देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ में पहली बार किसी डीजी ने ग्राउंड कमांडरों यानी सहायक कमांडेंट के दिल की बात सुनी है। मंगलवार को सीआरपीएफ डीजी अनीश दयाल सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए 250 से अधिक ग्राउंड कमांडरों से बातचीत की। इस बातचीत का सिलसिला सुबह साढ़े दस बजे शुरू हुआ और रात आठ बजे तक चलता रहा। 10 घंटे तक चले डीजी संवाद के दौरान 250 से अधिक ग्राउंड कमांडरों ने अपने दिल की बात कही। सहायक कमांडेंट बोले, ‘प्रमोशन में विलंब है अभिशाप’। अधिकांश युवा ग्राउंड कमांडरों ने पदोन्नति सहित कई दूसरे मुद्दे उठाए। खास बात ये रही कि उन्होंने जवानों के कल्याण से जुड़े विभिन्न मुद्दों को भी डीजी के समक्ष रखा। डीजी अनीश दयाल सिंह ने भी खुले दिल से सभी की बात सुनी और उनकी समस्याओं को जल्द से जल्द सुलझाने का आश्वासन दिया है। कैडर अधिकारियों की पदोन्नति से जुड़े मामले को लेकर जो कमेटी गठित की गई है, उसकी रिपोर्ट एक जून तक जमा करा दी जाएगी। उसके बाद युवा कैडर अधिकारियों की पदोन्नति से जुड़े मामले की फाइल आगे बढ़ सकती है।
सहायक कमांडेंट को 15 साल में मिल रही पहली पदोन्नति
‘सीआरपीएफ’ के डीजी अनीश दयाल सिंह ने 28 मई को ‘ग्राउंड कमांडर’ के साथ बातचीत की है। सीआरपीएफ मुख्यालय से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुए ‘संवाद’ में महानिदेशालय में कार्यरत डीआईजी एवं इससे उच्च रैंक वाले कई अधिकारियों ने भाग लिया। आरएएफ, कोबरा, वीएस विंग व एनएस के आईजी सहित कई दूसरे वरिष्ठ अधिकारी भी ‘संवाद’ का हिस्सा बने। यूपीएससी के माध्यम से सीधी भर्ती के जरिए सीआरपीएफ में बतौर ‘सहायक कमांडेंट’ के पद पर ज्वाइन करने वाले अधिकारियों ने ‘डीजी संवाद’ के दौरान अपने मन की बात कही। सहायक कमांडेंट ने खुल कर अपनी बात रखी। वजह, ये अधिकारी पदोन्नति एवं वित्तीय मामले में बहुत अधिक पिछड़ चुके हैं। सहायक कमांडेंट को पहली पदोन्नति यानी डिप्टी कमांडेंट तक पहुंचने में ही लगभग 15 साल लग रहे हैं। फिलहाल के वर्षों में जो ‘डीएजीओ’ फोर्स में आ रहे हैं, उनके लिए तो पदोन्नति की दूरी और ज्यादा बढ़ती जा रही है। एक अधिकारी ने पदोन्नति के मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए खुद को अभिशापित अधिकारी बता दिया। हतोत्साहित ग्राउंड कमांडरों से हुए संवाद के बाद डीजी सीआरपीएफ ने उन्हें आश्वासन दिया है कि उनके इस मुद्दे का जल्द ही हल निकाला जाएगा।
केस जीतने के बाद भी विभाग ने नहीं सुनी
संवाद के दौरान सामने आया है कि नियमों की गलत व्याख्या के कारण कैडर अधिकारियों को पदोन्नति सहित कई लाभों से वंचित रखा गया है। उन्हें मजबूरन, अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। कैडर अधिकारियों द्वारा कोर्ट का रुख किए जाने के मामले में डीजी ने मुख्यालय के अफसरों को नियमों की सही व्याख्या के लिए निर्देशित किया है। साथ ही महानिदेशक ने आपसी बातचीत और मध्यस्थता से न्यायिक मामलों में कमी लाने का भी आश्वासन दिया है। बता दें कि नियमों के अनुसार वित्तीय लाभ, मकान भत्ता, राशन मनी, डिटैचमेंट अलाउंस व ओल्ड पेंशन आदि न मिलने के कारण कैडर अधिकारियों द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट का रुख कर वहां से केस जीतने के बाद भी विभाग अपने ही अधिकारियों के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में रिव्यू पिटीशन एवं सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर रहा है। कुछ मामलों में कैडर अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट से केस जीतने के बाद भी उसका लाभ लेने के लिए अवमानना याचिका दाखिल करनी पड़ती है।
किसी डीजी ने इस तरह का संवाद नहीं किया
सूत्रों का कहना है कि बल के सहायक कमांडेंट रैंक के अधिकारियों का धैर्य अंतिम पायदान पर पहुंच चुका है। यही वजह रही कि सहायक कमांडेंट रैंक के अधिकारियों ने संवाद के दौरान डीजी के समक्ष अपनी व्यथा और आक्रोश, दोनों जाहिर कर दिए। पहली पदोन्नति 15 साल में, इस बात को लेकर ग्राउंड कमांडर बहुत दुखी नजर आए। सीआरपीएफ देश का सबसे बड़ा केंद्रीय अर्धसैनिक बल है। असिस्टेंट कमांडेंट रैंक के अधिकारी इस बल में ग्राउंड कमांडर्स के तौर पर कश्मीर से लेकर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र सरीखे नार्थ ईस्ट में शांति स्थापित करने में सीधे तौर पर अपनी भूमिका निभाते हैं। सीधे अधिकारी वर्ग में सेवा देने के लगभग 15 साल के बाद भी सहायक कमांडेंट रैंक के अधिकारी अपने पहले प्रमोशन का इंतजार कर रहे हैं। इसके बावजूद ग्राउंड कमांडर, बढ़ती जिम्मेदारियों और विभिन्न प्रकार के परिचालनिक दबावों में भी अपने दायित्वों को बखूबी निभा रहे हैं। अदालत से जीते हुए केस में भी विभाग अपने ही अधिकारियों के खिलाफ अदालत में एसएलपी दायर कर रहा है, इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया। डीजी सीआरपीएफ ने गंभीरता से सभी पहलुओं को सुना। उन्होंने अधिकारियों को आश्वासन दिया है कि सभी मुद्दों पर विचार कर उनका निवारण करने में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी। एक दशक में पहली बार किसी डीजी ने इस तरह का संवाद आयोजित किया है।
ग्राउंड कमांडरों ने उठाए ये मुद्दे
अधिकांश ग्राउंड कमांडरों ने पदोन्नति का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, बल में पदोन्नति को लेकर ‘स्थिरता’ का माहौल बन गया है। युवा अधिकारी, ग्राउंड कमांडर की जॉब छोड़कर निजी क्षेत्र का रूख कर रहे हैं। उन्हें वित्तीय फायदों से भी वंचित किया जा रहा है। खास बात यह रही कि सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट ने केवल अपनी पदोन्नति से जुड़े मुद्दों पर ही फोकस नहीं किया, बल्कि उन्होंने जवानों के हितों एवं कल्याण के लिए भी आवाज उठाई। वे बोले, मिनिस्ट्रियल स्टाफ में सामान्य ड्यूटी वाले जवानों की हिस्सेदारी बढ़ाई जाए। जवानों और अफसरों के लिए एमबीए जैसे प्रोफेशनल कोर्स शुरू किए जाएं। ग्राउंड कमांडरों ने फोर्स में बढ़े रहे आत्महत्या के मामलों पर भी गहरी चिंता जताई है। इस बाबत एक ठोस नीति बनाकर, प्रभावी तरीके से ऐसे मामलों का क्रियान्वयन जरूरी है। विभिन्न यूनिटों, बटालियनों और सेक्टरों पर जवानों के रहने के लिए बेहतर मूलभूत सुविधाओं की आवश्यकता है। जवान अपने परिवार के साथ कुछ समय व्यतीत कर सकें, इसके लिए बल के शीर्ष नेतृत्व को कारगर कदम उठाने होंगे। सहायक कमांडेंट के अन्य मुद्दों में तात्कालिक राहत के लिए लोकल रैंक प्रदान करना और कंपनी कमांडर को कुछ मामलों में वित्तीय अधिकार देना, आदि मुद्दे भी उठाए गए। सहायक कमांडेंट ने डीजी के समक्ष स्वास्थ्य सुविधाओं का मुद्दा भी उठाया। अभी आयुष्मान भारत कार्ड के तहत रेफरल को लेकर कई तरह की दिक्कतें सामने आ रही हैं। डीजी ने ग्राउंड कमांडरों को आश्वस्त किया है कि इस मामले में काम जारी है।
ओजीएएस को सही मायने में लागू करें
जवानों के लिए लांस नायक व नायक का मुद्दा उठाया गया। ड्रोन एवं दूसरी आईटी तकनीक का अधिक इस्तेमाल हो। एचआरए और राशन मनी को आयकर के दायरे से बाहर रखा जाए। जहां पर अधिकारी या जवान का परिवार रहता है, वहां का एचआरए मिले। सहायक कैडर को मुख्य कैडर से पहले पदोन्नति मिल रही है, इस मामले को गंभीरता से देखा जाए। ओजीएएस को सही मायने में लागू किया जाए। ‘एनएफएफयू’ को सच्ची भावना के साथ दें। मेडिकल कैडर के अधिकारियों के अनुरूप, सहायक कमांडेंट को एनएफएफयू का लाभ मिले। इसमें कोई भेदभाव न हो। सेकंड इन कमांड पोस्ट तक, रैंक को डी लिंक करना, समय अनुसार पदोन्नति मिले, भले ही ड्यूटी चाहे जो भी मिले। डीजी ने कहा, उनके मामले में कार्यवाही होगी, लेकिन उन्हें दूसरी सेवाओं से तुलना करने की आवश्यकता नहीं है। सीआरपी की जगह पर सीआरपीएफ शब्द का इस्तेमाल किया जाए। रिस्क अलाउंस टैक्स फ्री हो। ब्रीफकेस अलाउंस और अतिरिक्त एचआरए मिले। अधिक से अधिक स्टेटिक लोकेशन पर तैनाती हो। सीआरपीएफ की वीआईपी सिक्योरिटी विंग को स्पेशल अलाउंस दिया जाए। सभी तरह के भत्तों के लिए यूनिट को हेडक्वार्टर माना जाए। रेजिडेंसी क्लॉज समाप्त हो। बल में शीर्ष पदों पर कैडर अधिकारियों की तैनाती हो।
हितों के लिए लेनी पड़ रही अदालत की शरण
सीआरपीएफ में युवा अफसरों द्वारा फोर्स को छोड़ने के मामलों में तेजी देखी जा रही है। समय पर पदोन्नति न मिलने के कारण अनेक कैडर अधिकारियों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है। कैडर समीक्षा रिपोर्ट भी आगे नहीं बढ़ पा रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सभी कैडर अफसरों को पदोन्नति एवं वित्तीय फायदे नहीं मिल सके हैं। कैडर अफसरों को अपने हितों से जुड़े मामलों में अदालत की शरण लेनी पड़ रही है। सूत्रों का कहना है कि संवाद के दौरान ‘सहायक कमांडेंट’ अपने करियर से जुड़े कई अहम प्वाइंट, डीजी के समक्ष रख सकते हैं। इनमें पहला और सबसे मुख्य प्वाइंट तो पदोन्नति, एनएफएफयू और कैडर रिव्यू का है। 2019 के बाद इस मुद्दे पर कई कमेटियों का गठन हो चुका है, लेकिन अभी तक मामला अधर में लटका है। सीआरपीएफ के ‘सहायक कमांडेंट’ भले ही आतंकियों व नक्सलियों से निपटने, राष्ट्रीय आपदा, चुनाव और कानून व्यवस्था सुधारने में अव्वल रहते हों, मगर वे तरक्की के मोर्चे पर लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। सहायक कमांडेंट को पहली पदोन्नति मिलने में ही करीब 15 साल लग रहे हैं। इससे बल में ग्राउंड कमांडरों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। कैडर अधिकारियों को ओजीएएस और एनएफएफयू की मूल भावना को लेकर संघर्ष करना पड़ रहा है। एनएफएफयू का फायदा, सभी कैडर अधिकारियों को नहीं मिल सका है।
मार्च में गठित हुआ ‘बोर्ड ऑफ ऑफिसर’
इन समस्याओं का हल खोजने के लिए सीआरपीएफ डीजी ने मार्च में कैडर अधिकारियों का ‘बोर्ड ऑफ ऑफिसर’ गठित किया था। ‘बोर्ड ऑफ ऑफिसर’ द्वारा तीन माह में अपनी रिपोर्ट, बल मुख्यालय को सौंपी जानी थी। सीआरपीएफ की 48वीं बटालियन के कमांडेंट वी शिवा रामा कृष्णा की अध्यक्षता में 11 अधिकारियों का एक बोर्ड गठित किया गया था। इस बोर्ड को सीआरपीएफ मुख्यालय को कैडर अधिकारियों की पदोन्नति में आई स्थिरता को लेकर अपने सुझाव देने के लिए कहा गया था। पदोन्नति में किन कारणों से देरी हो रही है, स्थिरता को कैसे दूर किया जाए और सरकार के नियमों के मुताबिक वित्तीय अपग्रेडेशन को किस तरह से बढ़ाया जाए, आदि बातों पर ‘बोर्ड ऑफ ऑफिसर’ को एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई। बोर्ड के अन्य सदस्यों में अमित चौधरी, कमांडेंट सीआरपीएफ अकादमी, त्रिलोक नाथ सिंह टूआईसी 5वीं बटालियन, टूआईसी संजय गौतम 51वीं बटालियन, मनोरंजन कुमार टूआईसी 194वीं बटालियन, पंकज वर्मा डिप्टी कमांडेंट ट्रेनिंग ब्रांच ‘मुख्यालय’, विवेक कुमार डीसी रांची, पुश्कर सिंह डीसी आरटीसी अमेठी, अरुण कुमार राणा सहायक कमांडेंट 75वीं बटालियन, मितांशु चौधरी एसी 103 आरएएफ और विनोद कुमार एसी 139वीं बटालियन, शामिल हैं।
तीन पदों पर प्रमोशन लेना बहुत मुश्किल
सीआरपीएफ कैडर अधिकारियों का कहना है कि ‘सहायक कमांडेंट, डिप्टी कमांडेंट और सेकेंड इन कमांड’ इन तीन पदों पर प्रमोशन लेना बहुत मुश्किल हो गया है। सहायक कमांडेंट को पहली पदोन्नति मिलने में 15 साल से ज्यादा समय लग रहा है। अगर यूं ही चलता रहा, तो उन्हें कमांडेंट तक पहुंचने में 25 साल लग जाएंगे। मतलब रिटायरमेंट की दहलीज पर जाकर, उन्हें बटालियन को कमांड करने का मौका मिल सकेगा। ग्राउंड कमांडरों का तर्क है कि वे बल की तरफ से हर छोटा बड़ा जोखिम उठाते हैं। सभी तरह के ऑपरेशन को लीड करते हैं। यूपीएससी से नियुक्ति मिलने के बावजूद प्रमोशन में वे पिछड़ जाते हैं। अभी तक 2009 बैच के सहायक कमांडेंट, पहले प्रमोशन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। ये तो प्रमोशन का मौजूदा हाल है। अगर कैडर रिव्यू में कुछ नहीं होता है, तो 3-4 साल बाद कमांडेंट बनने में 25 से 30 साल लगेंगे। कैडर अधिकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार की 55 संगठित कैडर वाली सेवाओं में अधिकतम बीस साल बाद सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड मिलता है। इसके बाद आईएएस अधिकारी जेएस रैंक पर और आईपीएस, आईजी के पद पर चला जाता है। लिहाजा ये कॉडर सर्विस हैं, इसलिए इनमें टाइम बाउंड प्रमोशन यानी एक तय समय के बाद पदोन्नति मिल जाती है। इन सेवाओं में रिक्त स्थान नहीं देखा जाता। जगह खाली हो या न हो, मगर तय समय पर प्रमोशन जरूर मिलता है।
सीट खाली है तो ही मिलेगी पदोन्नति
सीआरपीएफ में प्रमोशन उस वक्त होता है, जब सीट खाली होती है। अगर किसी फोर्स में एक साथ कई बटालियनों का गठन होता है, तो ही प्रमोशन की कुछ संभावना बनती है। इसे नॉन प्लान ग्रोथ कहा जाता है। डीओपीटी ने इस बाबत भी दिशा निर्देश जारी कर कहा था कि किसी भी फोर्स में नॉन प्लान ग्रोथ नहीं होगी। जो भर्ती होगी, वह प्लांड वे से ही की जाएगी। 2001 और 2010 में भर्ती नियमों को बदला गया, लेकिन उनमें इतनी ज्यादा विसंगतियां थी कि उससे कैडर अफसरों को फायदा होने की बजाए नुकसान हो गया। सीआरपीएफ के सभी कैडर अधिकारियों को ओजीएएस और एनएफएफयू की मूल भावना के अंतर्गत फायदा नहीं मिल पा रहा है। नियमों की अवहेलना हो रही है।