हरियाणा विधानसभा चुनाव
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हरियाणा में भाजपा द्वारा अपने दिग्गज नेता ‘दादा’ रामबिलास शर्मा के प्रति दिखाई गई ‘बेरुखी’ सियासतदानों और आम लोगों के गले नहीं उतर पा रही है। ये वही रामबिलास शर्मा हैं, जिन्होंने उस वक्त प्रदेश में भाजपा का झंडा उठाया था, जब कोई भी नेता ‘भगवा’ टोली का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं था। खास बात है कि 2014 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा ने हरियाणा में अपने दम पर पहली बार सरकार बनाई, तब रामबिलास शर्मा ही भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा गया था, लेकिन मुख्यमंत्री पद पर मनोहरलाल खट्टर बाजी मार ले गए। भाजपा ने अब महेंद्रगढ़ विधानसभा सीट से पांच बार कमल खिलाने वाले 73 वर्षीय प्रो. रामबिलास शर्मा का टिकट काट दिया। उन्हें एकाएक भाजपा का लालकृष्ण आडवाणी बना दिया गया। इतना नहीं, प्रो. रामबिलास शर्मा को भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची में भी जगह नहीं दी गई, जबकि पार्टी के 40 स्टार प्रचारकों की सूची में पिछले दिनों भाजपा ज्वाइन करने वाली किरण चौधरी का नाम शामिल है। इसके अलावा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में रह चुके अशोक तंवर को भी स्टार प्रचारक बनाया गया है।
बता दें कि प्रो. रामबिलास शर्मा को यह पूरी उम्मीद थी कि भाजपा उन्हें महेंद्रगढ़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मौका देगी। यहां से उन्होंने पांच बार जीत दर्ज कराई थी। हालांकि वे 2019 में चुनाव हार गए थे। प्रो. शर्मा के घर एवं आसपास के क्षेत्र में उनके नाम के पोस्टर भी लग गए थे। वे तकरीबन अपनी टिकट को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। पहली सूची में जब शर्मा का नाम नहीं आया तो उनके समर्थकों को निराश हुई। अंतिम सूची में भी जब उनका नाम गायब रहा तो न केवल शर्मा, बल्कि उनके समर्थक भी टूट गए। सोशल मीडिया में प्रो. शर्मा और उनके समर्थकों के रोने का वीडियो खूब वायरल हुआ है। शर्मा दो बार भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे थे। भाजपा नेता एवं केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने रामबिलास शर्मा से मुलाकात की। उन्होंने कहा, पार्टी उन्हें बेइज्जत तो न करे। भाजपा में रामबिलास शर्मा के नाम के आगे सब बौने हैं। हाथी के पैर में ही सबका पैर है। हरियाणा में भाजपा का झंडा बुलंद करने वाले रामबिलास शर्मा ही हैं। राव इंद्रजीत सिंह ने पार्टी को नसीहत देते हुए कहा, पार्टी टिकट किसी को भी दे, लेकिन बेइज्जत करने का अधिकार किसी का नहीं है।
राव इंद्रजीत के साथ सांसद धर्मवीर भी रामबिलास शर्मा के आवास पर पहुंचे। शर्मा पहले तो चुनाव लड़ने की जिद पर अड़े रहे, लेकिन बाद में वे पार्टी के निर्णस से सहमत हो गए। सूत्रों का कहना है कि मनोहर लाल खट्टर के साथ उनके रिश्ते ज्यादा अच्छे नहीं थे। प्रो. शर्मा जब रो रहे थे तो कार्यकर्ताओं ने मनोहर लाल खट्टर को लेकर कई टिप्पणियां की। खट्टर के बारे में कहा गया कि उन्होंने प्रदेश और भाजपा को बर्बाद कर दिया है।
2014 में जब शर्मा, खट्टर सरकार में मंत्री बने थे तो कई अवसरों पर मुख्यमंत्री के साथ उनका टकराव देखने को मिला था। यह भी कहा जाता है कि पीएम मोदी के साथ भी प्रो. शर्मा के रिश्ते ठीक नहीं थे। हालांकि शर्मा के करीब एक भाजपा नेता का कहना था, ऐसा नहीं है। ये सब खट्टर की वजह से हुआ है। 2014 के चुनाव में जीत दर्ज कराने के बाद भाजपा की ओर से खट्टर सीएम बने। चूंकि वे पीएम मोदी की पसंद थे, इसलिए मुख्यमंत्री पद के लिए शर्मा को दरकिनार कर दिया गया।
प्रदेश की सियासत में यह बात बहुत से लोगों को अखर रही है कि प्रो शर्मा के साथ भाजपा ने ठीक नहीं किया। 1982 में महेंद्रगढ़ विधानसभा सीट से प्रो. रामबिलास शर्मा ने पहली बार कमल खिलाया था। भाजपा उनके साथ वही पॉलिसी अपना रही है, जो पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ अपनाई गई थी। उन्हें आयु का हवाला देकर मार्गदर्शक मंडल में बैठा दिया गया। उनके साथ मुरली मनोहर जोशी व कई दूसरे वरिष्ठ नेताओं को भी पार्टी में सक्रिय भूमिका से अलग कर दिया गया। प्रो. शर्मा ने कहा, उन्होंने हरियाणा में भाजपा का पौधा लगाया था। जब इसकी छांव में आराम करने का समय आया तो उन्हें अवसर नहीं मिला। कार्यकर्ताओं ने उनसे जब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने का आग्रह किया तो शर्मा भावुक हो उठे। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा, पांच दशक तक उन्होंने झंडा, डंडा व एजेंडा नहीं बदला। अब वह यह झंडा नहीं छोड़ सकते।