Sawan Somvar 2024: शिव जी (Lord Shiva) सोमवार के प्रधान देवता हैं इस दिन किया हुआ व्रत फलदायक माना गया है. लेकिन शास्त्रों में श्रावण मास (Sawan Month 2024) के सोमावर व्रत (Somvar Vrat) को विशिष्ट माना गया है. चालिए देखते हैं श्रावण सोमवार के बारे में शास्त्र क्या कहते है.
स्कंद पुराण (Skanda Purana) श्रावण माहात्म्य अध्याय क्रमांक 6 के अनुसार, भगवान शिव कहते है की सूर्य मेरा नेत्र है; उसका माहात्म्य इतना श्रेष्ठ है, तो फिर उमासहित (सोम) मेरे नाम वाले उस सोमवार का कहना ही क्या? उसका जो माहात्म्य मेरे लिए वर्णन के योग्य है, सोम चन्द्रमा का नाम है; यज्ञों का साधन सोम को कहा हैं. क्योंकि सोम वार मेरा ही स्वरूप है, अतः इसे सोम कहा गया है. इसीलिए यह समस्त राज्य का प्रदाता तथा श्रेष्ठ है.
सावन सोमवार व्रत का महत्व (Sawan Somvar Vrat Importance)
व्रत करने वाले को यह सम्पूर्ण राज्य का फल देने वाला है. उसकी विधि इस प्रकार है. बारहों महीनों में सावन अत्यन्त श्रेष्ठ हैं. उन मासों में यदि [सोमवार व्रत] करने में असमर्थ हो तो ’श्रावण मास’ में इसे अवश्य करना चाहिए. इस मास में इस व्रत को करके मनुष्य वर्ष भर के व्रत का फल प्राप्त करता है. श्रावण में शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को यह संकल्प करे कि “मैं विधिवत् इस व्रत को करूंगा; शिवजी मुझपर प्रसन्न हों.”
इस प्रकार चारों सोमवार के दिन और यदि पांच हो जाए तो उसमें भी प्रातःकाल यह संकल्प करें और रात्रि में शिवजी का पूजन करें. सोलह उपचारों से शिवजी की पूजा करें और एकाग्रचित्त होकर इस दिव्य कथा का श्रवण करें. इस सोमवार व्रत की विधि को कुछ इस प्रकार है.
सावन सोमवार व्रत विधि (Sawan Somvar Vrat Vidhi)
श्रावण मास के प्रथम सोमवार को इस श्रेष्ठ व्रत को प्रारम्भ करें. मनुष्य को चाहिए कि अच्छी तरह स्नान करके पवित्र होकर श्वेत वस्त्र धारण कर ले और काम, क्रोध, अहंकार, द्वेष, निन्दा आदि का त्याग करके मालती, मल्लिका आदि श्वेत पुष्पों को लाए. इनके अतिरिक्त अन्य विविध पुष्पों से तथा अभीष्ट पूजनोपचारों के द्वारा ‘त्र्यम्बक०’ इस मूलमन्त्र से शिवजी की पूजा करे. इसके बाद यह कहे- मैं शर्व, महादेव, उग्र, उग्रनाथ, भव, शशिमौलि, रुद्र, नीलकण्ठ, शिव तथा भवहारी का ध्यान करता हूं, इस प्रकार अपने विभव के अनुसार मनोहर उपचारों से देवेश शिव का विधिवत् पूजन करें.
जो इस व्रत को करता है उसके पुण्य-फल को सुनिए. जो लोग सोमवार के दिन माता पार्वती सहित शिवजी की पूजा करते हैं, वे पुनरावृत्ति से रहित अक्षय लोक प्राप्त करते हैं. इस मास में नक्तव्रत से जो पुण्य होता है, उसे शिव जी संक्षेप में समझाते हैं. शिव जी कहते है कि देवताओं तथा दानवों से भी अभेद्य सात जन्मों का अर्जित पाप नक्त भोजन से नष्ट हो जाता है.
इसे करने से धन चाहने वाला धन प्राप्त करता है; वह जिस-जिस अभीष्ट की कामना करता है, उसे पा लेता है. इस लोक में दीर्घकाल तक वांछित सुखोपभोगों को भोगकर अन्त में श्रेष्ठ विमानपर आरूढ़ होकर वह रुद्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है. चित्त चंचल है, धन चंचल है और जीवन भी चंचल है-ऐसा समझकर प्रयत्नपूर्वक व्रत का उद्यापन करना चाहिए. चाँदी के वृषभ पर विराजमान सुवर्ण निर्मित शिव तथा पार्वती की प्रतिमा अपने सामर्थ्य के अनुसार बनानी चाहिए. इसमें धन की कृपणता नहीं करनी चाहिए (अगर सामर्थ्य नहीं है तो चित्र अथवा पाषाण की प्रतिमा में पूजन करें).
तदनन्तर एक दिव्य तथा शुभ लिंगतोभद्र-मण्डल बनाएं और उसमें दो श्वेत वस्त्रों से युक्त एक घट स्थापित करें. घट के ऊपर तांबे अथवा बांस का बना हुआ पात्र रखे और उसके ऊपर उमासहित शिव को स्थापित करे. इसके बाद श्रुति, स्मृति तथा पुराणों में कहे गए मन्त्रों से शिवकी पूजा करे, पुष्पों का मण्डप बनाएं और उसके ऊपर सुन्दर चंदोवा लगाएं.उसमें बाजों की मधुर ध्वनि के साथ रात में जागरण करें.
फिर बुद्धिमान् मनुष्य अपने गृह्यसूत्र में निर्दिष्ट विधान के अनुसार अग्नि-स्थापन करे और फिर शर्व आदि ग्यारह श्रेष्ठ नामों से पलाश की समिधाओं से एक सौ आठ आहुति प्रदान करे; यव, ब्रीहि, तिल आदि की आहुति ‘आप्यायस्व०’ इस मन्त्र से दे और बिल्व–पत्रों की आहुति ‘त्र्यम्बक०’ या षडक्षर मन्त्र (ॐ नमः शिवाय) से प्रदान करे.
इसके बाद तत्पश्चात् स्विष्टकृत् होम करके पूर्णाहुति देकर आचार्य का पूजन करे. इसके बाद पूजित देवता को तथा देवता को अर्पित सभी सामग्री आचार्य को दे और तत्पश्चात् प्रार्थना करे- ”मेरा व्रत परिपूर्ण हो और शिवजी मुझपर प्रसन्न हों.” तदनन्तर बन्धुओं के साथ हर्ष पूर्वक भोजन करे. इसी विधान से जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह जिस-जिस अभिलषित वस्तु की कामना करता है, उसे प्राप्त कर लेता है और अन्त में शिव–लोक को प्राप्त होकर उस लोक में पूजित होता है.
क्या आपको पता है की श्रावण सोमवार की शुरुवात किसने की थी?
स्कंद पुराण श्रावण माहात्म्य 6.34 अनुसार–
“कृष्णेनाचरितं पूर्व सोमवारव्रतं शुभम्”
सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण ने इस मंगलकारी सोमवार व्रत को किया था. श्रेष्ठ, आस्तिक तथा धर्म–परायण राजाओं ने भी इस व्रत को किया था. जो इस व्रत का नित्य श्रवण करता है, वह भी उस व्रत के करने का फल प्राप्त करता हैं.
सोमावर व्रत या अन्य व्रत रखने का वैज्ञानिक पक्ष:–
शास्त्र के साथ ही अब वैज्ञानिक पक्ष पर दृष्टि डालते हैं. हम आज के युग के अनुसार सोचते हैं. हम प्रत्येक माह के 30 दिनों तक तामसिक भोजन का ही आहार ग्रहण करते हैं, जिसके कारण शारीर रोग ग्रस्त होता है और हमारी आयु भी कम होती है. हर माह में दो एकादशी आती है, मासिक शिवरात्रि आती है और भी कई पर्व हर माह में जुड़े होते हैं. इसलिए ऋषियों ने बहुत ही अच्छा और सरल उपाय बताया है अपनी आयु में वृद्धि लाने का और अध्यात्म की ओर रुचि बढ़ाने का. आप जितने व्रत रखेंगे उतना ही आपका शरीर और मन सात्विक होगा.
क्योंकि व्रत के समय हम कंद-मूल आदि ही खाते हैं जोकि हमारे शरीर के लिए पौष्टिक होते हैं, वह तामसिक भोजन नहीं होता है. जितने भी पर्व है उसमें व्रत रख लिया तो आपके लिए वास्तव में एक तरह से आपकी शुद्ध हो जाती है. शरीर को भी Detoxify (विषहरण) करना जरूरी है, व्रत उसके लिए सबसे अच्छा उपाय हैं. व्रत रखने से आपकी आयु भी बढ़ती है और तो और आपके अध्यात्म दर्शन की भी वृद्धि होती हैं.
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