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सुप्रीम कोर्ट – फोटो : ANI
विस्तार
कोयला घोटाले मामले में अब नया मोड़ सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश केवी विश्वनाथन ने गुरुवार को सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। उनका कहना है कि वह इस मामले में वकील के रूप में पेश हो चुके हैं।
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शीर्ष अदालत के आदेश में संशोधन की मांग
इन याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेशों में बदलाव की मांग की जा रही है, जिनके तहत हाईकोर्ट को कोयला ब्लॉक आवंटन से जुड़े आपराधिक मामलों में ट्रायल कोर्ट के आदेशों के खिलाफ अपील सुनने से रोका गया था।
एक नई पीठ होगी गठित
मुख्य न्यायधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायाधीश संजय कुमार और विश्वनाथन शामिल थे। सीजेआई ने कहा कि एक नई पीठ गठित की जाएगी, जो 10 फरवरी से शुरू हो रहे सप्ताह में मामलों की सुनवाई करेगी।
एसएलपी दायर की गई हैं: खन्ना
पीठ ने अपीलों की सीमा और पहले के आदेशों के प्रभाव को लेकर विचार किया, जिसमें हाईकोर्ट को इन मामलों में हस्तक्षेप करने से रोका गया था। सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को 2014 और 2017 के फैसलों से जुड़े सभी लंबित याचिकाओं का संकलन तैयार करने का आदेश दिया गया है। सीजेआई खन्ना ने कहा, ‘रजिस्ट्री उन सभी मामलों का संकलन तैयार करेगी, जिनमें 2014 और 2017 के फैसलों के संदर्भ में विशेष अनुमति याचिकाएं (एसएलपी) दायर की गई हैं।’
शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि नई पीठ न्यायमूर्ति विश्वनाथन को बाहर रखेगी और इसका गठन 10 फरवरी 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में होगा। अहम सवाल यह होगा कि क्या मुकदमे पर रोक लगाने की मांग करने वाला सीआरपीसी की प्रक्रिया के अनुसार नहीं चलेगा बल्कि इसके बजाय सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करेगा।
क्या बोले विश्वनाथन?
न्यायाधीश विश्वनाथन ने शुरुआत में कहा, ‘मैं कॉमन कॉज मामले में था। यह मामला ईडी का था, लेकिन फिर भी…।’
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में 1993 से 2010 के बीच केंद्र द्वारा आवंटित 214 कोयला ब्लॉकों को रद्द कर दिया था और विशेष सीबीआई जज से ट्रायल कराने का आदेश दिया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि ट्रायल या जांच पर रोक लगाने के लिए याचिका केवल सुप्रीम कोर्ट में ही दायर की जा सकती है, जिससे अन्य कोर्टों को इस तरह की याचिकाएं स्वीकार करने से रोक दिया गया था।
पीठ ने निर्देश दिया था कि जांच या सुनवाई पर रोक लगाने या बाधा डालने के लिए कोई भी प्रार्थना केवल सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष की जा सकती है, जिससे अन्य अदालतों को ऐसी याचिकाओं पर विचार करने से प्रभावी रूप से रोक दिया गया।