कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर के साथ दरिंदगी का मामला पूरे हफ्ते सुर्खियों में रहा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर स्वत: संज्ञान लिया। अब तक हुई सुनवाई में राज्य सरकार और प्रशासन पर कई गंभीर सवाल उठे हैं। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अपील के बाद डॉक्टरों ने हड़ताल खत्म कर दी। वहीं, पूर्व प्राचार्य और आरोपी समेत छह लोगों का पॉलीग्राफिक टेस्ट भी हुआ। इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी में इसी मुद्दे पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, अवधेश कुमार, पूर्णिमा त्रिपाठी और शांतनु गुप्ता मौजूद रहे।
समीर चौगांवकर: किसी घटना के होने के बाद प्रशासन कैसे प्रतिक्रिया देता है, यह बहुत मायने रखता है। इस घटना के बाद ममता सरकार का रुख यह बताता है कि उन्होंने इसे बहुत हल्के में लिया। पूरे घटनाक्रम को देखकर लगता है कि किसी को बचाने की कोशिश की गई। हाईकोर्ट की डांट के बाद सीबीआई को मामला सौंपा जाता है। जिस तरह से सबूतों को मिटाने की कोशिश हुई, उसमें पूरे मामले में पश्चिम बंगाल पुलिस की संलिप्तता रही है। सुप्रीम कोर्ट ने जो बात कही है, उससे लगता है कि जो बातें सबके जेहन में थीं, वही बातें सामने आई हैं।
विनोद अग्निहोत्री: यह सवाल सिर्फ आधी आबादी का नहीं है। यह सवाल पूरी आबादी का है। कोलकाता की घटना हो, उत्तराखंड की घटना हो या बदलापुर की घटना हो, इन घटनाओं में राजनीतिक दलों का नजरिया चयनात्मक रहता है। निर्भया कांड इस मामले में मील का पत्थर था। उसके बाद सख्त कानून बना। इसके बाद भी इस तरह की घटनाएं बढ़ीं। जिस तरह से कोलकाता मामले में बंगाल सरकार ने रवैया अपनाया या पहले की घटनाओं में अलग-अलग सरकारों ने रवैया अपनाया, जब तक यह नहीं बदलेगा, तब तक इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी।
शांतनु गुप्ता: जब भी उत्तर प्रदेश में कोई मामला होता है तो उसकी रिपोर्टिंग दस गुना होती है। बंगाल में मामला वीभत्स हो गया इसलिए यह दिल्ली के मीडिया तक पहुंचा। बंगाल सरकार ने इस मामले में 21 वकील खड़े कर दिए। इस तरह के मामले में अगर विपक्ष के सबसे बड़े नेता की प्रतिक्रिया चार दिन बाद आएगी तो सवाल तो उठेगा।
अवधेश कुमार: कोई घटना कितनी भी वीभत्स हो उस पर सत्ता कैसे प्रतिक्रिया दे रही, यह बहुत अहम होता है। यह मामला कुल मिलाकर पश्चिम बंगाल के सत्ता तंत्र के एक माफिया में बदल जाने का परिणाम है। किसी मामले में 21 वकील खड़े कर देने से क्या इसमें राज्य का पैसा नहीं जा रहा है और ये वकील क्या पीड़िता के लिए लड़ रहे हैं? एक भी शपथ पत्र पीड़िता के पक्ष में दिखा दीजिए।
पूर्णिमा त्रिपाठी: अपने-अपने हिसाब से हर कोई नरेटिव बना रहा है। जब तक महिलाओं पर होने वाले अपराध को हम सत्ता के लिए मोहरा बनाते रहेंगे, तब तक ये अपराध रुकेंगे नहीं। जब तक इन मामलों को अपराध की तरह नहीं लिया जाएगा, तब तक ये अपराध नहीं रुकेंगे। एक तरफ ममता बनर्जी की तरफ से मामले को ढंकने की कोशिश शुरू से दिखती रही तो दूसरी तरफ से भी मामले को अपने राजनीतिक फायदे के हिसाब से उठाया गया। अस्पताल जैसी जगह पर अगर एक महिला डॉक्टर सुरक्षित नहीं, तब और कहां महिलाओं के लिए काम की सुरक्षित जगह मिलेगी। यह सभी की विफलता है।
रामकृपाल सिंह: इस मामले में निर्भया की तरह ही महिला डॉक्टर के साथ यह सब हुआ। 36 घंटे की ड्यूटी के बाद लाश मिली। घटना के बाद मैसेज क्या जाएगा? वह कौन है, जिसने इसे आत्महत्या बताने की कोशिश की या किसके कहने पर यह कोशिश की गई। वो बड़ा गुनहगार है। माता-पिता को ढाई घंटे तक रोका गया। यह उस आरोपी ने तो नहीं किया होगा। यह जिसने किया वो उससे बड़ा हत्यारा है। उसके बाद जो क्रम रहा है, उसकी जांच होनी चाहिए। यह संस्थागत अपराध है।