पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह
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गुजरात में चुनाव की बात मोदी से शुरू होती है और उन्हीं पर खत्म। यहां का चुनावी गणित मोदी बनाम बाकी होता है। यही नहीं चुनाव का मतलब, मसला, मुद्दा और मुद्दई सभी मोदी ही हैं। इस फॉर्मूले को एक छोटे से उदाहरण से समझिए। अहमदाबाद की सबसे पॉश कॉलोनी में खाना बनाने का काम करनेवाली शोभा बेन से जब पूछा कि आनेवाले चुनावों में वह किसे वोट देंगी तो जवाब था- मोदी नू। वो कहती हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव और नगर पालिका में भी उन्होंने वडा प्रधान (गुजराती में पीएम) को ही वोट दिया था।
गुजरात में सभी 26 सीटों पर 7 मई को चुनाव होंगे। 400 पार का बिगुल बजा रही भाजपा के लिए गुजरात के 40 डिग्री तापमान में 26 सीटों पर सबसे बड़ी चुनौती लोगों को बूथ तक लाने की होगी। ज्यादा वोटिंग यानी ज्यादा बड़ी जीत। गुजरात में 2019 के लोकसभा चुनाव में 64.5, 2014 में 63.6, 2009 में 47.9 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जब ज्यादा वोटिंग हुई तो नतीजे भाजपा के पक्ष में गए।
पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने गुजरात में क्लीनस्वीप करते हुए सभी 26 की 26 सीटें जीती हैं। इस बार भी सभी सीटों पर भाजपा मजबूत है। जंग जीत की नहीं, बड़ी जीत, बहुत बड़ी जीत और सबसे बड़ी जीत की है। इस बार पार्टी का लक्ष्य टॉप 18 सीटों पर 2 लाख से ज्यादा अंतर से जीतना है। बाकी 12 सीटों पर जहां पिछली बार 75 हजार-1.5 लाख का अंतर था, वहां इसे बढ़ाकर कम से कम 2-3 लाख पर ले जाना है। संकल्प तो ये भी है कि सीआर पाटिल की नवसारी में 8 लाख और अमित शाह की गांधीनगर सीट में 10 लाख के अंतर से जीत सुनिश्चित करना है। पिछली बार सीआर पाटिल 6.89 लाख वोट से जीते थे जो देश की सबसे बड़े अंतर वाली जीत थी।
चुनाव से ज्यादा राममंदिर में हुई प्राणप्रतिष्ठा के पोस्टर
गुजरात भाजपा के लिए हिंदुत्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है। यहां 88 प्रतिशत आबादी हिंदू है। गांधीनगर से अहमदाबाद। राजकोट से जामनगर। और वडोदरा से भडूच तक रास्तों पर जितनी गिनती चुनावी पोस्टर की नहीं है, उससे ज्यादा राममंदिर में हुई प्राणप्रतिष्ठा के पोस्टरों की है।राजनीति के एल्गोरिदम को समझें तो हिंदुत्व से जुड़े हर मुद्दे का सबसे ज्यादा चुनावी फायदा भाजपा को गुजरात में ही हुआ है। यही वजह है कि राममंदिर का जितना फायदा पार्टी को यूपी में हो सकता है, उससे ज्यादा लाभ यहां होने की उम्मीद है।
पहली बार ऐसा जब घोषणा करने के बाद दो उम्मीदवार बदलने पड़े
राज्य में भाजपा को पहली बार घोषणा के बाद प्रत्याशी बदलने पड़े हैं। ये सीटें हैं बड़ौदा व सांबरकांठा। बड़ौदा से रंजनबेन भट्ट को टिकट मिला था। भट्ट दो बार से सांसद हैं। पर, विरोध इतना हुआ कि उनसे टिकट वापस ले लिया गया। कहा ये भी गया कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल की पसंद न होने के कारण उन्हें सीट छोड़नी पड़ी। सांबरकांठा में भीखाजी ठकोर को टिकट दिया। लेकिन, विरोध के स्वर का बहाना बनाकर टिकट बदलना पड़ा। ये कांग्रेस से भाजपा में आए पॉलिटिकल कल्चर का हिस्सा माना जा रहा है। चार महीने में कांग्रेस के चार विधायक इस्तीफा दे चुके हैं। वहीं अमरेली और सुरेंद्र नगर में भाजपा के एक बड़े नेता के बदले छोटे नेता को टिकट देने को लेकर पार्टी के कार्यकर्ता बंट गए हैं और चुनौतियां बढ़ गई हैं।
भाजपा के लिए चुनौती बनीं पांच सीटें
- भरूच : ये सीट कांग्रेस के बड़े नेता अहमद पटेल की पारंपरिक सीट रही है। इस बार कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सीट बंटवारे में यह आम आदमी पार्टी के हिस्से आई है। यहां कांग्रेसी चाहते थे कि टिकट अहमद पटेल के परिवार के किसी व्यक्ति को मिले। आप पार्टी ने चेतन वसावा को टिकट दिया है और उनसे मुकाबले में भाजपा के 6 बार के सांसद मनसुख वसावा हैं। चेतन वसावा की आदिवासियों में अच्छी पकड़ है। आम आदमी पार्टी उनके नाम का एलान तब कर चुकी थी, जब कांग्रेस के साथ गठबंधन तक नहीं हुआ था।
- राजकोट : केंद्रीय मंत्री रूपाला के क्षत्रियों पर दिए बयान के बाद शुरू हुए विवाद का असर सिर्फ गुजरात ही नहीं बाकी राज्यों में भी देखने को मिल रहा है। राजकोट और सौराष्ट्र के शहरों में बड़े प्रदर्शन-सम्मेलन हुए है, लेकिन क्षत्रिय वोट पर कितना असर डाल पाएंगे इसका गणित अभी साफ नहीं। हालांकि रूपाला ने बयान के लिए माफी मांग ली है। यह भी कहा, गलती मैंने की है। गुस्सा पीएम मोदी पर न निकालें।
- भावनगर : सौराष्ट्र यूं तो भाजपा का गढ़ है लेकिन, इस सीट पर भाजपा की मुश्किलें बढ़ाने वाले दो बड़े कारण हैं। एक यहां से आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ समझौते में अपना उम्मीदवार खड़ा किया है। दूसरा, भावनगर पर रूपाला को लेकर हुए क्षत्रियों के विवाद का सीधा असर पड़ सकता है।
- बनासकांठा : यहां टक्कर दो महिलाओं के बीच है। कांग्रेस की गेनी बेन चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा की प्रत्याशी रेखा चौधरी हैं। गेनी बेन की छवि पावरफुल नेता की है और उनका स्थानीय संपर्क काफी मजबूत है। वहीं, रेखा चौधरी उस परिवार से आती हैं जिसने बनास डेरी की शुरुआत की। गेनी बेन का अंदाज काफी चर्चा में है। वह ट्रैक्टर पर बैठकर नामांकन भरने गई थीं। घूंघट निकालकर मंच से भाषण देने और कभी आंखें भर-भर रो पड़ने को लेकर उनका जिक्र होता ही रहता है। दो बार से वह विधायक भी हैं।
- जूनागढ़ : जूनागढ़ को लेकर प्रत्याशी का विरोध काफी मजबूत है। यहां से भाजपा ने राजेश चुडासमा को टिकट दिया है। उन्हें लेकर एक डॉक्टर की हत्या से जुड़े केस की काफी चर्चा हो रही है।