रूसी तेल खरीद पर आपत्ति जताते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बतौर जुर्माना अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की तो यह एकदम बिजली गिरने जैसा ही लगा। हालांकि, भारत दबाव की रणनीति के आगे झुकता नहीं दिख रहा। वैसे भी रूस उसका पुराना रणनीतिक सहयोगी रहा है। यही वजह है कि तीन साल पहले यूक्रेन पर हमले के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूस को सबक सिखाने के लिए उससे तेल खरीदना लगभग पूरी तरह बंद कर दिया, तो भारत ने न केवल खरीद जारी रखी, बल्कि प्रमुख खरीदार बन गया।
रूस को वित्तीय नुकसान पहुंचाने और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दंडित करने के अमेरिका और यूरोप के प्रयासों ने तेल की कीमतों को काफी नीचे ला दिया। भारत ने इसे अच्छा मौका समझा और इसे लपक लिया। भारत और रूस का लंबा व्यापारिक इतिहास रहा है, और ऊर्जा व्यापार इस रिश्ते में आसानी से फिट बैठता है। रूस के पास इसका विशाल भंडार है और भारत को इसके आयात की बहुत ज्यादा जरूरत है। तीन वर्ष पहले यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद उसका तेल भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया। फरवरी, 2022 के शुरू में भारत के कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी केवल 0.2 प्रतिशत थी। यूरोपीय बाजारों के दरवाजे बंद होने के बाद रूस से भारत को समुद्री निर्यात बढ़ने लगा। मई, 2023 तक रूस भारत को प्रतिदिन दो मिलियन बैरल से अधिक कच्चा तेल बेच रहा था, जो उसके आयात का लगभग 45 प्रतिशत था। यह चीन के अलावा किसी भी अन्य देश से अधिक था। भारत पिछले दो वर्षों से लगातार रूसी तेल खरीद रहा है। कीमतों में उतार-चढ़ाव के बावजूद हर वर्ष बिक्री लगभग 275 अरब डॉलर की रही। यहां तक, पारंपरिक रूप से भारत के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता रहे इराक और सऊदी अरब भी दरकिनार हो गए हैं। रूस भारत को उरल्स ग्रेड और ईएसपीओ ग्रेड कच्चा तेल छूट पर बेचता है, जिसकी कीमत ब्रेंट क्रूड से 15 से 20% तक कम रहती है।
दोनों देशों को मिल रहा फायदा
तेल का यह सौदा दोनों देशों के लिए फायदेमंद रहा है। रूस को कच्चा तेल यूरोपीय संघ की ओर से निर्धारित सीमा के तहत 60 डॉलर प्रति बैरल की कीमत पर बेचने का मौका मिला। भारत ने छूट पर खरीदा। उसकी तेल कंपनियों ने कुछ तेल घरेलू खपत के लिए रिफाइन किया। बाकी को डीजल व अन्य उत्पादों के रूप में निर्यात किया। कुछ हिस्सा यूरोप को भी निर्यात किया गया। विदेशी आयात पर कम भुगतान अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा रहा, जिससे भारत की मुद्रा सुरक्षा बढ़ी।
ट्रंप का फैसला अप्रत्याशित
ट्रंप भारत की व्यापार व्यवस्था को लेकर कई तरह की शिकायतें करते रहे हैं, लेकिन रूसी खरीद पर कभी ज्यादा जोर नहीं दिया था। विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे में भारत को लग रहा था कि ट्रंप के दोबारा चुने जाने के बाद उसे राहत रहेगी। रूस से दूरी का बाइडन व अन्य नेताओं का दबाव कम हो जाएगा। पर, ट्रंप के फैसले ने चौंका दिया।
एकतरफा सौदे के जाल से बचना एक सफलता
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि टैरिफ पर ट्रंप प्रशासन के साथ चार महीनों की बातचीत के दौरान रूसी तेल का मुद्दा नहीं उठा। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव भारत के रूसी तेल खरीदने पर ट्रंप की तरफ से की गई आलोचना को खारिज कर दिया। साथ ही कहा, रूसी तेल पर छूट ने वैश्विक अस्थिरता के दौरान भारत की मुद्रास्फीति नियंत्रित रखने में मदद की। उन्होंने दंडात्मक शुल्क को एक और सौदेबाजी की रणनीति बताया। साथ ही कहा, भारत एकतरफा सौदे के जाल से बच गया है, और यह एक सफलता है।
अमेरिका को कितना निर्यात
भारत, अमेरिका को सीधे कच्चा तेल नहीं, बल्कि रिफाइंड उत्पाद निर्यात करता है। यूएस एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (आईए ) के अनुसार भारत ने 2024 में अमेरिका को लगभग 2.5 मिलियन मीट्रिक टन रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पाद भेजे, जो उसके कुल रिफाइंड उत्पाद निर्यात का लगभग 3 से 5% था। इनमें मुख्यतः डीजल और एटीएफ शामिल थे। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका भले ही रूसी तेल पर सीधे प्रतिबंध लगाए हुए है, लेकिन वह भारत से आने वाले परोक्ष रूप से रूसी ऑरिजिन उत्पादों को रोक नहीं रहा है, क्योंकि वे तकनीकी रूप से रिफाइंड इन इंडिया माने जाते हैं।
60-70 मिलियन टन रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात
भारत प्रमुख रिफाइनिंग हब है, जहां रिलायंस (जामनगर), नायरा, आईओसीएल, बीपीसीएल और एचपीसीएल जैसे प्रतिष्ठान उच्च क्षमता वाली रिफाइनरियों का संचालन करते हैं। भारत 2024-25 में कुल 60-70 मिलियन टन रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात कर रहा है। इनमें से बड़ी मात्रा में डीजल, पेट्रोल और एयर टरबाइन फ्यूल (एटीएफ ) शामिल हैं। विशेषज्ञों के अनुसार रूस से सस्ते कच्चे तेल को रिफाइन कर भारत पश्चिमी देशों को नॉन-रशियन ऑरिजिन के रूप में भेजता है, जो कि मौजूदा वैश्विक नियमों के अंतर्गत कानूनी है। रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी विशेष रूप से जेट फ्यूल और यूरो-6 ग्रेड डीजल के लिए मशहूर है, जिसकी मांग यूरोपीय संघ और अमेरिका में बनी हुई है।
एशिया बना रूस का नया ऊर्जा केंद्र
यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद एशियाई देश खासकर भारत और चीन, रूस के प्रमुख ऊर्जा ग्राहक बन गए हैं। वर्ष 2021 में जहां यूरोपीय संघ रूस के तेल निर्यात का लगभग 50% लेता था, वहीं 2024-25 तक यह आंकड़ा 10% से भी नीचे आ गया है। और चीन मिलकर रूस के कुल कच्चा तेल निर्यात का लगभग 70–75% खपत कर रहे हैं।