते। मालदा का आम दीदी को विधानसभा चुनाव में खाने को दिया था, इस बार मोदी को देंगे।
- राजीव चौधरी कहते हैं, श्रीरूपा की छवि ठीक नहीं है। मिलने जाओ तो फरियादी को मोबाइल बाहर रखकर अंदर जाना होता है। बहुत एटीट्यूड है।
- शहर के करीब पांच किमी दूर कोतवाली ग्राम सभा के पूर्व प्रधान अचिंतन बोस 25 साल से कांग्रेस से जुड़े थे, अब भाजपा में है। कहते हैं, लोग रूपा के नाम पर नहीं, मोदी को देखकर वोट देंगे।
यह था 2019 का जनादेश
कांग्रेस के अबू हाशिम खान चौधरी 4.44 लाख वोटों से जीते। भाजपा की श्रीरूपा मित्रा चौधरी को 4.36 लाख वोट मिले थे। तृणमूल के एमडी मोअज्जम हुसैन को तीन लाख 51 हजार 353 वोट मिले थे।
n सीट बरकरार रखना कांग्रेस के लिए करो या मरो जैसा है। तृणमूल प्रत्याशी अगर मुस्लिमों के ज्यादा वोट झटक ले गया, तो ईशा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। वैसे, अंदरखाने तृणमूल व कांग्रेस में समझौते की चर्चा है कि दक्षिण में तृणमूल कांग्रेस को जीतने दे, उत्तर
में कांग्रेस का अहसान तृणमूल उतार देगी। मालदा में माहौल इस बार बदला दिख रहा है। 17 अप्रैल को रामनवमी जुलूसों की धूम रही। इधर तीन-चार साल से ये ज्यादा निकलने लगे हैं और साल दर साल आकार में बड़े होते जा रहे हैं। हालांकि ये हिंदू बहुल इलाकों में ही निकलते हैं, कहीं कोई झगड़ा नहीं होता।