केरल हाईकोर्ट
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केरल हाईकोर्ट ने कहा कि नाबालिग के सामने यौन संबंध बनाना या नग्न शरीर का प्रदर्शन करना बच्चे का यौन उत्पीड़न है और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के तहत दंडनीय अपराध है।
न्यायमूर्ति ए बदरुद्दीन ने यह फैसला एक शख्स की उस याचिका पर सुनाया, जिसमें आईपीसी, पॉक्सो और किशोर न्याय अधिनियम के तहत विभिन्न अपराधों के लिए उसके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की गई थी। इस शख्स ने एक लॉज में कमरा बंद किए बिना नाबालिग की मां के साथ यौन संबंध बनाने और बच्चे द्वारा इसे देखने और इस बारे में पूछने पर उसकी पिटाई करने का आरोप है।
आरोपी-याचिकाकर्ता का कहना था कि उसके खिलाफ कानून कोई भी अपराध नहीं बनता है। हाईकोर्ट ने माना कि जब कोई व्यक्ति किसी बच्चे को नग्न शरीर प्रदर्शित करता है, तो यह बच्चे के यौन उत्पीड़न के इरादे जैसा होता है। इसलिए, पॉक्सो अधिनियम की धारा 11(1) (यौन उत्पीड़न) और 12 (यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत दंडनीय अपराध है। कोर्ट ने कहा, इस मामले में आरोप यह है कि आरोपी व्यक्ति ने कमरे को बंद किए बिना नग्न होकर यौन संबंध बनाए और नाबालिग को कमरे में प्रवेश की अनुमति दी, ताकि नाबालिग इसे देख सके। इस प्रकार, प्रथम दृष्टया, इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम की धारा 11 (1) के साथ पठित धारा 12 के तहत दंडनीय अपराध का आरोप बनता है। चूंकि आदमी ने कथित तौर पर बच्चे की पिटाई की और नाबालिग की मां ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की, इसलिए आईपीसी की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए सजा) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत अपराध भी शामिल होते हैं।
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि उस व्यक्ति पर पॉक्सो अधिनियम और आईपीसी की धारा 323 और 34 के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाए।