कलकत्ता हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट से भी भाजपा को झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने विज्ञापन मामले में दी गई याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है। दरअसल, अदालत ने आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन में तृणमूल कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं के खिलाफ विज्ञापन जारी करने से रोकने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली भाजपा की याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस तरह के विज्ञापन अपमानित करने वाले हैं। आप कह सकते हैं कि आप सबसे अच्छे हैं लेकिन दूसरों के बारे में इस तरह की बातें नहीं कर सकते। हम आपको इस तरह की कटुता बढ़ाने की छूट नहीं दे सकते। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा की याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की अवकाशकालीन पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा, ‘प्रथम दृष्टया विज्ञापन अपमानजनक है।’ भाजपा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने पीठ द्वारा इस मामले पर विचार करने से इनकार करने के बाद मामले को वापस लेने की अनुमति मांगी। पीठ ने मामले को वापस लिया गया यह मानकर खारिज कर दिया।
चुनावी प्रक्रिया के दौरान मानक बनाकर रखें
जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस केवी विश्वनाथन की वैकेशन बेंच कहा कि राजनीतिक दलों को ध्यान रखना चाहिए कि वे चुनावी प्रक्रिया के दौरान भी अपना मानक बनाकर रखें और एकता अखंडता को बनाए रखें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब साफ-साफ दिख रहा है कि इस तरह के विज्ञापन आपत्तिजनक हैं तो हाईकोर्ट के आदेश में दखल क्यों दिया जाए।
बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि टीएमसी ने चुनाव आयोग के पास भी शिकायत की थी। कोर्ट ने कहा, आखिर चुनाव आयोग ने अब तक क्या किया? क्या आदेश के बाद भी आयोग ने कोई कदम उठाया? हमें तो कुछ पता नहीं चला। टीएमसी ने 4, 5, 10 और 12 मई के वेज्ञापन पर लिखित शिकायत की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने पटवालिया से कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देना चाहता। इसके बाद उन्होंने खुद ही अपनी याचिका वापस ले ली। बता दें कि पश्चिम बंगाल में आखिरी चरण का मतदान 1 जून को होना है। राज्य की 42 लोकसभा सीटों पर सभी चरणों में मतदान संपन्न कराया गया है।
हाईकोर्ट ने किया था हस्तक्षेप करने से इनकार
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को एकल पीठ के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट से झटका लगा था। हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल पीठ के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें भाजपा को लोकसभा चुनाव प्रक्रिया के दौरान आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वाला कोई भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं करने का निर्देश दिया गया था। इसके बाद भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
मामले में पीठ ने पूछा था कि आप इसे अगली अवकाश पीठ का रुख क्यों नहीं करते हैं। भाजपा की ओर से पेश वकील सौरभ मिश्रा ने बताया था कि हाईकोर्ट ने भाजपा को लोकसभा चुनाव के दौरान चार जून तक विज्ञापन जारी करने से रोक दिया है। वकील ने कहा था कि आप कृपया 27 मई को मामले की सुनवाई करें। इस पर पीठ ने कहा था कि हम देखते हैं।
सुनवाई का मौका नहीं देने का लगाया आरोप
भाजपा ने यह दावा करते हुए अपील दायर की थी कि एकल पीठ ने उसे कोई सुनवाई का मौका दिए बगैर ही यह आदेश जारी कर दिया। भगवा पार्टी के वकील ने यह भी कहा था कि संविधान में प्रावधान है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए निर्वाचन आयोग उपयुक्त प्राधिकार है।
चार जून तक विज्ञापनों को प्रकाशित करने से रोका
हाईकोर्ट ने 20 मई को एक आदेश जारी कर भाजपा को चार जून तक आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले विज्ञापनों को प्रकाशित करने से रोक दिया। लोकसभा चुनाव प्रक्रिया चार जून को समाप्त होगी। अदालत ने आदेश में भाजपा को उन विज्ञापनों को प्रकाशित करने से भी रोक दिया था, जिनका उल्लेख तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अपनी याचिका में किया था। टीएमसी ने विज्ञापन में पार्टी और कार्यकर्ताओं के खिलाफ असत्यापित आरोप लगाए जाने का दावा किया था।
अदालत ने कहा था कि याचिकाकर्ता टीएमसी द्वारा संलग्न समाचार पत्रों के विज्ञापनों को देखने से पता चलता है कि ये एमसीसी का उल्लंघन हैं। अदालत ने शिकायतों का तुरंत समाधान नहीं करने के लिए निर्वाचन आयोग के प्रति भी अप्रसन्नता जताई थी।
टीएमसी की ओर से पेश वकील ने दलील दी थी कि भाजपा कुछ समाचार पत्रों में पार्टी को निशाना बनाकर विज्ञापन प्रकाशित करवा रही है जिसमें एमसीसी और निर्वाचन आयोग द्वारा जारी दिशानिर्देश का उल्लंघन हुआ है।