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महाकुंभ का आयोजन। – फोटो : amar ujala
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धार्मिक आयोजन कैसे किसी प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनते हैं, इसका साक्षात प्रमाण है प्रयागराज महाकुंभ। लगभग 40 करोड़ श्रद्धालुओं के स्वागत को तैयार महाकुंभ में सभी 75 जिलों के कारीगरों से लेकर उद्यमी तक प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े हैं। सिर्फ 45 दिन में 35 देशों के बराबर आबादी आकर्षित करने वाला यह महा आयोजन उद्योगों के लिए दिवाली से कम नहीं है। अकेले 10 हजार करोड़ रुपये के ऑर्डर छोटे कारीगरों और छोटी इकाइयों के पास हैं।
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महाकुंभ में राज्य सरकार का 7,500 करोड़ रुपये का बजट है। इस खर्च से करीब 25 हजार करोड़ रुपये के राजस्व और दो लाख करोड़ रुपये के कारोबार का अनुमान है। महाकुंभ ने जूता-चप्पल सिलने वाले कारीगर से लेकर हेलीकॉप्टर चलाने वाली कंपनी तक के लिए कमाई के रास्ते खोले हैं।
इसके अतिरिक्त किराने के सामान से 4000 करोड़ रुपये, खाद्य तेल से 2500 करोड़, सब्जियों से 2200 करोड़, बिस्तर, गद्दे, चादर, तकिया व कंबल आदि से 900 करोड़, दूध व अन्य डेयरी उत्पाद से 4200 करोड़, हॉस्पिटैलिटी से 2500 करोड़ और अन्य क्षेत्रों से कम से कम 3000 करोड़ रुपये की कमाई होगी। कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के यूपी प्रमुख महेंद्र गोयल के मुताबिक महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं की बुनियादी जरूरत से जुड़ी चीजों से ही 17,310 करोड़ रुपये का राजस्व मिलेगा।
स्मॉल इंडस्ट्रीज एंड मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के मुताबिक पूजा सामग्री, कपड़े, स्मृति चिह्नों की खरीदारी में हस्तशिल्प, रेडीमेड और खाद्य पदार्थों का व्यापार फल-फूल रहा है। इनका लाभ हर जिले को हस्तशिल्पियों को मिल रहा है। तो कपड़े में गौतमबुद्धनगर, कानपुर, गाजियाबाद, बनारस, मिर्जापुर और उन्नाव के कारीगरों व उद्यमियों को सीधा लाभ मिला है।