Chhath Puja 2025: छठ पूजा का तीसरा दिन यानी संध्या अर्घ्य के शुभ अवसर पर बिहार और उत्तर भारत के कई हिस्सों में भक्त ‘कोसी भरने’ की खास परंपरा निभाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कोसी भरना आस्था और कृतज्ञता का प्रतीक है. इसे विशेष रूप से मन्नत पूरी होने पर छठी मैया के प्रति धन्यवाद व्यक्त करने के लिए किया जाता है.
छठ पूजा के दौरान कोसी क्यों भरी जाती है?
- मन्नत पूरी होने पर आभार: जब भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने का अनुभव करते हैं, तो वे कोसी भरकर छठी मैया के प्रति कृतज्ञता जताते हैं.
- सुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति: यह परंपरा परिवार में सुख-समृद्धि, संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी निभाई जाती है.
वैज्ञानिक महत्त्व: छठ पूजा के दौरान कोसी में रखे गए पांच गन्ने- पृथ्वी, हवा, अग्नि, जल और आकाश के तत्वों के प्रतीक होते हैं. ये तत्व जीवन में संतुलन और सामंजस्य बनाए रखने में मदद करते हैं.
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो, इस समय सूर्य की अत्यधिक पराबैंगनी (UV) किरणें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में पहुंचती हैं. कोसी भरने और सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा, शरीर को इन किरणों के संभावित हानिकारक प्रभावों से बचाने में सहायक मानी जाती है.
कोसी भरने की विधि
- संध्या अर्घ्य के समय, घर की छत या आँगन में गन्नों से एक छत्र बनाया जाता है.
- इसके बीच में मिट्टी का हाथी रखा जाता है, और उसके ऊपर कलश रखा जाता है.
- कलश और हाथी में प्रसाद व पूजन सामग्री सजाई जाती है और दीपक जलाया जाता है.
इस अवसर पर पूरे परिवार की रात जागरण रहती है और स्थानीय लोकगीत गाए जाते हैं, जिन्हें ‘कोसी सेवना’ कहा जाता है.
कोसी क्या होती है?
कोसी छठ पूजा की एक विशेष परंपरा है, जिसमें गन्नों से छत्र बनाकर उसके बीच में मिट्टी का हाथी और कलश रखा जाता है. इसमें प्रसाद और पूजन सामग्री सजाई जाती है और दीपक जलाया जाता है. यह भक्तों की मन्नत पूरी होने पर छठी मैया के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का तरीका है.
कोसी कब भरी जाती है?
कोसी छठ पूजा के तीसरे दिन यानी संध्या अर्घ्य के समय भरी जाती है. यह दिन सूर्यास्त के समय घर की छत या आँगन में विशेष विधि से मनाया जाता है.
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