Shardiya Navratri 2024 Day 7 Maa Kalratri Puja: सातवें दिन की अधिष्ठात्री देवी हैं मां कालरात्रि. इनके शरीर का रंग बिल्कुल काला है. ये दिखने में अति भयावह प्रतीत होती हैं. उनके केश अस्त व्यस्त हैं. गले में बिजली के सम्मान कौंधती माला है. चेहरे पर निरन्तर ज्वाला बरसाती तीन आंखें हैं. प्रत्येक श्वास विद्युत की लपटों के सम्मान है. इनका वाहन गधा है. दाहिना ऊपरवाला हाथ वर मुद्रा में और नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है. दूसरे हाथ में ऊपर नीचे लोहे का कांटा और कटार है.
मां कालरात्रि पूजा मंत्र (Maa Kalratri Mantra)
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन मन सहस्त्रार चक्र में स्थित होने के कारण, साधना करने वाले के लिए सम्पूर्ण ब्रह्मांड के दरवाजे खुल जाते हैं. ध्यान पूर्णतः माता में केंद्रित रहता है. समस्त दुख ताप, विध्न, दुष्ट दानव भूत–प्रेत समाप्त हो जाते हैं. किसी भी प्रकार की पीड़ा समाप्त हो जाती है.
माता की अर्चना नियमानुसार, मन वचन और शुचिता के साथ करना चाहिए. क्योंकि ये शुभ फल देनेवाली हैं इसलिए इन्हें ’शुभंकरी’ नाम से भी जाना जाता है. आज से दिन 8 कुमारी कन्याओं को भोजन कराया जाता हैं और स्त्रियां आज के दिन नीला साड़ी पहनती हैं.
कालरात्रि अथवा काली माता और उनके तंत्र विद्या को लेकर काफी सारी व्यापक तरीके से भ्रांतियां हैं जिन्हें तर्क के साथ और शास्त्रों के अनुसार दूर करने की आवश्यकता है. अनुसंधान और गहरी खोज के अभाव में अगर कुछ निहित स्वार्थी तत्वों को अपवाद स्वरूप छोड़ दें, तो परमात्मा तक पहुंचने के कई मार्ग हैं जिनमें वेदमार्ग, ज्ञान मार्ग और तंत्र मार्ग का समावेश है.
महानिर्वाण तंत्रम(2.7.8) के अनुसार तंत्र मार्ग कलियुग में ज्यादा प्रचलित होगा. यहां हम तंत्र से जुड़े कुछ विवादों को समझने और सुलझाने का प्रयत्न करेंगे.
शुरी करते हैं तंत्र विद्या से जो गुप्त और रहस्यमयी कही जाती है. उसे सही गुरु के मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिए क्योंकि उसमें कई रहस्य छिपे हुए हैं. यह मार्ग गुप्त तरीके से कार्यान्वित होता है. इसे करने वाले इस विद्या में निष्णात होना परम आवश्यक है जो इसकी बारीकियों को समझें. भावचूड़ामनी में कहा गया है-
तंत्रणामति शुन्यगूढतातवात्तभड़भावोsप्यति गोपित:। ब्राह्मणों वेदशाष्ट्राथतस्तवशो बुद्धिमान वशी।। गूढ़ तंत्रास्त्रार्थ भवास्य निमर्थयौ उद्धरण क्षम:।वामार्गेअधिकारी स्यादितरो दुखभागभवेत।।
अर्थात- तंत्र विद्या एक गुप्त और रहस्यमय मार्ग है. इसको करने वाले को अत्यंत सावधान और निष्णात होना चाहिए वरना वे पीड़ा पाएंगे. तंत्र मंत्र शास्त्र में वाम मार्ग का जिक्र है. परन्तु यह दुर्गम मार्ग है और उसे वही कर सकता है जिसकी इंद्रियां उसके वश में हों.
तंत्र शास्त्र में कई तरह के चक्र पाए जाते हैं जैसे कि भैरवी चक्र, शिव चक्र, श्री चक्र, अया चक्र, विष्णु चक्र आदि जिनका भावो उपनिषद, त्रिपुरतापिनी, नृसिंघतापिंनी उपनिषदों में भी उल्लेख है.
हे देवा ह भगवंतममूवन महाचक्रनामकम सार्वकामिकम सर्वाराध्यम सर्वरूपम विश्वतोमुखम
मोक्षद्वारम तदेत्नमहाचक्रम्. बालो व वेव स भवति स गुरुर्भवती। (नृसिंघटपिणी)
अर्थात एक बार देवताओं ने भगवान से महा चक्रों के बारे में पूछा तब उन्होंने कहा कि उनका मुखिया वही है जिसका आदर देवता और सन्त करते हैं और जो मोक्ष का द्वार है. इन चक्रों को जानने वाला महान या गुरु बन जाता है. किसी भी चक्र में पांच कोण के भीतर संसार समाहित है. यह वेदों में भी लिखा है.
मद्यम मांसख मीनख मुद्रा मैथूनमेव च। मकारपंचकम प्राहुयोगिनाम मुक्तिदायकम।।
अर्थात सुरा, मांस मछली पैसा और काम ये पांच आध्यात्मिक छल योगी को मोक्ष दिलवा सकते हैं.
तंत्र में सुरा और मद्यपान का अर्थ है
व्योमपंकजनिषयनदसुधापानरतो भवेत मद्यपानमिदम प्रोक्तमित्रे मध्यपायींन:।।
अर्थात जिस किसी को ब्रह्मरन्ध्र सहस्त्र दल से खिलाया जाता है उसे सुधा कहते हैं जिसको कुलकाण्डलिनी से लिया जाता है, यह मद्यपान है. पीने वाले को मद्यप कहते हैं. और
ब्रह्मस्थानसरोजपात्रलसीता ब्रह्माण्डतृप्तिपदा
कमल से निकली तृप्तिदायक सुधा की वह धारा ऐसी है जैसे ब्रह्मरन्ध्र सहस्त्रार ब्रह्मांड के भीतर एकमात्र पेय जल या मदिरा है.
तंत्र के अनुसार मद्यपान का सही अर्थ: काली तंत्रम के प्रथम अध्याय में मद्यपान का अर्थ है कि हमे अपनी कुंडलिनी को उठाकर षट्चक्र के भीतर जागृत करना चाहिए और शिवशक्ति के साथ सामंजस्य में रहकर आनंद उठाना चाहिए. कुण्डलिनी को मूलाधार या पृथ्वी तत्व तक ले जाने से मद्यपान का आनंद मिलता है. इस आनंद अमृत का पान करने से जीवन मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाता है. यह मद्यपान का अर्थ है.
तंत्र में मांस का अर्थ: पुण्यापुण्यपशुम हत्वा ज्ञानखडेन योगवित। परेलयम नयेत चित्तम माँसाशी स निगद्यते।।
जिस योगी ने पाप पुण्य रूपी पशु को ज्ञान की तलवार से काट दिया है और ब्रह्म की शरण में है तो वह मांसाहारी है.
कामक्रोधौ पशु तुझ्यौ बलि दश्र्वा जपं चरेत।कामक्रोधसूलोभ मोह पशुकञ्छित्वविवेकसीना मांसम निर्विषयम प्रातमसुखदम भुजंति तेषां बुद्ध:।। (भैरवयामल)
इसके अनुसार मांसभक्षी वह व्यक्ति है जिसने अपनी ज्ञानरूपी तलवार का उपयोग करके स्वयम और दूसरों को भी आनंदित करता है.
यह भी कहा जाता है कि तंत्र में योनि और लिंग की पूजा होती है. काली तंत्रम के पहले अध्याय में इसका उत्तर है.
1. मातृ योनि का अर्थ है मूलाधार चक्र के पास का त्रिकोण. योनि मतलब सुमेरु को छोड़कर कोई भी अन्य मोती.
2. इसी अध्याय में लिंग को जीवात्मा कहा गया.
तंत्र में अर्थ अलग होते है उसे लौकिक संस्कृत की दृष्टि से नही समझना चाहिए. अब तक के विश्लेषण में यह तो समझा ही जा सकता है कि तंत्र बिना गुरु के समझना मुश्किल है. कलियुग में तंत्र विद्या के महत्व का उत्तर महानिर्वाण तंत्र में दिया गया है.
सत्यम सत्यम पुनः सत्यम सत्यम सत्यम मयोच्यते। विना ह्यागममार्गे कलौ नास्ति गति: प्रिये।।
शिवजी पार्वती से बोले वे सत्य करके ही सत्य बोलते हैं और यह सत्य ही कलियुग में आत्मा का एकमात्र मार्ग है अगमपथ.
श्रुतिस्मृतिपुरानादौ मयैव्योक्त पुरा शिवे। अगमोक्त बिधानेन कलौ देवान्य जेतसुधी:।।
आगे शिव ने कहा कि मैंने श्रुति स्मृति और पुराण में कलियुग के पंडितों को तंत्र का सहारा लेने के लिए कहा है. यहां अपनी इन्द्रियों को वश में रखना आवश्यक है।उन्हें आत्मा को समर्पित कर देना चाहिए.
माँसादीन्द्रीयगनम सैयमात्मनि योजयेत स मिनाशी भवेद्देवी इतर प्राणहीनस्का:.।।
मिनाशी उसे कहते हैं जिसने अपनी इन्द्रियों को नियंत्रण में कर लिया है और आत्मा को समर्पित कर दिया है. तंत्र विद्या को गुप्त रखने की बात को दतात्रेय तंत्र में लिखा हुआ है. चूंकि इसे गुप्त रखा जाना है इसलिये यहां उसे विस्तार से नही लिखा है. कुछ उद्धरण प्रस्तुत है.
दत्तात्रेय तंत्र में लिखा है:-
शृणु सिद्धि महायोगिन सर्वयोग विषारद।तन्त्रविद्याम महागुह्याम देवानामपि दुर्लभं।।
अर्थात शिवजी दत्तात्रेय से बोले कि यह विद्या इतनी गुप्त है कि देवता भी इसके बारे में नहीं जानते.
तवाग्रे कथ्यते देव तंत्रविद्याशिरोमणि।
गुह्यादगुह्या महागुह्या गुह्या गुह्या पुनः पुनः।।
इस विद्या को गुप्त ही रहने दें.
गुरुभक्ताय दातव्या नाभक्ताय कदाचन।मम भक्तयेकमनसे दृढ़चित्त युताय।।
जो भी मेरे भीतर गहरे उतरता है, वह अपने इरादों में दृढ़ निश्चय वाला, अपने गुरु का सम्मान करनेवाला व्यक्ति ही इस विद्या को सीखने की पात्रता रखता है.
शिरोदद्यतसुतम दद्यान्न् दददयातंत्रकल्पकम। यस्मै कस्मै न् दातव्यम नान्यथा मम भाषितम।।
समय आने पर व्यक्ति अपना सर कटवा सकता है, पुत्र का बलिदान दे सकता है पर कभी भी तंत्र का रहस्योद्घाटन नही करना चाहिए. इसलिये गुरु के मार्गदर्शन से बिना इस विद्या से दूर रहना चाहिए और उपहास नहीं करना चाहिए क्योंकि यह शिव निंदा का पाप कहलाएगा.
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