श्रीलंका
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श्रीलंका में शनिवार को राष्ट्रपति पद के लिए मतदान जारी है। आज के चुनाव पर भारत समेत दुनियाभर की नजरें टिकी हैं। 2022 में आर्थिक संकट के कारण दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गए इस द्वीप राष्ट्र में 39 उम्मीदवार मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, नेशनल पीपुल्स पांवर गठबंधन के उम्मीदवार अनुरा कुमार दिसानायके और एसजेबी नेता सजित प्रेमदासा के बीच है।
निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे विक्रमसिंघे और मुख्य विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा का रुख आमतौर पर भारत समर्थक माना जाता है, जबकि चुनावी सर्वे में सबसे मजबूत स्थिति में नजर आ रहे दिसानायके चीन समर्थक हैं। वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का वादा करके युवाओं के बीच काफी लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं। विक्रमसिंघे देश को य आर्थिक संकट से उबारने के लिए बरे उठाए गए कदमों के बलबूते जीतने ता की उम्मीद कर रहे हैं। वहीं, प्रेमदासा नर तमिलों से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं।
रिकॉर्ड संख्या में कुल 39 प्रत्याशी मैदान में
इस साल के चुनाव में रिकॉर्ड संख्या में कुल 39 प्रत्याशी ताल ठोक रहे हैं। प्रत्याशियों की सूची में तीन अल्पसंख्यक तमिल और बौद्ध भिक्षु के नाम भी शामिल हैं। चुनाव आयोग ने गुरुवार को बताया कि 21 सितंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव का एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि 39 प्रत्याशियों में एक भी महिला शामिल नहीं है। 2019 में कराए गए चुनाव में 35 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे। इससे पहले अक्तूबर, 1982 में कराए गए देश के पहले राष्ट्रपति चुनाव में केवल छह उम्मीदवारों ने पंजीकरण कराया था।
श्रीलंका में 1.7 करोड़ से अधिक मतदाता
गौरतलब है कि श्रीलंका के चुनाव में 1.7 करोड़ से अधिक मतदाता देश के राष्ट्रपति को चुनने के लिए वोट डाल सकेंगे। 22 निर्वाचन क्षेत्रों में 17 मिलियन से अधिक पात्र मतदाताओं के सामने वर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के अलावा युवा उम्मीदवार नमल राजपक्षे जैसे विकल्प भी होंगे। इन दोनों के अलावा प्रमुख उम्मीदवारों की सूची में देश के मुख्य विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा और मार्क्सवादी जेवीपी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके जैसी हस्तियों के नाम भी शामिल हैं। 38 साल के नमल राजपक्षे को राजनीतिक खानदान- राजपक्षे वंश का उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है।
लगभग ढाई साल बाद हो रहे चुनाव की इतनी चर्चा क्यों है?
चुनाव के बारे में यह भी उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2022 में देश को दिवालिया घोषित किए जाने के बाद यह देश का पहला चुनाव है। 1948 में ब्रिटिश हुकूमत खत्म होने के बाद अभूतपूर्व आर्थिक संकट के कारण श्रीलंका में दशकों बाद गृह युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए थे। महीनों तक चले विरोध-प्रदर्शन और जनाक्रोश के सामने तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को पद छोड़ना पड़ा था। अब लगभग ढाई साल बाद कराए जा रहे चुनाव से जुड़ी एक खास बात यह भी है कि 2022 में जनांदोलन का प्रतिनिधित्व करने वाला एक शख्स खुद भी राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल है।