Mahakumbh 2025 : महाकुंभ में श्रद्धालु
– फोटो : मेला प्राधिकरण
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चपायल ह केहू, दबायल ह केहू/घंटन से उपर टंगायल ह केहू/केहू हक्का-बक्का केहू लाल-पियर/केहू फनफनात हउवे कीरा के नियर/बप्पा रे बप्पा आ दईया रे दईया/ तनी हम्मे आगे बढ़े देता भईया/मगर केहू दर से टसकले ना टसके/टसकले ना टसके मसकले ना मसके…। मौनी अमावस्या स्नान पर्व पर संगम में मौन डुबकी के लिए उमड़े आस्था के जन सागर के बीच लोक बिंबों विख्यात कवि कैलाश गौतम की ”अमौसा क मेला” कविता की यह पंक्तियां बरबस उन दृश्यों को हूबहू चित्रित कर रही हैंं।