प्रेमानंद महाराज
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छत्रपति शाहूजी महाराज विवि के 39वें दीक्षांत समारोह में प्रेमानंद महाराज ने पीएचडी की मानद उपाधि लेने के प्रस्ताव को स्नेहपूर्वक मना कर दिया। प्रस्ताव लेकर वृंदावन स्थित श्रीहित राधाकेली कुंज आश्रम पहुंचे कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार यादव से कहा कि आपका सम्मान, मेरे लिए अपमान। उपाधि मिटाने के लिए ही तो बाबाजी बने हैं। कोई भी उपाधि साधु को छोटा बना देती है।
रजिस्ट्रार ने बताया कि उनसे करीब 25 मिनट की मुलाकात रही। उन्होंने कई आध्यात्मिक ज्ञान वर्धन किया। कहा जो गलत करें, उसको दंड अवश्य मिले। एक-दो बार गलती करें तो सुधरने या क्षमा करने का मौका दिया जाना चाहिए, वह भी अगर अपराध क्षमा करने योग्य है तो। बोले, हमारी जो आलौकिक उपाधि है, उसमें बाधा है, सिद्धियां और मोक्ष भी है। हम भगवान के सेवक हैं, उनकी सेवा में हैं। उसके आगे जो कुछ भी है, हमारी दृष्टि में वह सब कूड़ा है।
उन्होंने रजिस्ट्रार से कहा कि आपका भाव तो बेहद उच्च कोटि का है। जगत की उन्नति तो अहम को सजाना है, जबकि भक्त की उन्नति अहम को मिटाना है। हमारे मार्ग में कोई पदवी नहीं है। मेरे संसार का जो स्वरूप है, मैं उन सबका दास हूं, यही मेरी उपाधि है। रही, केवल पीएचडी की बात, तो हम लोग मन की पीएचडी किए हुए हैं। उसकी कोई पढ़ाई नहीं होती, वह केवल साधना से मिलती है। बाहरी डिग्री और बाहरी उपाधि से हमारा उपहास होगा न कि सम्मान।