निर्देशक अनुभव सिन्हा की फिल्मोग्राफी पर शुरू से नजर रखने वाले जानते हैं कि अपनी पहली फिल्म ‘तुम बिन’ से पहले ही उन्होंने सोनू निगम के कमाल के म्यूजिक वीडियोज बनाकर अपना एक अलग ही फैन बेस बनाया। ये फैन बेस है तकनीकी रूप से दक्ष एक फिल्मकार का। अनुभव ने मसाला फिल्में खूब बनाईं और बदलते हालात पर टिप्पणी करनी वाली सामाजिक-राजनीतिक फिल्में भी खूब बनाईं। अब इन दोनों तरह के सिनेमा का मिलन हुआ है उनकी पहली वेब सीरीज ‘आईसी 814: द कंधार हाईजैक’ में। अनुभव सिन्हा से ये खास बातचीत की ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने।
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अनुभव, आपका सिनेमा ‘मुल्क’ से पहले के और ‘मुल्क’ के बाद के सिनेमा मे स्पष्ट रूप से बंटा दिखता है। अब ‘आईसी 814’ को आपने किस नजरिये से बनाया है। क्या ये एक संपूर्ण मनोरंजक सीरीज है या फिर एक पत्रकार की तरह किसी घटना की तफ्तीश करती कहानी? या फिर दोनों का मिश्रण?
इसमें क्या है कि एक तीसरा फेज है जो शुरू होने वाला है। दोनों समुंदरों में थोड़ा-थोड़ा समय बिताने के बाद कोशिश ये है कि दोनों समुद्रों से थोड़े-थोड़े से मोती निकाल करके एक नई माला पिरोई जाए। यह सीरीज जो है यह दोनों के बीच का एक पुल है। कभी आज से 20-25 साल बाद मैं रहा तो मुड़ के देखूंगा या आप लोग देखिएगा तो पता चलेगा कि ये वो ब्रिज था जिसके रास्ते में तीसरे समुद्र में पहुंच गया।
तो बतौर फिल्मकार ये आपका एक नया विकास बिंदु है? या फिर एक नया प्रयोग है एक नई बात कहने की दिशा में?
प्रयोग तो नहीं बोलूंगा इसको। लेकिन, आप देखेंगे तो मैं म्यूजिकल रोमांस फिल्म से शुरू करके एक्शन में गया, वहां से सुपरहीरो में गया और वहां से फिर एकदम दूसरी तरफ चला गया। पहले लिखते समय या कुछ बनाते समय मेरा ध्यान एंटरटेनमेंट पर होता था। फिर मेरा फोकस उस सोशल पॉलीटिकल विचार पर चला गया, जो मेरे दिल में था। लेकिन, ये भी है कि अगर इन दोनों को ठीक से मिला दिया जाए तो कुछ दिलचस्प हो सकता है जो कि मुझे ऐसा लगता है कि इस सीरीज में हुआ है।
परदे पर अपनी दुनिया रचने वाले को भी ‘भगवान’ ही कहा जाता है, और यहां तो आपको एक ऐसी किताब के साथ एक ऐसी कप्तान भी मिलीं, जो आपकी फिल्ममेकिंग की फैन रही हैं? इस सीरीज को लेकर आपका नजरिया क्या रहा क्योंकि ये एक किताब पर बनी है?
जब मैं इस सीरीज में आया तो ये सीरीज लिखी जा चुकी थी। मैचबॉक्स शॉट्स की सरिता पाटिल ने और नेटफ्लिक्स इंडिया की हेड मोनिका शेरगिल की टीम ने तब तक अपने हिसाब से लिखने का काम पूरा कर लिया था। लेकिन जब मैं एक दर्शक की तरह इसे पढ़ने बैठा तो मुझे इस बात को लेकर कौतुहूल ज्यादा था कि नीचे क्या चल रहा है। विमान के अलावा और बाकी जगहों पर क्या चल रहा है? विमान काठमांडू में ही क्यों हाइजैक हुआ? काठमांडू से सीधा कंधार क्यों नहीं जा रहे? काबुल क्यों नहीं जा रहे? इस प्रकार के तमाम सवाल थे जो मुझे परेशान कर रहे थे। जब आप दूर से देखेंगे तो ये आठ दिन की कहानी है और जब अपने 200 लोगों की जान खतरे में हो तो लोगों ने आठ दिन आलस में तो नहीं काटे होंगे। ये सारी बातें ही मुझे परेशान कर रही थीं।
और, इसी पत्रकारीय दृष्टिकोण के लिए ये सीरीज आपके पास आई?
ओटीटी वर्ल्ड में ऐसा पहले कभी हुआ नहीं है और मैंने ये बात किसी को बताई भी नहीं है। लेकिन, आपको बता देता हूं। ऐसा शायद पहली बार हुआ था कि किसी अधिकारी ने एक ओटीटी में नौकरी शुरू की और मुझे एक संदेश भेजा कि मैं मोनिका शेरगिल हूं। आपके साथ कुछ करना चाहती हूं। आमतौर पर एक फिल्मकार ही आवेदन लेकर मोनिका के पास जाता है। मोनिका का मैं इस बात के लिए बहुत सम्मान करता हूं और बहुत ऋणी हूं मैं इनका।