लेटरल एंट्री के माध्यम से 45 पद भरने के सरकार के कदम की आलोचना को सरकार ने खारिज कर दिया है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, केंद्र में कांग्रेस के शासन के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व योजना आयोग के सदस्य एनके सिंह समेत कई टेक्नोक्रेट, अर्थशास्त्री और अन्य विशेषज्ञों की भर्ती की गई थी। मौजूदा केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के माध्यम से 45 मध्य-स्तरीय पदों के लिए यूपीएससी के जरिये आवेदन आमंत्रित किए हैं। सरकार के इस कदम पर कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधा है।
सरकारी सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस शासन के दौरान सरकार में शामिल होने वाले अन्य लोगों में सैम पित्रोदा, वी कृष्णमूर्ति, बिमल जालान, कौशिक बसु, अरविंद विरमानी, रघुराम राजन, मोंटेक सिंह अहलूवालिया और नंदन नीलेकणि शामिल हैं। टेक्नोक्रेट और उद्यमी सैम पित्रोदा को 1980 के दशक में राजीव गांधी के प्रशासन के दौरान भारत सरकार में लाया गया था। उन्हें देश की दूरसंचार क्रांति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जाना जाता है। उन्होंने राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के अध्यक्ष और सार्वजनिक सूचना संरचना और नवाचार पर पीएम के सलाहकार के रूप में कार्य किया।
अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि से आने वाले बिमल जालान ने आईएमएफ और विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के मुख्य आर्थिक सलाहकार और बाद में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर (1997-2003) के रूप में कार्य किया। प्रमुख अकादमिक अर्थशास्त्री कौशिक बसु को 2009 में सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में वे विश्व बैंक में मुख्य अर्थशास्त्री नियुक्त हुए थे। रघुराम राजन ने 2013 से 2016 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में कार्य किया। उन्हें 2012 में वित्त मंत्रालय में सीईए नियुक्त किया गया था।
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
1971 में लेटरल एंट्री के जरिये सरकार में आए मनमोहन सिंह को विदेश व्यापार मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया। बाद में उन्होंने भारत के आर्थिक उदारीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हुए 1991 में वित्त मंत्री बने। उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दो कार्यकालों के दौरान प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। सूत्रों ने कहा कि टेक्नोक्रेट वी कृष्णमूर्ति ने भारत की औद्योगिक नीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बीएचईएल और बाद में मारुति उद्योग के अध्यक्ष के रूप में भूमिकाएं निभाई थीं। उन्होंने राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता परिषद के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।
विपक्ष को मिला चिराग का साथ कहा-प्रक्रिया गलत, मामला उठाऊंगा
लेटरल एंट्री पर सवाल उठा रहे विपक्ष को अब मोदी सरकार की अहम सहयोगी लोजपा आर का भी साथ मिला है। केंद्रीय मंत्री और पार्टी के मुखिया चिराग पासवान ने इसे पूरी तरह से गलत करार देते हुए इस मामले को सरकार के समक्ष उठाने की घोषणा की है। उन्होंने यह भी कहा है कि उनकी पार्टी ऐसी नियुक्तियों के पक्ष में नहीं है।
चिराग ने कहा कि हमारी पार्टी ऐसी नियुक्तियों के पक्ष में नहीं है। यह पूरी तरह से गलत है। जहां भी सरकारी नियुक्तियां होती हैं, वहां आरक्षण के प्रावधानों का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिए। चिराग ने कहा कि यह हमारे लिए चिंता का विषय है। यह पूरी तरह से गलत है। हम सरकार का हिस्सा हैं। हमारे पास इन मुद्दों को सामने लाने के लिए मंच है। ऐसे में वह इस मामले को सरकार के समक्ष उठाएंगे।
क्या है सरकार का पक्ष?…इस मुद्दे पर सरकार विपक्ष पर हमलावर है। सरकार का कहना है कि लेटरल एंट्री नीति की शुरुआत यूपीए 1 सरकार के दौरान हुई थी। अब कांग्रेस भ्रम फैलाने के लिए अपनी ही सरकार की नीतियों की आलोचना कर रही है। सरकार के सूत्रों का कहना है कि 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी इसका समर्थन किया था।
आदिवासी-दलित, ओबीसी के अधिकारों पर हमला : राहुल
- लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसे दलित, ओबीसी व आदिवासियों के अधिकारों पर हमला बताया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, भाजपा ने अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए निर्धारित पदों को आरएसएस के लोगों को सौंपने की साजिश रची है।
अवधारणा कांग्रेस की, अब कर रही पाखंड : वैष्णव
- केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए पर पाखंड का आरोप लगाते हुए कहा कि यह यूपीए सरकार थी जिसने सीधी भर्ती की अवधारणा विकसित की थी। अब उसकी आलोचना से कांग्रेस का पाखंड स्पष्ट है। दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) 2005 में यूपीए सरकार के तहत स्थापित किया गया था।