जांच और इलाज में देरी की वजह से टीबी संक्रमण मरीज के लिए जानलेवा बन सकता है। यह खुलासा पुडुचेरी स्थित इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) की मौखिक शव परीक्षण रिपोर्ट में हुआ है। इसके मुताबिक इलाज में देरी की वजह से अस्पताल में भर्ती होने के सात से 14 दिन के भीतर टीबी मरीज की मौत होने की आशंका सबसे ज्यादा है।
केंद्र सरकार के टीबी प्रभाग को सौंपी इस रिपोर्ट में डॉक्टरों ने बताया कि अब तक इस मॉडल के तहत 160 टीबी मौतों का विश्लेषण किया जा चुका है। चौंकाने वाली बात यह रही कि अधिकांश मौतें टीबी की पहचान के बाद भी केवल 7 से 14 दिनों के भीतर हो गईं।
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मौखिक शव परीक्षण साक्षात्कार पर आधारित सर्वे
रिपोर्ट के मुताबिक, जांच में टीबी की पहचान होने के बाद भी कई मरीज इलाज के लिए अस्पताल नहीं पहुंच पाते हैं जिसकी वजह से उनकी जान का जोखिम भी बढ़ने लगता है। जांच कराने के बाद अगर मरीज समय गंवाए बिना अस्पताल में भर्ती होता है तो उसे बचाने और पहले की तरह स्वस्थ होने की संभावना कई गुना अधिक होती है। इसलिए देश के सभी जिलों में सिर्फ निगरानी या जांच नहीं, बल्कि संक्रमित रोगियों के उपचार को भी प्राथमिकता देना बहुत जरूरी है। दरअसल मौखिक शव परीक्षण एक साक्षात्कार आधारित सर्वे है, जिसमें मृत व्यक्ति के परिजन से कुछ सवाल पूछे जाते हैं। उदाहरण के तौर पर उनसे मृतक के लक्षण, इलाज का इतिहास, अस्पताल में भर्ती, और मृत्यु के समय की परिस्थितियों के बारे में पूछा जाता है।
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घर में मौत का कोई हिसाब नहीं
आंकड़े बताते हैं कि भारत में 40 से 50% तक टीबी मौतें घर पर होती हैं, जिनका कोई मेडिकल सर्टिफिकेट नहीं होता। कई बार मौतों की रिपोर्टिंग अनजान कारण या सामान्य कमजोरी के रूप में होती है, जिससे टीबी मौतों का आंकड़ा कम पड़ता है। यही कारण है कि हाल ही में नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने टीबी से हुई मौतों पर मौखिक शव परीक्षण करने की सिफारिश की है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने टीबी संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में मौखिक शव परीक्षण को एक अहम हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की सलाह दी है ताकि शुरुआती लक्षण, लक्षणों की अवधि, इलाज की शुरुआत और रुकावट के अलावा निदान की प्रक्रिया के बारे में आसानी से समझा जा सके।