रामेश्वर महादेव का मंदिर।
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काशी की पंचक्रोशी यात्रा का तीसरा पड़ाव रामेश्वर एक अलग पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है। यहां स्थित रामेश्वर महादेव मंदिर में सावन के महीने में दर्शन-पूजन के लिए असंख्य श्रद्धालु आते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि ब्रह्म हत्या के दोष से बचने के लिए काशी में पंचक्रोशी यात्रा पर आए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने हाथों से वरुणा नदी की एक मुट्ठी रेत से शिवलिंग बनाया और यहीं पर स्थापित कर दिया।
रामेश्वर महादेव मंदिर के प्रधान पुजारी आचार्य पं. अनूप तिवारी ने बताया कि पुराणों के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। ब्रह्म हत्या के दोष का प्रायश्चित करने के लिए श्रीराम ने काशी में पंचक्रोशी यात्रा की थी।
वरुणा नदी के किनारे उन्होंने रात्रि विश्राम किया था। अगली सुबह उन्होंने पूजा की। उसी दौरान उनके मन में आया कि पंचक्रोशी यात्रा के पड़ाव में उनके इष्ट देव भगवान शिव का मंदिर भी होना चाहिए।
इस पर उन्होंने हनुमानजी से कहा कि एक शिवलिंग लेकर आएं। हनुमानजी शिवलिंग लेने गए तो उनके मन में विचार आया कि प्रभु श्रीराम का कोई भी विशिष्ट काम उनके बिना पूरा नहीं होता है। इसका मतलब प्रभु श्रीराम के सबसे बड़े भक्त वही हैं।
इसकी जानकारी प्रभु श्रीराम को हुई तो उन्हें लगा कि हनुमानजी के अंदर अहंकार की विकृति आ गई है, इसे दूर करना चाहिए। प्रभु श्रीराम की माया से हनुमानजी को शिवलिंग लेकर आने में विलंब हो गया।
इस बीच गुरु वशिष्ठ ने कहा कि शुभ मुहूर्त बीता जा रहा है। इस पर श्रीराम ने वरुणा नदी की एक मुट्ठी रेत लेकर शिवलिंग की स्थापना की और उसे महालिंग कहा। हालांकि काशी खंड में इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। 16वीं शताब्दी के बाद जो पुस्तकें लिखी गई हैं उसमें पंचक्रोशी यात्रा में इसका उल्लेख नहीं मिलता है। काशी खंड के अनुसार अविमुक्तेश्वर क्षेत्र की सीमा में भगवान राम ने ब्रह्महत्या से मुक्ति के लिए रघुनाथेश्वर लिंग की स्थापना की थी।