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Bollywwod Cult Movies : कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें आप घर का काम करते हुए या फिर इन फिलमों को आप मोबाइल चलाते हुए देखते हैं. कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो आपका पूरा ध्यान चाहती हैं. ऐसी फिल्मों आपके मन-मस्तिष्क पर सालों तक प्रभाव छोड़कर रखती हैं. आपके जेहन में सवाल छोड़ती हैं. ये मूवी सालोंसाल आपके साथ रहती हैं. 16 साल के अंतराल में ऐसी ही 4 फिल्में आईं जो ‘जेम्स ऑफ बॉलीवुड’ मानी जाती हैं. इन फिल्मों के एक-एक सीन, एक-एक डायलॉग और कहानी पर दर्शक टकटकी लगाकर देखते-सुनते हैं. ये फिल्में आज कल्ट क्लासिक मानी जाती हैं. बॉलीवुड का ‘नगीना’ कहलाती हैं.
सिनेमा दो तरह का होता है. एक तो शुद्ध एंटरटेनमेंट होता है, जिसे हम बिना दिमाग लगाए देखते हैं. कुछ फिल्में ऐसी होती है जो आपका समय-पूरा ध्यान चाहती हैं. यह मीनिंगफुल सिनेमा होता है. बॉलीवुड में कई फिल्में ऐसी हैं जिन्हें आपने कई बार देखा होगा, फिर भी मन नहीं भरा होगा. बॉक्स ऑफिस पर भले ही ये फिल्में औसत या फ्लॉप रही हों लेकिन समय के साथ इनकी अहमियत बढ़ती गई. 16 साल के अंतराल में बॉलीवुड में ऐसी चार फिल्में आईं जो आज कल्ट क्लासिक मानी जाती हैं. ये फिल्में हैं : सलीम लगड़े पर मत रो, एक डॉक्टर की मौत (1990), मकबूल (2003) और सहर (2005). ये फिल्में जितनी बार भी देखें, दिल प्यासा ही रह जाता है. मन नहीं भरता है.

सबसे पहले बात करते हैं 1989 में आई ‘सलीम लगड़े पर मत रो’ की. फिल्म में हमें एक्टर पवन मल्होत्रा लीड रोल में नजर आए थे. सईद अख्तर मिर्जा ने यह फिल्म नसीरुद्दीन शाह को ध्यान में रखकर ही लिखी गई थी. बाद में यह रोल पवन मल्होत्रा को मिला. पवन मल्होत्रा मंबई डोंगरी में प्रोडक्शन मैनेजर थे. एज हीरो उनकी यह पहली फिल्म थी. इसका खुलासा एक्टर ने अपने एक इंटरव्यू में किया था. फिल्म में एक लड़के युवक सलीम की कहानी दिखाई गई है. जो बाद में गरीबी के चलते क्राइम की दुनिया में आता है. रंगदारी के धंधे में शामिल होता है. फिर एजुकेशन के महत्व को समझता है. पूरी दुनियादारी को समझता है. नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करता है लेकिन मारा जाता है.

दर्शक इस फिल्म में उसकी जिंदगी और मौत को करीब से देखते हैं. यह फिल्म सामाजिक अन्याय को बहुत ही ईमानदारी से दिखाती है. सिस्टम किस तरह से पक्षपात करके काम करता है, फिल्म इस कड़वी सच्चाई को भी दिखाती है. गरीबी इंसान से क्या-क्या कराती है, यह फिल्म बहुत ही नायाब तरीके से इन मुद्दों को दर्शकों के जेहन में उठाती है. यह मूवी यूट्यूब पर उपलब्ध है. आप भी इसे देख सकते हैं.

1990 में ऐसी ही एक और फिल्म आई जिसका नाम ‘एक डॉक्टर की मौत’ था. यह एक साइंस ड्रामा फिल्म थी. यह एक सच्ची घटना से प्रेरित फिल्म है. डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय लेप्रोसी की वैक्सीन पर रिसर्च कर रहे होते हैं. इस दौरान वह जिन कठिनाइयों-मुश्किलों से गुजरते हैं, उसे फिल्म में खूबसूरती से दिखाया गया है. फिल्म के डायरेक्टर तपन सिन्हा थे. लीड रोल में हमें पंकज कपूर ने नजर आए थे. उन्होंने डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय को जीवंत कर दिया. कहानी वैक्सीन की खोज, सामाजिक जिम्मेदारियों, पारिवारिक तनाव, सरकारी सिस्टम के निकम्मेपन और उस्में व्याप्त भ्रष्टाचार को दिखाती है.

फिल्म की कहानी दिखाती है कि कैसे एक डॉक्टर देश-समाज के लिए कुछ करना चाहता है, वह अपने दोस्तों, समाज, रिश्तों को दांव पर लगा देता है लेकिन सरकारी बाबू उन्हें मानसिक रूप से अपंग बना देते हैं. कैसे सिस्टम उन्हें हतोत्साहित करता है. यह फिल्म अपने समय से बहुत आगे की मूवी थी. फिल्म में हमें इरफान खान भी नजर आते हैं. फिल्म को दो नेशनल अवॉर्ड और कई फिल्म फेयर अवॉर्ड मिले थे. यह मूवी यूट्यूब पर उपलब्ध है.

30 जनवरी 2003 में रिलीज हुई ‘मकबूल’ बॉलीवुड की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है. इस फिल्म में स्क्रीनप्ले, डायलॉग, एक्टिंग सब कुछ परफेक्ट था. हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औसत रही थी लेकिन इसकी गिनती आज कल्ट क्लासिक फिल्म में होती है. फिल्म में हमें पंकज कपूर, नसीरुद्दीन शाह, इरफान खान, ओम पुरी, पीयूष मिश्रा और तब्बू मुख्य भूमिकाओं में नजर आए थे. फिल्म की कहानी अब्बास टायरवाला ने लिखी थी. इससे पहले वह ;मैं हूं ना’ ‘सलाम नमस्ते’ और ‘जाने तू या जाने ना’ जैसी सुपरहिट फिल्मों को लिख चुके थे. अब्बास टायरवाला ने भी फिल्म में एक छोटा सा रोल निभाया था. फिल्म को विशाल भारद्वाज ने डायरेक्ट किया था. मकबूल ने इरफान खान को बड़े पर्दे पर पहचान दिलाई.

फिल्म में शेक्सपियर के मैकबेथ की कहानी को मुंबई के अंडरवर्ल्ड की पृष्ठभूमि में दिखाया गया था. इरफान ने मियां मकबूल का किरदार निभाया था जो अंडरवर्ल्ड डॉन जहांगीर उर्फ अब्बा जी का राइट हैंड रहता है. अब्बा जी की प्रेमिका निम्मी मियां मकबूल को डॉन बनने और अब्बा जी का कत्ल करने के लिए उकसाती है. मकबूल फिल्म में वैसे तो पंकज कपूर को पहले पीयूष मिश्रा का रोल निभाना था. बाद में उनका रोल बदला गया. मकबूल में पहले केके मेनन को इरफान खान की जगह लिया गया था लेकिन वो फिल्म का हिस्सा नहीं बन पाए.

कबीर कौशिक के निर्देशन में 2005 में एक बहुत ही पावरफुल मूवी पर्दे पर आई थी. इस फिल्म की कहानी यूपी के गोरखपुर शहर के दुर्दांत गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला की लाइफ से प्रेरित थी. फिल्म का नाम था : सहर. यह फिल्म रियलिस्टिक सिनेमा का अनुपम उदाहरण है. फिल्म में अरशद वारसी, पंकज कपूर, महिमा चौधरी, सुशांत सिंह, राजेंद्र गुप्ता जैसे दिग्गज एक्टर नजर आए थे. सहर फिल्म उत्तर भारत के में बहुत पसंद की गई. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड में हर आयु वर्ग की पसंदीदा फिल्मों में से एक है. फिल्म को रिलीज हुए ए20 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे हाल ही में रिलीज हुई हो. फिल्म में अरशद वारसी ने तत्कालीन एसएसपी अरुण कुमार का रोल निभाया था.

गोरखपुर के मामखोर गांव में जन्मे गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला के पिता रामस्वरूप शुक्ला (बाबा जी) टीचर नहीं, बल्कि एयरफोर्स में थे. बैकॉक में पोस्टेड थे. रिटायरमेंट के बाद गोरखपुर में ठेकेदारी करने लगे थे और बल्कि ए ग्रेड के ठेकेदार थे. बहन से छेड़खानी की बात भी मामखोर गांव के लोग सच नहीं मानते. ग्रामीण बताते हैं कि श्रीप्रकाश शुक्ला ने पड़ोसी गांव छपरा के राकेश तिवारी का मर्डर अपमान का बदला लेने के इरादे से किया था. दरअसल, राकेश ने ही पहले उससे मारपीट की थी. श्रीप्रकाश शुक्ला के परिवार की गिनती रईसों में होती थी. वह अशोक सिंह के नाम से रंगदारी वसूला करता था.
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