जंगम साधु का जन्म शिव की जांघ से हुआ है, इसलिए इन्हें जंगम साधु कहा जाता है. इन्हें ‘जंगम जोगी’ भी कहते हैं. जंगम साधुओं का जुड़ाव शैव संप्रदाय से है.
कैसे हुई जंगम साधु की उत्पत्ति – जब भगवान शिव ने ब्रम्हा और विष्णु को विवाह करने की दक्षिणा देनी चाही तो उन्होंने उसे स्वीकार करने से मना कर दिया. तब भगवान शिव ने अपनी जांघ पीटकर जंगम साधुओं को उत्पन्न किया. उन्होंने ही महादेव से दान लेकर विवाह में गीत गाए और दक्षिणा ली.
सिर पर मोरपंख, शिव का नाम, हाथ में विशेष आकर की घंटी, बिंदी और कानों में पार्वती जी के कुंडल. ये पहचान है जंगम साधु की. जंगम साधु इन चीजों से श्रृंगार कर अपने ईष्ट की महिमा का गान करते हैं. इन्हें अखाड़ों के सिंगर भी कहा जाता है.
जंगम साधु सिर्फ साधुओं से ही दान स्वीकार करते हैं. भिक्षा मांगने की इनकी एक विशेष शैली है. संतों से मिले दान के सहारे ही जंगम साधु अपना पेट पालते हैं.
महाकुंभ में जंगम साधु अखाड़ों और शिविरों के सामने खड़े हो कर टल्ली (एक विशेष प्रकार की घण्टी) बजाते हुए और अनोखा शिव भजन गाते हुए दान की आशा करते हैं.
जंगम साधु के वंशजों को ही इस परंपरा को आगे बढ़ाने का अधिकार है. सिर्फ जंगम साधु के पुत्र को ही जंगम साधु बन सकते हैं.
Published at : 22 Jan 2025 11:26 AM (IST)
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