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अनुभवी फिल्म निर्माता सुभाष घई ने बॉलीवुड के बढ़ते वित्तीय कुप्रबंधन ( financial mismanagement की आलोचना की है, जिसमें बढ़े हुए बजट, स्टार की ज्यादा फीस और लेखकों और संगीतकारों के प्रति उद्योग की उपेक्षा को उज…और पढ़ें
सुभाष घई ने वर्तमान के फिल्म निर्माण पर उठाए सवाल
हाइलाइट्स
- घई ने कहा, फिल्म के बजट का असंगत हिस्सा अभिनेताओं के वेतन में चला जाता है
- अभिनेता अब वास्तविक फिल्म निर्माण कौशल के बजाय अपने बाजार मूल्य का लाभ उठाते हैं
- घई के कहा, हमारे समय में, फिल्में प्योर थीं और सफलता एक ईश्वरीय आशीर्वाद थी
नई दिल्लीः बॉलीवुड जहां अपने पुराने गौरव को फिर प्राप्त करने की चुनौती से जूझ रहा है, वहीं दिग्गज फिल्म निर्माता सुभाष घई ने इंडस्ट्री के वित्तीय कुप्रबंधन ( financial mismanagement), आसमान छूते बजट और स्टार्स की भारी फीस (remuneration of stars) की तीखी आलोचना की है. अपनी प्रतिष्ठित फिल्मों के लिए मशहूर घई ने मॉडर्न डेज के अभिनेताओं से निर्माता बने लोगों पर क्रिएटिव और बिजनेस स्किल की कमी का आरोप लगाया, साथ ही लेखकों और संगीतकारों जैसे प्रमुख योगदानकर्ताओं की उपेक्षा करने के लिए इंडस्ट्री को भी जिम्मेदार ठहराया.
फिल्म के 100 रुपए के बजट को 1000 तक बढ़ा दिया
गेम चेंजर्स पर कोमल नाहटा से बात करते हुए घई ने सहयोगी फिल्म निर्माण से लेकर फुलाए हुए बजट और कॉर्पोरेट हितों द्वारा संचालित एक खंडित प्रणाली में इंडस्ट्री के बदलाव पर दुख जताया. उन्होंने कहा, ‘जब कोई फिल्म 100 रुपये में बन सकती है, लेकिन उसे 1,000 रुपये तक बढ़ा दिया जाता है, तो वे अतिरिक्त 900 रुपये वित्तीय शोषण (financial exploitation) के लिए खुला निमंत्रण बन जाते हैं. उन्होंने कहा, ‘फिल्म निर्माण कभी जुनून और दक्षता पर आधारित था लेकिन अब यह सब अलग-अलग विभागों में बंट गया है, जिसमें कई विभाग अलग-अलग काम कर रहे हैं और कोई भी लागत को नियंत्रित रखने पर ध्यान नहीं दे रहा है.’
अभिनेता भर रहे फिल्म के बजट से जेब
घई के अनुसार, एक मुख्य मुद्दा यह है कि फिल्म के बजट का असंगत हिस्सा अभिनेताओं के वेतन में चला जाता है. उन्होंने कहा, ‘कभी स्टार्स को बजट का 10-15% से अधिक भुगतान नहीं किया. आज, अभिनेता लगभग 70% हिस्सा अपनी जेब में डाल लेते हैं.’ हालांकि, उन्होंने तर्क दिया कि यह ट्रेंड फिल्म निर्माताओं द्वारा नहीं, बल्कि कॉरपोरेट प्रोडक्शन हाउस द्वारा शुरू की गई थी, जो अपनी बैलेंस शीट में बढ़ा-चढ़ाकर आंकड़े दिखाने के लिए एक्साइटेड थे.
घई की 43 फिल्मों बनाई और बजट भी ज्यादा नहीं फिर भी कमाया लाभ
मुक्ता आर्ट्स की स्थापना के अपने फैसले पर विचार करते हुए, घई ने फिल्म निर्माण में अनुशासन के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने कहा, ‘हमने 43 फिल्में बनाईं, और एक भी फिल्म अपने बजट से अधिक नहीं चली. हर प्रोजेक्ट ने लाभ कमाया क्योंकि हमने सख्त वित्तीय अनुशासन (financial discipline) बनाए रखा. हमारे समय में, फिल्में प्योर थीं और सफलता एक ईश्वरीय आशीर्वाद (God Gifted) थी. आज, स्वामित्व बदल गया है – फिल्में स्टूडियो की हैं, और प्राथमिक उद्देश्य आंतरिक लाभ-साझाकरण (internal profit-sharing) है.’
अब फिल्म निर्मण नहीं, वित्तीय पैंतरेबाजी चल रही
अभिनेताओं के प्रोडक्शन में कदम रखने की बढ़ती घटना पर, घई ने स्वीकार किया कि राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद जैसे बॉलीवुड के दिग्गज सफलतापूर्वक दोनों भूमिकाएं निभाते रहे हैं. हालांकि, उन्होंने आधुनिक दृष्टिकोण की आलोचना की, जहां अभिनेता वास्तविक फिल्म निर्माण कौशल के बजाय अपने बाजार मूल्य का लाभ उठाते हैं. वे तर्क देते हैं, ‘एक स्क्रिप्ट एक अभिनेता के पास आती है, और यदि बजट उनकी फीस के अनुरूप नहीं होती है, तो उनके प्रबंधक निर्माता बनने का सुझाव देते हैं. फिर वे बजट का आधा हिस्सा अपने अभिनय शुल्क के रूप में और बाकी आधा सह-निर्माता के रूप में मांगते हैं. यह फिल्म निर्माण नहीं है; यह सिर्फ वित्तीय पैंतरेबाजी है.’
संगीत में गिरावट के लिए निर्माता दोषी
वित्त से परे, घई ने लेखकों और संगीतकारों के प्रति उद्योग की उपेक्षा पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा, ‘स्टूडियो सितारों के बारे में जुनूनी हैं, लेकिन शायद ही कभी लेखकों के साथ उनके विजन के बारे में बात करते हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने 18 फिल्मों का निर्देशन किया और 43 का निर्माण किया, फिर भी कभी भी अपनी कास्ट के आधार पर कोई फिल्म नहीं बेची.’ उन्होंने फिल्म संगीत में गिरावट के लिए निर्माताओं को भी दोषी ठहराया, उन्होंने कहा कि संगीतकारों में प्रेरणा और रचनात्मक भागीदारी की कमी है जो उन्हें पहले मिलती थी. घई ने बताया, ‘जब मैंने आनंद बख्शी के साथ काम किया, तो मैंने उन्हें पूरी स्क्रिप्ट सुनाई, हर स्थिति को विस्तार से समझाया. आज उस स्तर का सहयोग गायब है.’
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
March 09, 2025, 16:50 IST