राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को पुस्तकों से बड़ा लगाव था, जिसमें धार्मिक पुस्तके भी थीं. गांधी जी ने सभी धार्मिक ग्रंथ अनुवाद सहित पढ़ रखे थे. लेकिन जिस धार्मिक पुस्तक का उनके जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा, वह थी भगवद गीता.
भगवत गीता महात्मा गांधी के लिए ऐसी पुस्तक थी, जो उनके जीवन के बुरे समय भी शक्ति और सांत्वना का स्रोत बनी. इसलिए गीता उनकी निरंतर साथी बन गई. गांधी जी भगवद गीता का बहुत सम्मान भी करते थे.
युवा गांधी के जीवन पर गीता का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उनके भीतर गीता में बताए निष्कामकर्म की भावना जागी. यानी फल की इच्छा किए बिना कर्म करना. इसके बाद उन्होंने स्वयं को एक सत्य उत्साही साधक और कर्मयोगी-कर्म करने वाला व्यक्ति बनाने का प्रयास किया.
गांधी जी ने गीता को अपने दैनिक जीवन में भी अपनाया. वह मानते थे गीता जिस तरह ज्ञानी और पंडित के लिए सुलभ है, उतनी ही आम आदमी के लिए भी.
इस तरह ये यह पवित्र धार्मिक पुस्तक महात्मा गांधी के लिए सबसे भरोसेमंद आध्यात्मिक मार्गदशक बन गई औऱ उनके जीवन के कई कष्टों और परेशानियों में नितंतर उनकी साथी बनी रही.
गांधी के अनुसार, मैं आपके सामने यह स्वीकार करता हूं कि जब संदेह मुझे परेशान करते हैं, जब निराशाएं मुझे घूरती हैं, और जब मुझे क्षितिज पर प्रकाश की एक भी किरण दिखाई नहीं देती, तो मैं भागवत गीता की ओर दौड़ता हूं और मुझे सांत्वना देने वाला कोई श्लोक ढूंढ़ लेता हूं और मैं भारी दुःख के बीच भी तुरन्त मुस्कुराने लगता हूं.”
Published at : 02 Oct 2024 08:03 AM (IST)
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