पुणे पोर्श मामला
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पुणे पुलिस ने पोर्श कार हादसे में करीब दो महीने बाद 900 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की है। इस मामले में शुरुआत में, किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) ने घटना के तुरंत बाद एक रियल एस्टेट डेवलपर के बेटे को जमानत दे दी थी और उसे सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने का निर्देश दिया था। जिसकी कड़ी आलोचना के बाद, पुलिस ने फिर से जेजेबी से संपर्क किया, जिसके बाद संशोधित आदेश जारी हुआ, जिसके तहत आरोपी किशोर को पर्यवेक्षण गृह में भेज दिया गया।
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मामले में पुलिस ने इन लोगों को किया है गिरफ्तार
वहीं इस मामले में आरोपी के माता-पिता और अस्पताल के कर्मचारियों के अलावा, पुलिस ने घटना के संबंध में उसके दादा को भी हिरासत में लिया है। फिर कथित तौर पर मध्यस्थ के रूप में काम करने और आरोपी डॉक्टरों और किशोर के पिता के बीच वित्तीय लेनदेन में सहायता करने के आरोप में दो और लोगों को गिरफ्तार किया गया।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिहाई का आदेश दिया
मामले में 25 जून को, हादसे में शामिल नाबालिग को बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद पर्यवेक्षण गृह से रिहा कर दिया गया। तब तक आरोपी करीब 36 दिनों तक किशोर न्याय बोर्ड के निगरानी गृह में था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाबालिग को निगरानी गृह में भेजने के आदेश को अवैध माना था और इस बात पर जोर दिया कि किशोरों से संबंधित कानून का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि न्याय को हर चीज से ऊपर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।