लोकसभा चुनाव 2024
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कैंट विधानसभा क्षेत्र, जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि इस विधानसभा क्षेत्र के एक बड़ा भू-भाग सेना का छावनी क्षेत्र है। यहांं के अधिकांश हिस्से का विकास कार्य छावनी बोर्ड के माध्यम से कराया जाता है। 2012 में परिसीमन के बाद पुनर्गठित हुई इस मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने भाजपा विरोधी पार्टियों को ही सिर आंखों पर बैठाया है।
चूंकि, इस सीट पर भाजपा जहां सिकुड़ती जा रही है, वहीं कांग्रेस और सपा का ग्राफ बढ़ रहा है। इस बार दोनों पार्टियों का गठबंधन है, ऐसे में भाजपा के लिए जहां इस सीट पर बढ़त बनाना चुनौती है। वहीं, कांग्रेस के लिए यह बढ़त पाने का मजबूत केंद्र बन गया है। क्षेत्र के लोगों से हुई बातचीत से भी जो तस्वीर निकलकर सामने आई है उससे यह साफ है कि लोगों ने अपना मन पहले ही बना लिया है। हालांकि कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। मतदाताओं का कहना हैं कि चुनाव मुद्दे पर नहीं जज्बातों पर लड़े जा रहे हैं। इस क्षेत्र में लोकसभा चुनाव में भाजपा को विपक्ष की तुलना में 15 से 20 हजार वोट कम मिलते हैं।
नेतृत्व बदला पर समस्याएं जस की तस
समस्या की दृष्टि से देखे तो यहां के बाबूपुरवा रेलवे कालोनी, सुजातगंज, लेबर कालोनी में पानी की आपूर्ति और जलभराव के अलावा खस्ता हाल सड़कों की समस्या आए दिन बनी रहती हैं। इसके पीछे स्थानीय मतदाताओं के विकास की बजाय अन्य मुद्दों को चुनाव के समय तवज्जो देना तो एक कारण है। साथ ही सरकार के विपक्ष का विधायक होना भी क्षेत्र के विकास की राह में रोड़े अटकाता है। 2012 में सपा की सरकार के दौरान भाजपा के रघुनंदन भदौरिया जीते जबकि 2017 में कांग्रेस-सपा के सोहिल अंसारी और 2022 में सपा के मो. हसन रूमी भाजपा की प्रदेश सरकार के समय जीते। इससे विकास की रफ्तार अन्य क्षेत्रों की तुलना में इस क्षेत्र में सुस्त रही है।