पहले चरण में चार सीटों पर आमने-सामने की टक्कर।
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तो क्या फिर 2019 दुहराएगा बिहार में? लोकसभा चुनाव में मतदान का जैसा आंकड़ा 2019 के पहले चरण में सामने आया था, लगभग वही स्थिति है। कहें तो उससे भी बुरी स्थिति ही। पिछली बार भी गया, औरंगाबाद, जमुई और नवादा में पहले चरण में मतदान हुआ था। इस बार भी वही हुआ। पिछली बार भी सबसे कम वोट प्रतिशत नवादा का था। इस बार भी है। वैसे, नवादा का वोट प्रतिशत पहले के मुकाबले और गिरा ही है। तो, यह मानना मजबूरी जैसा ही है कि इस बार 30 का आंकड़ा बनने जा रहा है। मतदान खत्म होने के 18 घंटे के दरम्यान चारों सीटों पर लोगों से बातचीत में सामने आ रहा है कि कम वोटिंग और आमने-सामने के मुकाबले में बाकी 30 की जमानत का बचना मुश्किल है। इस बार कुल 38 प्रत्याशी मैदान में हैं और असल लड़ाई चारों सीटों पर आमने-सामने की है। इसके अलावा भी कई बातें सामने आ रही हैं। एक-एक कर सभी को समझें तो बहुत कुछ साफ होगा।
गया: 2019 में क्या था, 2024 में क्या
इस बार सबसे ज्यादा मतदान गया लोकसभा सीट पर हुआ है- 52 प्रतिशत। फिर भी यह पिछली दफा के 56.18 प्रतिशत से बहुत कम है। लोकसभा चुनाव 2019 में यहां 13 प्रत्याशी अंतिम तौर पर मैदान में थे। उनमें से 11 की जमानत जब्त हो गई। तब जीतन राम मांझी अपनी पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा-सेक्युलर के टिकट पर महागठबंधन उम्मीदवार थे और जदयू के विजय कुमार मांझी से हार गए थे। इस बार मांझी महागठबंधन की जगह एनडीए के उम्मीदवार हैं। शुक्रवार को वोटिंग के 18 घंटे तक की गहमागहमी बता रही है कि मुकाबला इस बार भी आमने-सामने का है। महागठबंधन प्रत्याशी कुमार सर्वजीत और एनडीए उम्मीदवार जीतन राम मांझी के बीच। इस बार गया से 14 प्रत्याशी मैदान में हैं, लेकिन लोग साफ-साफ कह रहे कि आमने-सामने के मुकाबला था और वोटिंग कम होने का मतलब है बाकी 12 प्रत्याशियों को निराशा ही हाथ लगेगी। महागठबंधन से दो दल निकलकर इस बार एनडीए में हैं। एनडीए को उससे मार्जिन बढ़ने की उम्मीद है, जबकि राजद को अपनी जीत साफ-साफ दिख रही है।
औरंगाबाद: 2019 जैसी स्थिति इस बार भी
चार में से सिर्फ यही एक सीट है, जिसपर मौजूदा सांसद को फिर से जौहर दिखाने का मौका मिला। इस बार यहां 50 फीसदी वोटिंग हुई। निर्वाचन आयोग के आंकड़े ही बता रहे कि पिछली बार 53.67 प्रतिशत मतदान हुआ था। वोट प्रतिशत गिरने में गर्मी, प्रचार में देरी जैसे कारण गिनाए जा रहे हैं, लेकिन जब असर की बात की जा रही तो लोग एनडीए-महागठबंधन के बीच ही वोट बंटने की बात कह रहे हैं। इस बार इस सीट पर 32 नामांकन दाखिल हुए थे, मगर मैदान में नौ ही रहे। पिछली बार नामांकन की संख्या छह ही थी, तब भी मैदान में नौ रहे थे। अगर आम वोटरों के दावे के तहत आमने-सामने का मुकाबला ही अंतिम तौर पर रहा और आशंका के अनुसार बगावती खेल नहीं काम किया तो नौ में से सात प्रत्याशियों की जमानत बचनी मुश्किल होगी। ज्यादा वोटिंग होने पर अपना वोटर निकलने का दावा करने वाले दलों में कम वोटिंग को लेकर सिर्फ डर ही है।
नवादा : जीत का दावा करने वाले भी निश्चिंत नहीं
मतदान का औंधे मुंह गिरना नवादा के मामले में सार्थक उदाहरण है। इस बार नवादा में महज 41.5 प्रतिशत मतदान की जानकारी सामने आयी। पिछली बार निर्वाचन आयोग ने 49.73 फीसदी मतदान हुआ था। 2019 में जो मतदान हुआ था, उसमें नवादा की हालत खराब थी। इस बार तो और बुरा हाल है। पिछली बार नौ मैदान में थे और सात की जमानत राशि जब्त हो गई थी। मतलब, वह सात सम्मानजनक वोट नहीं पा सके थे। एनडीए और महागठबंधन में आमने-सामने की लड़ाई थी। इस बार भी वही हालत है। इस बार नामांकन तो 30 हुआ, लेकिन मैदान में दोनों प्रमुख प्रत्याशियों को मिलाकर आठ खिलाड़ी हैं। भाजपा ने यहां से विवेक ठाकुर को मौका दिया है, जबकि श्रवण कुमार महागठबंधन से राजद प्रत्याशी है। वोटिंग के बाद लोगों का कहना है कि लड़ाई में किसी तीसरे की उपस्थिति बहुत मुश्किल है। मतलब, छह प्रत्याशियों की जमानत पर आफत है। इसके अलावा, जीत का दावा करने वालों को भी पता है कि हार का अंतर भी बहुत नहीं रहेगा। मतलब, कोई राहत में नहीं है।
जमुई: पहचान के संकट से वोट प्रतिशत गिरा
मतदान के बाद करीब 17-18 घंटे बीतने तक लोगों ने यहां यह राय बनाई कि प्रत्याशी की घोषणा में देरी, नए चेहरों की अप्रत्याशित एंट्री, सुबह से शाम तक भीषण गर्मी जैसे कारणों ने वोट प्रतिशत को गिराकर 50 फीसदी पर ला दिया। यहां पहले मुकाबला कांटे का लग रहा था, लेकिन अब कोई कुछ बताने की स्थिति में नहीं है। हां, यह जरूर कह रहे हैं कि एक छोटे प्रत्याशी ने भी मेहनत अच्छी की है। इसके बावजूद इस बार यहां से उतरे सात प्रत्याशियों में से पांच की जमानत बचने का दावा करने वाले कम लोग हैं। दूसरी बात कि चुनाव प्रचार के अंतिम समय में राजद की सभा के वायरल वीडियो और तेजस्वी यादव की ओर से इसपर खेद नहीं आने का खामियाजा महागठबंधन प्रत्याशी को झेलना पड़ सकता है। पिछली बार इस सीट पर नौ प्रत्याशी मैदान में थे और 55.25 प्रतिशत मतदान के बावजूद सात उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी।
निर्दलीय और पार्टियों की पहचान बड़ी नहीं
पिछली बार की तरह इस बार भी इन चारों सीटों पर किसी बड़े निर्दलीय या तीसरी बड़ी पार्टी ने अपनी दखल नहीं दिखाई। पिछली बार इसी कारण हर सीट पर सिर्फ जीतने और हारने वाले को छोड़ सभी की जमानत जब्त हो गई थी। इस बार भी वोट हासिल करने वालों में दो सुरक्षित सीटों पर मायावती की बहुजन समाज पार्टी की भूमिका दिखने की उम्मीद है। जहां तक अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों के प्रदर्शन का सवाल है तो राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी, लोकतांत्रिक सामाजिक पार्टी, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कॉम्युनिस्ट), भारत जन जागरण दल, पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डेमोक्रेटिक), भागीदारी पार्टी (पी), अखिल हिंद फॉरवर्ड ब्लॉक (क्रांतिकारी) आदि के नाम से कितने वाकिफ हैं, यह चुनाव परिणाम बता देगा।