शिव की नगरी काशी…।
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शिव की नगरी काशी…। दुनिया का इकलौता शहर जहां लोग मोक्ष की कामना से आते हैं। उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर विराजमान काशीपुराधिपति अपने भक्तों के कान में राम नाम का तारक मंत्र देकर शिव सायुज्य प्रदान करते हैं। मोक्षदायिनी नगरी काशी में संसार के स्वयंभू 42 मुक्ति महालिंग शिवभक्तों के लिए मुक्ति का मार्ग खोलते हैं और कलिकाल के समस्त पापों को भी हर लेते हैं।
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काशी खंड के स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने मां पार्वती से काशी के मुक्ति महालिंगों के बारे में बताया है। स्कंद पुराण में वर्णित है कि इन मुक्ति महालिंगों के कारण ही काशी मुक्तिपुरी के नाम से प्रसिद्ध हुई है। काशी में सहस्त्रों शिवलिंग विराजमान हैं।
कोई स्वयंभू है तो किसी को देवता ने, ऋषि ने, किसी को यक्ष तो किसी को राक्षसों और मनुष्यों ने स्थापित किया है। काशी करवत मंदिर के महेश उपाध्याय का कहना है कि गंगा जल में साठ करोड़ सिद्धलिंग हैं जो कलयुग में अदृश्य हैं।
बीएचयू के धर्म विज्ञान संकाय के प्रो. माधव जनार्दन रटाटे का कहना है कि मोक्ष के मूल में सर्वप्रथम 14 महालिंग हैं। इसमें सर्वप्रथम ओंकारेश्वर महादेव हैं। इसके बाद त्रिलोचन महादेव, महादेव, कृतिवासेश्वर, रत्नेश्वर, चंद्रेश्वर, केदारेश्वर, धर्मेश्वर, वीरेश्वर, कामेश्वर, विश्वकर्मेश्वर, मणिकर्णिकेश्वर, अविमुक्तेश्वर और 14वें नंबर पर विश्वेश्वर महालिंग विराजमान हैं। यह सभी 14 महालिंग मोक्षश्री की जड़ हैं। इन्हीं के स्थान को मुक्तिक्षेत्र कहा गया है। आनंदवन में यह 14 महालिंग भक्तों को मुक्ति प्रदान करते हें।