अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव
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अबकी बार ट्रंप सरकार-नतीजों ने न सिर्फ ट्रंप को व्हाइट हाउस पहुंचा दिया, बल्कि नए रिकॉर्ड भी बना दिए। उन्होंने न केवल व्हाइट हाउस की रेस जीती, बल्कि सीनेट व निचले सदन में भी बहुमत जुटाया। 132 साल में वह पहले ऐसे नेता बन गए, जिन्होंने निरंतरता टूटने के बावजूद चुनाव जीता।
ट्रंप की जीत में बड़ा मुद्दा अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने का वादा है। यही वजह थी कि कांटे के टक्कर वाले स्विंग राज्य उनके खाते में गए। पेंसिल्वेनिया, जॉर्जिया, नॉर्थ कैरोलिना व विस्कॉन्सिन तो उन्हांेने जीते ही, मिशिगन व नेवादा में भी बढ़त बनाई। आंकड़े बताते हैं, ट्रंप ने अश्वेत आबादी से लेकर हिस्पैनिक मतदाताओं में भी बड़ी सेंध लगाई। तमाम विवाद व अदालती मामलों ने उन्हें न सिर्फ चर्चाओं में रखा, बल्कि अर्थव्यस्था के वादों पर भी ध्यान खींचा। मकानों की आसमान छूती कीमतों, ऊंची महंगाई दर और आर्थिकी पर ट्रंप भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि उनके पास समस्याओं की सही दवा है। कारोबारी से राजनेता बने ट्रंप के विगत कार्यकाल में अर्थव्यवस्था बेहतर थी, यह बात उनके आलोचक भी मानते हैं।
भारतीय मूल के मतदाताओं की अहम भूमिका
जीत में अहम भूमिका भारतीय मूल के मतदाताओं की भी है। सिख फॉर ट्रंप संगठन चलाने वाले मैरीलैंड के कारोबारी जसदीप जस्सी कहते हैं, ट्रंप का आना न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर है, बल्कि भारत के साथ संबंधों के लिए भी अच्छा है।
ट्रंप के समर्थन में हिंदूज फॉर अमेरिका फर्स्ट अगेन चलाने वाले उत्सव संदूजा जोर देते हैं कि ट्रंप बेहतर राष्ट्रपति साबित होंगे। कार्नेगी एंडोमेंट के सर्वे का हवाला देते हुए उत्सव कहते हैं, कुछ सालों में ट्रंप के लिए भारतीय अमेरिकी और हिंदू अमेरिकी नागरिकों का समर्थन बढ़ा है। पिछले सर्वे में दर्ज 27 प्रतिशत के मुकाबले अब 35 फीसदी हिंदू अमेरिकी ट्रंप का समर्थन करते हैं। हैरिस के भारतीय मूल की होने के बावजूद सियासी कारणों से अपनी जड़ों से दूरी बनाना भी भारतीय मूल के लोगों को अखर गया और उनका वोट तय करने वाला कारण बना। भारतीय मूल के लोग अमेरिकी आबादी का केवल एक फीसदी हैं, पर सामाजिक प्रभाव इससे कहीं ज्यादा है।
भारत के साथ नई परियोजनाओं पर काम मुमकिन
रिपब्लिकन पार्टी से जुड़े भारतीय मूल के डॉ. संपत शिवंगी कहते हैं, बाइडन-हैरिस प्रशासन के चार साल में भारत-अमेरिका रिश्तों में कुछ बड़ा नहीं हुआ। अब नई परियोजनाओं पर काम मुमकिन हो सकेगा। वहीं, मौजूदा दौर में चल रहे मुद्दों पर राहत की उम्मीद है। ट्रंप का समर्थक विवेक रामास्वामी और तुलसी गैबार्ड भी हैं। वाशिंगटन के सत्ता गलियारों में चर्चा है कि विवेक को ट्रंप प्रशासन में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है।
कनाडा से तनाव पर भी होगा असर
जानकार आगाह करते हैं कि भारत को भावुकता की बजाय व्यावहारिकता से ट्रंप से डील करना होगा। ट्रंप पिछले कार्यकाल में भारत के साथ टैरिफ जैसे मुद्दे उठाते रहे हैं और कई मोर्चों पर अप्रत्याशित फैसले लेते रहे हैं। ऐसे में उनके फैसलों के आधार पर ही आकलन बेहतर होगा। हालांकि ट्रंप के सत्ता में आने से भारत-कनाडा के तनाव पर भी असर पड़ेगा। ट्रंप व कनाडा के पीएम जस्टिन त्रूदो के रिश्तों की खटास के बीच मुमकिन है कि कनाडा को वैसा अमेरिकी समर्थन न मिले, जैसा बाइडन सरकार में मिल रहा है।