Jammu Election
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चार दशक बाद गृह मंत्रालय से प्रतिबंधित गैर कानूनी संगठन जमात ए इस्लामी के नेता कश्मीर में चुनाव लड़ रहे हैं। 1987 में जब आखिरी बार जमात ने चुनाव लड़ा तो कांग्रेस उसके साथ थी। उन चुनावों में गड़बड़ी का आरोप लगा और कहा- माना जाने लगा कि उसके बाद ही घाटी में आतंकवाद की शुरुआत हुई।
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कश्मीर की अन्य पार्टियों का आरोप है कि दिल्ली की सरकार जमात और हुर्रियत की मदद कर रही है। इस बार दक्षिण कश्मीर के कुलगाम से निर्दलीय उम्मीदवार हैं जमात ए इस्लामी के सायार अहमद रेशी।
वह पॉलिटिकल साइंस में एमफिल हैं। चुनावी रैली में साथ आए युवा उन्हें सायार सर बुलाते हैं। उनके प्रचार में गरीबों की बातें हैं और कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा देने का वादा भी। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के खिलाफ नारों के बीच वह महिला मतदाताओं के सामने झोली फैलाकर वोट मांगते हैं।
सड़क के बीचों-बीच खड़े बुजुर्गों-युवाओं के साथ माइक पर तकरीर करते हैं और फिर कार से उतरकर गली की ओट में खड़ी कुछ महिलाओं से बात करते हैं। तकरीर में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी एमवाय तारिगामी की ओर इशारा कर रेशी कहते हैं कि लोग उनके गांव को कम्युनिस्ट गांव कहते हैं।
इसलिए शादियों में दिक्कत आती है। वह दावा करते हैं, जमात और आतंकी समूह हिजबुल मुजाहिदीन का कोई ताल्लुक नहीं है। यह भी कहते हैं कि हथियारों से जमात को मतलब नहीं, उनके यहां सिर्फ किताबें मिलती हैं। पेश हैं रेशी से उपमिता वाजपेयी की बातचीत के अंश…