खबरों के खिलाड़ी।
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बीते हफ्ते जो खबरें सुर्खियों में रहीं, उनमें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की एक रिपोर्ट भी शामिल थी। यह रिपोर्ट देश में लोकसभा, राज्यों की विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनावों को एक साथ कराने के बारे में है। इस रिपोर्ट को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूर कर लिया है। उम्मीद जताई जा रही है सरकार संसद के आने वाले शीतकालीन सत्र में इससे जुड़ा विधेयक ला सकती है। वहीं, इस मुद्दे पर विपक्ष ने विरोध भी शुरू कर दिया है। इसी मुद्दे पर इस हफ्ते ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, राकेश शुक्ल, पूर्णिमा त्रिपाठी और अवधेश कुमार मौजूद रहे।
समीर चौगांवकर: देश में लंबे समय से एक देश एक चुनाव की चर्चा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद इसमें तेजी आई। सरकार ने इसे लेकर कमेटी बनाई। जिस तरह से कमेटी ने काम किया, उससे पता चलता है कि सरकार इसे लेकर कितनी गंभीर है। एक देश एक चुनाव को लागू करने के लिए एक जटिल प्रक्रिया होगी। सरकार को इससे जुड़ी जटिलताओं पर काम करना होगा। अगर कहीं सरकार बीच में गिर जाती है तो क्या होगा? छोटे दलों की चिंताओं को कैसे दूर किया जाएगा? इन सवालों के जवाब सरकार को तलाशने होंगे। सरकार की कोशिश होगी कि इसे लेकर आम सहमति बनाई जाए। मेरा मानना है कि यह एक बहुत बड़ा सुधारवादी कदम है।
विनोद अग्निहोत्री: यह भाजपा सरकार का एजेंडा है। यह जनसंघ के जमाने से उनके एजेंडे में रहा है। उसी से यह एक देश एक चुनाव निकला है। आजादी के बाद यह होता भी था, लेकिन बाद में इसमें बदलाव आया। संविधान में इसे लेकर कोई व्यवस्था नहीं थी। मेरा मानना है कि मूल रूप से यह लोकतंत्र की मूल धारणा को नुकसान पहुंचाएगा। कहने में भले ही यह बहुत अच्छा दिखता हो। यह तर्क कि चुनाव के दबाव में काम नहीं हो पाता, मैं इससे सहमत नहीं हूं। यह एकाधिकारवाद की ओर ले जाने वाली व्यवस्था होगी।
अवधेश कुमार: जो अस्थिरता का दौर हमारे देश ने देखा उस समय इसकी चर्चा ज्यादा थी। 1999 के बाद से देश में स्थिर सरकारें रही हैं, इसलिए इस दौर में यह उतना क्रांतिकारी कदम नहीं दिखाई दे रहा होगा। कोविंद समिति की रिपोर्ट जो भी ध्यान से पढ़ेगा उसमें उन सारे प्रश्नों के उत्तर हैं जो हमारे मन में उठ रहे हैं। यहां तक कि दुनिया के अलग-अलग देशों के उदाहरण भी इसमें दिए गए हैं।
राकेश शुक्ल: मूल सवाल यह है कि क्या एक देश एक चुनाव फलीभूत होगा या नहीं? मेरा मानना है कि यह फलीभूत होगा। चुनाव की प्रक्रिया में लगातार सुधार हो रहा है। अब एक नए सुधार की बात हो रही है। तमाम तरह की जो चिंताएं जाहिर की जा रही हैं, उन्हें कुछ तो कोविंद समिति की रिपोर्ट में कुछ आगे जो मसौदा तैयार किया जएगा उसमें उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाएगा। जिस दिन ईवीएम आई थी उस दिन भी सवाल उठे थे। सवाल अनंत काल तक जारी रहेंगे। चुनाव कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है और व्यवस्था।
पूर्णिमा त्रिपाठी: इस विचार की आलोचना के वैध कारण हैं। चुनाव आयोग चार राज्यों का तो एक साथ चुनाव नहीं करा पा रहा है फिर कैसे 28 राज्यों के चुनाव एक साथ कराएंगे। यह हमारे संविधान की भावना के भी खिलाफ है। इसमें राज्यों और केंद्र की अपनी संप्रभुता है। एक साथ चुनाव कराने पर यह संप्रभुता प्रभावित होगी। हमारे देश की एक सच्चाई ये भी है कि चुनाव माहौल से भी जीता जाता है। दूसरा सबसे बड़ा खतरा है कि इससे मतदाताओं के पास से एक हथियार चला जाएगा। जिससे सरकारें सचेत होती हैं। चुनाव के जरिए चेक एंड बैलेंस का ये हथियार छिन जाएगा।
रामकृपाल सिंह: अभी यह बंद लिफाफा है। इसमें क्या कंटेंट है, इस पर अभी से सवाल करना सही नहीं होगा। जो आशंकाएं हमारी हैं, उन आशंकाओं पर निश्चित रूप से कमेटी में भी विचार हुआ होगा। अगर यह कानून पास होगा तो तय है कि जो लोग इसके विशेषज्ञ हैं, उनके विचार जरूर शामिल होंगे। हमें इंतजार करना चाहिए कि संसद में यह आए। देश में पांच साल में 800 से ज्यादा दिन आचार संहिता लागू रहती है।