Parshuram Jayanti 2024: आज वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि और अक्षय तृतीया पर 10 मई 2024 को भगवान परशुराम की जयंती के अवसर पर उनकी भूमि पर चर्चा करेंगे.
दक्षिण गोवा, Poinguinim में भगवान परशुराम का एक पुरातन मंदिर है, जिसे लेकर ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम ने इसी जगह इस नगरी का अपने धनुष–बाण और फरसा के माध्यम से यहां नगर बसाया था. यह प्रमाण अपको महाभारत (खिलभाग हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व 39.39–31 में भी मिलता है. श्लोक इस प्रकार हैं–
त्वया सायकवेगेन क्षिप्तो भार्गव सागरः। इषुपातेन नगरं कृतं शूर्पारकं त्वया॥ 29
धनुः पञ्चशतायाममिषुपञ्चशतोच्छ्रयम्। सह्यस्य च निकुञ्जेषु स्फीतो जनपदो महान्॥ 30
अतिक्रम्योदधेर्वेलामपरान्ते निवेशितः। त्वया तत् कार्तवीर्यस्य सहस्त्रभुजकाननम्॥ 31
अर्थ– भृगुनन्दन! आपने अपने बाण के वेग से समुद्र को पीछे ढकेल दिया और जितनी दूरी में बाण गिरा समुद्र से उतनी ही भूमि लेकर वहां शूर्पारक नगर का निर्माण किया. उस नगर की लम्बाई पांच सौ धनुष और चौड़ाई पांच सौ बाण हैं (धनुष चार हाथ लम्बा और बाण दो हाथ लम्बा माना गया है). सह्यपर्वत के निकुंजों में वह समृद्धिशाली महान जनपद बसा हुआ है.आपने समुद्रवेला का उल्लंघन करके अपरान्त देश में (जो पश्चिम समुद्र के तटपर है, आजकल गोवा नाम से प्रसिद्ध है) उस महान जनपद को बसाया है. आपने ही उस जंगल को अपने फारसे से काटा था.
यह सब बातें बहुत पुरानी है और कई लोग इस बात पर विश्वास ही नहीं करते. गोवा में कई विदेशी आक्रांता आए और जगह हथिया ली लेकिन भगवान परशुराम का आधार नष्ट नहीं कर पाए, वह मंदिर आज तक विद्यमान हैं और भगवान परशुराम की याद दिलाता है.
आज भगवान परशुराम की जयंती हैं या जन्मोत्सव?
कोई भी संस्कृति या हिंदी डिक्शनरी में कही प्रमाणित नहीं होता कि जयंती केवल मरे हुए व्याक्ति की मनाई जाती है और तो और जन्मोत्सव तो जयंती का पर्यायवाची शब्द है. अब कुछ लोग जयंती शब्द पर आक्षेप करने लगे हैं और इसे परशुराम जन्मोत्सव बोलने के लिए कह रहे हैं. उनका यह तर्क है कि जयंती तो मृत लोगों की होती है.
परन्तु जयंती तो शास्त्र सम्मत शब्द है जिसका प्रयोग सदियों से हो रहा है. जन्मोत्सव से केवल तिथि ज्ञात होती हैं लेकिन जब वह किसी नक्षत्र से जुड़ती है तब उसकी शुभता बढ़ जाती है. इसके लिए प्रथम जयंती को समझ लें, अग्नि पुराण 183.2 में लिखा है कि भगवान कृष्ण मध्य रात्रि में जन्मे इसलिए यह जयंती कहा गया है (यतस्तस्यां जयन्ती स्यात्ततोऽष्टमी । सप्तजन्मकृतात्पापात्मुच्यते चोपवासतः॥) यहां स्पष्टतः जयंती शब्द प्रयोग हुआ है कृष्ण जन्म के समय.
(व्रतउत्स्व चंद्रिका में भी 1923 को प्रकाशित) लिखा है यह दिन परशुराम जयंती कहलाएगा. जयंती तो जन्मोत्सव का ही पर्यायवाची शब्द है. इस बात को कोई साक्ष्य भी उपलब्ध नहीं कि जयंती शब्द उन लोगों के लिए कहा जाएगा जो मर चुके हैं. परशुराम जयंती तो निर्णय सिंधु में भी वर्णित हैं –
परशुरामजयन्तीनिर्णयः। इयमेव तृत्तीया परशुरामजयंती। सा प्रदोषव्या- पिनी ग्राह्या । तदुक्तं भार्गवार्चनदीपिकायां स्कांदभविष्ययोः ” वैशाखस्य सिते पक्षे तृतीयार्या पुनर्वसौ । निशायाः प्रथने याने रामाख्यः समये हरिः ॥ स्योञ्चनैः षड्ङ्ग्रहैर्युक्ते मिथुने राहुसस्थिते । रेणुकायास्तु यो गर्भादवतीर्णो हरिः स्वयम्” ॥2॥
अर्थ – यहीं तृतीया परशुराम जयंती है वह प्रदोष व्यापिनी ग्रहण करनी. यही भार्गवार्चन चंद्रिका में स्कंद और भविष्य के वाक्य से लिखा है कि, वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर के समय राम नाम हारने रेणुका के गर्भ से अवतार लिया और उस समय उच्च के छः ग्रह और मिथुन का राहु था.
आप जयंती कह लें या जन्मोत्सव भक्तों को तो भगवान परशुराम की वंदना करनी है.
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