प्रतीकात्मक तस्वीर
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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक पारिवारिक मामले के फैसले में अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि एक दशक से अधिक पत्नी का पति से अलग रहना दर्शाता है कि कानूनी डोर से बंधे होने के बावजूद दोनों की शादी कल्पना बनकर रह गई है। ऐसी स्थिति मानसिक क्रूरता की ओर ले जाती है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने पति की पत्नी से तलाक लेने की अपील मंजूर कर ली।
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने यह फैसला हरदोई के एक पति की अपील पर दिया। अपील में हरदोई की पारिवारिक अदालत के उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें पति के पत्नी से तलाक लेने के दावे को खारिज कर दिया गया था।
पति का कहना था कि वर्ष 2012 में उसकी शादी हुई थी। इसके बाद 9 मई 2014 को पत्नी ने उसके घर रहना छोड़ दिया और एक दशक बाद भी नहीं आई। यहां तक कि अपील में नोटिस जारी होने पर भी कोर्ट में खुद या अधिवक्ता के जरिये नहीं पेश हुई। ऐसे में पति ने तलाक मंजूर किए जाने का आग्रह किया था।
कोर्ट ने कहा दस साल से अधिक समय से पत्नी नहीं लौटी है और अपील में भी वह पैरवी नहीं कर रही है। इससे पता चलता है कि वह पति के साथ संबंध नहीं रखना चाहती है। कोर्ट ने कहा यह परित्याग और क्रूरता को स्थापित करने के लिए पर्याप्त है। ऐसे में पति के पक्ष में तलाक मंजूर किए जाने के पर्याप्त आधार हैं।
कोर्ट ने कहा पति के तलाक के दावे को खारिज करने का पारिवारिक अदालत का फैसला कानून की नजर में ठहरने लायक नहीं है। इस टिप्पणी के साथ हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत हरदोई के वर्ष 2022 में दिए गए फैसले को रद्द कर दिया और विवाह को भंग करते हुए पति को तलाक की डिक्री मंजूर कर दी।