खबरों के खिलाड़ी।
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दो चुनावी राज्यों हरियाणा और जम्मू कश्मीर में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं। सभी राजनीतिक दलों ने उम्मीदवारों का एलान करना शुरू कर दिया है। उम्मीदवारों के नाम का एलान होने के साथ बगावत की खबरें भी आने लगी हैं। कई नेता पार्टी बदल रहे हैं तो कई सार्वजनिक मंच पर अपने आंसू तक नहीं रोक पा रहे हैं। इस हफ्ते के ‘खबरों के खिलाड़ी’ इन्हीं मुद्दो पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, सुनील शुक्ल, अवधेश कुमार और पूर्णिमा त्रिपाठी मौजूद रहे।
सुनील शुक्ल: हरियाणा में जो राजनीतिक घटनाक्रम दिखाता भाजपा उस स्थिति में नहीं है जिस स्थिति में पार्टी 2019 में थी। हालांकि, लोकसभा नतीजे बताते हैं कि विधानसभा वार भाजपा को 44 सीटों पर बढ़त मिली थी। वहीं, 42 सीटों पर कांग्रेस को बढ़त मिली थी। जो सरकार 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद अगर अपने काम पर वोट नहीं मांगती है तो इसे मैं सकारात्मक रूप से नहीं देखता हूं। गुजरात में भाजपा पूरी सरकार को बदल देती है, लेकिन वहां कोई विद्रोह नहीं दिखाई देता। दूसरी तरफ हरियाणा में बड़े पैमाने पर विरोध के सुर सुनाई दे रहे हैं। बजरंग और विनेश भाजपा के खिलाफ प्रतिरोध के चेहरे के तौर पर उभरे हैं।
अवधेश कुमार: जब पार्टी के प्रदेश स्तर के पदाधिकारी, पार्टी के सदस्य और विधायक विद्रोह पर उतारू हैं तो पार्टी को बाहर से विरोध की कहां जरूरत होगी। भाजपा में अगर यह विद्रोह नहीं होता तो मुझे आश्चर्य होता। एक पार्टी अगर विचारधारा पर चलती है तो वहां अगर बाहर से आए नेताओं को लाकर टिकट दे दिया जाता है तो पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है। भाजपा में मनोहर लाल खट्टर की सरकार के समय जो लोगों में असंतोष था वो हरियाणा में जाने पर पता चलता था। उन्हें वहां से निकालते ही दूसरी जगह पदस्थापना देने का भी असर होता है। मुख्यमंत्री के नेतृत्व का प्रभाव उस तरह का नहीं रहता है तो उसका भी असर पड़ता है। भाजपा के लिए यह पुनर्विचार का समय है।
विनोद अग्निहोत्री: कांग्रेस ने पहली सूची बहुत समझदारी से निकाली है। उन्होंने अपनी पहली सूची में ज्यादातर मौजूदा विधायकों को ही टिकट दिए। आमतौर पर कांग्रेस में इस तरह की समझदारी नहीं दिखती है। भाजपा की बात जहां तक तो वह अब वो पार्टी नहीं रही जिसमें चाल, चरित्र, चेहरे की बात होती थी। भाजपा के साथ 10 साल की एंटी-इनकंबेसी भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाता है कि जहां चुनाव होने वाला होता है वहां वो चुनाव की घोषणा से पहले ही चार-पांच दौरे हो जाते थे। महाराष्ट्र इसका ताजा उदाहरण है, लेकिन हरियाणा में वो नहीं गए। यह भी सोचने का विषय है।
रामकृपाल सिंह: आज की तारीख में मैं यह नहीं कह सकता हूं कि कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है। भाजपा अगर यह मानती है कि उसका डीएनए कभी नहीं बदलेगा। जो लोग आ रहे हैं उन्हें बदलना होगा वरना वो वापस चले जाएंगे। महाराष्ट्र में जिस तरह अजित पवार को लेकर आए, जिस तरह हरियाया में जजपा से विधायकों को टिकट मिला। इससे निश्चित तौर पर लगता है कि भाजपा में संगठन द्वारा कई लोगों को बताया तक नहीं गया। इतना ही कहूंगा कि लड़ाई कांटे की है और कोई भी जीत सकता है। लोकसभा चुनाव के बाद ये पहला चुनाव है। इसके जो भी नतीजे आएंगे उससे केंद्रीय राजनीति प्रभावित होगी।
पूर्णिमा त्रिपाठी: किसानों का मुद्दा हो या पहलवानों की बात हो या फिर अग्निवीर का मुद्दा। इन मुद्दों से कांग्रेस ने खुद को शुरू से जोड़े रखा। पहलवानों का कांग्रेस में आने पर यह कहना कि पहलवानों का आंदोलन कांग्रेस प्रायोजित था तो यह अतिशियोक्ति होगी। अब भाजपा से जो सुर उठ रहे हैं वो उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है। जिस तरह से आंदोलन में महिला पहलवानों के साथ व्यवहार हुआ उससे लोगों ने खुद को अपने साथ जोड़ा था। कांग्रेस की अभी एक दो सूची और आएगी। तब देखना होगा क्या होता है। अगर आप से गठबंधन नहीं होता है तो भी उसे थोड़ा नुकसान हो सकता है। कांग्रेस के लिए अभी स्थितियां ठीक हैं, लेकिन यह भी नहीं है कि कहा जाए कि उनकी सरकार बन ही जाएगी।