मनोज जरांगे।
– फोटो : एएनआई
विस्तार
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के लिए करीब दो हफ्ते का ही समय शेष है। इस बीच, विभिन्न सियासी दलों के नेता और निर्दलीय उम्मीदवार जनता का समर्थन जुटाने के लिए मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे के पास पहुंच रहे हैं। हालांकि, जरांगे ने सोमवार को स्पष्ट किया कि उन्होंने किसी भी राजनीतिक दल या निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन नहीं दिया है। यही नहीं, जरांगे ने अपने कार्यकर्ताओं को आदेश दिया है कि मराठा आरक्षण आंदोलन की तरह से जिन लोगों ने भी नामांकन दाखिल किया था, वह अपना नाम वापस लें।
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता ने कहा, ‘एक समाज के बल पर हम चुनाव नहीं लड़ सकते। मुस्लिम और दलित नेताओं से हमने उम्मीदवारों की सूची मांगी थी। लेकिन वह नहीं मिल पाई। इसलिए हम इस चुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘राजनीति हमारा खानदानी पेशा है। हमने किसी भी दल या नेता को समर्थन नहीं दिया है। जो 400 पार का नारा देते थे, उनका क्या हाल हुआ, आपने देखा है। इसमे कोई शक नहीं है कि मराठा समुदाय का दबदबा कायम रहेगा। आप सभी को चुपचाप जाना है और वोट करके वापस आना है। मराठा समाज ने अपनी लाइन समझ ली है।’ राज्य विधानसभा की 288 सीटों के लिए 20 नवंब को एक चरण में मतदान होगा। मतगणना 23 नवंबर को की जाएगी।
कौन हैं मनोज जरांगे?
आंदोलन की अगुवाई कर रहे मनोज जारांगे पाटिल मूलत: बीड जिले के रहने वाले हैं। मटोरी गांव में जन्मे मनोज ने 12वीं तक पढ़ाई की है। आजीविका के लिए बीड से जालना आ गए। यहां एक होटल में काम करते हुए उन्होंने सामाजिक कार्य शुरू किए। इसी दौरान शिवबा नामक संगठन की स्थापना की। मनोज 2011 से मराठा आरक्षण के आंदोलन में सक्रिय हैं। 2014 में उन्होंने छत्रपति संभाजीनगर में डिविजनल कमिश्नरेट के खिलाफ अपने मार्च से सभी का ध्यान खींचा था। 2015 से 2023 के बीच उन्होंने 30 से ज्यादा आंदोलन किये। 2021 में उन्होंने जालना जिले के साष्टा पिंपलगांव में 90 दिनों की हड़ताल की थी। बताया जाता है कि मनोज जरांगे की आर्थिक स्थिति खराब है, लेकिन उन्होंने खुद को मराठा समुदाय के लिए समर्पित कर दिया है। उनके पास चार एकड़ जमीन थी जिसमें से दो एकड़ जमीन उन्होंने मराठा समुदाय के आंदोलन के लिए बेच दी थी।