– फोटो : amar ujala
विस्तार
सियासत में नेताओं की पैतरेबाजी का खेल नया नहीं है। श्रावस्ती संसदीय सीट की बात करें तो संसद में पहुंचने की चाह में दलीय निष्ठा बदलने में नेताओं ने महारत हासिल कर रखी है। नेताओं ने पाला बदलकर अपनी स्थिति को मजबूत बनाने का दांव खूब चला। तीन बार ही लोकसभा चुनाव में दलीय निष्ठा टूटती रही है।
बात साल 2009 के चुनाव की करें तो कांग्रेस ने विनय कुमार पांडेय को मैदान में उतारा। उन्हें जीत भी मिली, लेकिन 2014 में हार का सामना करना पड़ा तो पाला बदल लिए। अब वह सपा में है, लेकिन स्थितियां कुछ ऐसी बनीं हैं कि सपा की उनके पुराने पार्टी से ही दोस्ती हो चुकी है। अब वह एक बार फिर मुख्यधारा में वापसी में दांवपेंच चल रहे हैं। उस समय बसपा से चुनाव लड़े रिजवान जहीर भी पार्टी छोड़ चुके हैं। इसी तरह 2014 में अंबेडकर नगर के लालजी वर्मा बसपा से लड़े थे, वह भी समाजवादी पार्टी में चले गए। अब वह अंबेडकरनगर से चुनाव लड़ रहे हैं।
ये भी पढ़ें – बसपा प्रत्याशी के बिना सुल्तानपुर की सियासी फिजां का अंदाजा मुश्किल, कहीं घोड़े की चाल न चल दे ‘हाथी’
ये भी पढ़ें – अमेठी में सियासी सूरमाओं ने गंवाई जमानत… 2019 के चुनाव में 28 में से 26 उम्मीदवार न बचा पाए थे
द्दन मिश्र भी बसपा से भाजपा में आए और 2014 में चुनाव लड़े और जीते भी। इस बार उनको भाजपा ने टिकट नहीं दिया। यह बात अलग है कि उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी है। वह श्रावस्ती जिला पंचायत के अध्यक्ष हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा से राम शिरोमणि वर्मा जीते थे। लेकिन पार्टी ने ही उनकी निष्ठा पर सवाल उठाते हुए बाहर का रास्ता दिखा दिया।
सांसद बृजभूषण सिंह ने भी छोड़ी थी भाजपा
साल 2004 में बलरामपुर संसदीय सीट से भाजपा ने गोंडा के सांसद बृजभूषण शरण सिंह को मैदान में उतारा था। उन्होंने जीत भी हासिल की। लेकिन साल 2009 के चुनाव के पहले ही उन्होंने भाजपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया था। उस समय सपा ने कैसरगंज से उन्हें प्रत्याशी बनाया और वह जीते भी। लेकिन 2014 में उन्होंने फिर भाजपा में वापसी कर ली।
नेताओं की चाल से पार्टियों ने भी बदली रणनीति
स्थानीय नेताओं की सियासी चालों के बाद पार्टियों ने भी अपनी रणनीति में बड़े बदलाव किए। अब टिकाऊ और जिताऊ पर जोर देने के लिए कई स्तर से परखा जा रहा है। यही कारण है कि श्रावस्ती संसदीय सीट से भाजपा ने जहां साकेत मिश्र पर विश्वास जताया है, वहीं सपा व बसपा लोगों को परखने में जुटी है। पार्टी के पदाधिकारियों से सलाह मशविरा के साथ ही समीकरण की पड़ताल कर रही है। इसके चलते अभी तक दोनों दलों की ओर प्रत्याशी तय नहीं किए गए हैं।