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बॉलीवुड को ‘पहला नशा’, ‘मेरे सामने वाली खिड़की’ जैसे सदाबहार गाने देने वाले मशहूर गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी की ज़िंदगी जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही प्रेरणादायक भी. जानिए कैसे एक यूनानी डॉक्टर बना शायरी का बादशाह, और कैसे उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर से निकलकर मजरूह ने पूरे देश का दिल जीत लिया.
29 नवंबर 1968 में आई फिल्म ‘पडोसन’ (Padosan) का गाना ‘मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद सा टुकड़ा रहता है’ (Mere Samne Wali Khidki Mein) तो आपने खूब सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि इसे लिखने वाले कलमकार कौन थे? अगर नहीं, तो हम आपको उस महान कलमकार के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका घर उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में था. हालांकि, वो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी रचनाएं और यादें आज भी लोगों की जुबान पर हैं. आइए जानते हैं मजरूह सुल्तानपुरी की दिलचस्प कहानी…
मजरूह सुल्तानपुरी के भतीजे मोहम्मद शाहिर खान ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि मजरूह साहब का असली नाम असरार उल हसन खान था, लेकिन पूरी दुनिया उन्हें मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से जानती है. वे मूलतः उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के एक छोटे से गांव गंजेहड़ी के रहने वाले थे. उन्होंने यूनानी चिकित्सा में भी पढ़ाई की, लेकिन शायरी और शेरों में इतना मन लगा कि उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र को छोड़ दिया.
लिख चुके हैं कई गाने
शायद इसी वजह से बॉलीवुड के फिल्म निर्माता एआर कारदार ने उन्हें फिल्मों में गीतकार बनने का मौका दिया. 1946 में उन्होंने फिल्म शाहजहां से शुरुआत की, जिसके बाद उन्होंने ‘जो जीता वही सिकंदर’, ‘पहला नशा’ जैसी कई सुपरहिट फिल्मों के गाने लिखे. मजरूह सुल्तानपुरी ने करीब 350 फिल्मों में 2000 से अधिक गाने लिखे, जिसके चलते उन्हें 1993 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी मिला.
24 मई 2000 को उनका मुंबई में निधन हो गया. लोकल 18 की टीम जब उनके पैतृक गांव गई, तो पाया कि उनके करीबी लोग अभी भी वहीं रहते हैं, जिनमें से एक अब्दुल वदूद खान हैं. उनके अनुसार, मजरूह के परिवार के लोग समय-समय पर यहां आते रहते हैं. गांव वाले भी मजरूह साहब का नाम लेकर गर्व महसूस करते हैं.
उनकी स्मृति में…
सुल्तानपुर में मजरूह की याद में कई संरचनाएं बनाई गई हैं. गंजेहड़ी गांव में उनके नाम पर एक स्कूल है, जिसका शिलान्यास उन्होंने खुद किया था. साथ ही, सड़क के बीचों-बीच एक गेट भी है. गांव वाले चाहते हैं कि मजरूह की यादें हमेशा जिंदा रहें.
राहुल गोयल सीनियर पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया 16 साल से ज्यादा का अनुभव है. साल 2011 में पत्रकारिता का सफर शुरू किया. नवभारत टाइम्स, वॉयस ऑफ लखनऊ, दैनिक भास्कर, पत्रिका जैसे संस्थानों में काम करने का अनुभव. सा…और पढ़ें
राहुल गोयल सीनियर पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया 16 साल से ज्यादा का अनुभव है. साल 2011 में पत्रकारिता का सफर शुरू किया. नवभारत टाइम्स, वॉयस ऑफ लखनऊ, दैनिक भास्कर, पत्रिका जैसे संस्थानों में काम करने का अनुभव. सा… और पढ़ें
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