दाल के दाम
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आम आदमी की थाली की अब दाल भी महंगी होने जा रही है। दालों की कीमतों में कम से कम अगले पांच माह तक कमी के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। इसके पीछे सबसे अहम कारण दालों की सप्लाई और डिमांड में अंतर बताया जा रहा है। ज्यादा डिमांड और कम सप्लाई के चलते दालों की कीमत बढ़ रही है। हालांकि, सरकार दालों की कीमतों को नीचे लाने के लिए प्रयास कर रही है।
दरअसल, दालों की बढ़ते दाम सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है। क्योंकि पिछले 11 महीने से दालों की महंगाई दर दोहरे अंक में है। जानकारों का भी कहना है कि, वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही के अंत तक दालों के दाम कम होने की संभावना है। अप्रैल में दालों की महंगाई दर 16.8 फीसदी दर्ज की गई। इसमें अरहर दाल की महंगाई दर 31.4 फीसदी, चना 14.6 फीसदी और उड़द 14.3 फीसदी दर दर्ज की गई थी। इसके चलते अप्रैल में खाद्य मुद्रास्फीति पिछले महीने के 8.5 फीसदी से बढ़कर 8.7 फीसदी पर पहुंच गई थी।
बाजार के जानकारों का कहना है कि अरहर, चना और उड़द की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए सरकार कई कदम उठा रही है। बावजूद इसके दालों के दाम बढ़े हुए हैं। अक्तूबर महीने में जब बाजार में दाल की नई फसल की आवक शुरू होगी, तभी कीमतों में कमी देखी जाएगी। पिछले साल भी अरहर दाल का उत्पादन कम था। जिसके चलते स्टॉक भी कम हुआ था। इससे कीमतों पर असर देखा जा रहा है।