बॉम्बे हाई कोर्ट
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महाराष्ट्र सरकार की लड़की बहिन योजना को लेकर दाखिल PIL को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह महिलाओं के लिए लाभकारी योजना है और इसे भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता। मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि सरकार को किस तरीके से कोई योजना बनानी है, यह अदालत के दायरे से बाहर है। यह एक नीतिगत निर्णय है। हम इसमें तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकते जब तक कि किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन न हो।
मुंबई के एक चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीद अब्दुल सईद मुल्ला ने महाराष्ट्र सरकार की ‘मुख्यमंत्री माझी लड़की बहिन योजना’ के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी। उन्होंने दावा किया कि यह योजना करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ डालेगी। याचिकाकर्ता ने नौ जुलाई को योजना शुरू करने वाले सरकारी प्रस्ताव को रद्द करने की मांग की है। इस प्रस्ताव के मुताबिक, 21 से 65 आयु वर्ग की उन महिलाओं के बैंक खातों में 1,500 रुपये का मासिक भत्ता हस्तांतरित किया जाएगा। जिनकी पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अदालत सरकार के लिए योजनाओं की प्राथमिकता तय नहीं कर सकती है। याचिकाकर्ता को मुफ्त और सामाजिक कल्याण योजना के बीच अंतर करना होगा। मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने कहा कि आज की सरकार का हर फैसला राजनीतिक है। वह सरकार से एक या दूसरी योजना शुरू करने के लिए नहीं कह सकती।