आपराधिक कानून (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत किसी संज्ञेय अपराध को रोकने वाले कानूनी निर्देशों का विरोध करने या अवहेलना करने वाले व्यक्ति को पुलिस हिरासत में ले सकती है। बीएनएसएस में ‘पुलिस की निवारक कार्रवाई’ में धारा 172 के रूप में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है।
नए प्रावधान में स्पष्ट कहा गया है कि लोगों को संज्ञेय अपराध की रोकथाम के लिए जारी पुलिस के निर्देशों का पालन करना होगा। यह प्रावधान पुलिस अधिकारी को ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेने और मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने या छोटे मामलों में व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर रिहा करने की अनुमति देता है। बीएनएसएस के अंतर्गत, पुलिस अधिकारियों को गैरकानूनी जमावड़े को तितर-बितर करने के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेट के आदेश पर कर्तव्यों का पालन करने में लापरवाही के मामले में संरक्षण दिया गया है। ऐसे मामलों में सरकार की मंजूरी के बिना पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। नए आपराधिक कानून में यह भी अनिवार्य कर दिया गया है कि पुलिस अधिकारी को तीन साल से कम कारावास की सजा वाले अपराधों और आरोपी के अशक्त या 60 वर्ष से अधिक आयु के मामले में गिरफ्तारी के लिए पुलिस उपाधीक्षक या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी से अनुमति लेनी होगी।
गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर किसी भी मजिस्ट्रेट कोर्ट में किया जा सकता है पेश
बीएनएसएस की धारा 58 के तहत पुलिस कर्मी अब गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर किसी भी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर सकते हैं, भले ही न्यायिक अधिकारी के पास क्षेत्राधिकार न हो।
नए कानूनों के हिंदी, संस्कृत नामों के खिलाफ याचिका पर केंद्र को नोटिस
मद्रास हाईकोर्ट ने नए कानूनों के हिंदी और संस्कृत नामों के खिलाफ याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है। याचिका में हिंदी और संस्कृत भाषाओं में नामकरण को संविधान के विरुद्ध घोषित करने की मांग की गई है।