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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि निजी कंपनी में विधिक अधिकारी की नौकरी वकालत नहीं है। न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला तथा न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की कोर्ट ने विधिक अधिकारी की नौकरी को जोड़ते हुए बनवाए गए प्रैक्टिस प्रमाणपत्र को नहीं माना और याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा,चयन एवं नियुक्ति समिति के प्रस्ताव में कोई दोष नहीं है। पूर्णकालिक सेवा के दौरान वकालतनामा लगाना बार काउंसिल और कंपनी में नियुक्ति की शर्तों का उल्लंघन है।
कंपनी से इस्तीफा देने के बाद याची की निरंतर वकालत की अवधि सात वर्ष से कम है, जबकि न्यायिक सेवा के लिए 7 वर्ष की निरंतर प्रैक्टिस जरूरी है। मामले में याची शशिकांत तिवारी ने उप्र न्यायिक सेवा परीक्षा 2016 के लिए फॉर्म भरा था। प्रारंभिक और लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें 22 अप्रैल 2017 को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। 18 अगस्त 2017 को परिणाम घोषित किया गया, जिसमें याची का नाम नहीं था।