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फ्री वाले वादों का क्या होगा असर। – फोटो : अमर उजाला
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार अपने चरम पर है। राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए वादों की झड़ी लगा रहे हैं। हर दल फ्री की रेवड़ी बांटने में दूसरे दल से आगे निकलने की होड़ में है। दिल्ली चुनाव में बंट रही फ्री की रेवड़ी के बीच आखिर जनता किसे चुनेगी? आखिर ये फ्री की रेवड़ी की संस्कृति कहां जाकर रुकेगी? इसी मुद्दे पर इस हफ्ते ‘खबरों के खिलाड़ी’ में बात हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, राकेश शुक्ल और अवधेश कुमार मौजूद रहे।
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पूर्णिमा त्रिपाठी: मुझे इस बात की खुशी है कि आखिरकार महिलाएं राजनीतिक दलों की स्कीम ऑफ थिंग्स में आ गई हैं। हमने ये फॉर्मूला पहले भी देखा। नीतीश कुमार की सफलता का बड़ा कारण महिलाओं को माना जाता है। इसके बाद मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी हमने इसे देखा। महिलाओं का एक बड़ा तबका अरविंद केजरीवाल के पाले में रहा है। उसी में सेंध लगाने की कोशिश भाजपा और कांग्रेस कर रहे हैं। महिलाओं को खुश करो और उनका वोट अपने पाले में कर लो यही सोचकर सभी पार्टियां रणनीति बना रही हैं। अब देखना होगा कि बाजी कौन मारेगा।
रामकृपाल सिंह: अब तीनों पार्टियों का एक ही एजेंडा है। टैक्स पेयर का पैसा है और तीनों पार्टियों ने एक लेवल प्लेइंग फील्ड बना दी है। तीनों दुकानें खुली हैं और उस पर लिखा है तुम हमें वोट दो, हम तुम्हें नोट देंगे। पहली बार ऐसा हुआ है कि तीनों पार्टियों ने वो दुकान खोल ली है जिसमें तीनों एक से वादे हैं। ऐसे में अब इसका टेस्ट होगा कि किसकी विश्वस्नीयता ज्यादा है। जिसकी विश्वस्नीयता ज्यादा होगी वो जीतेगा। मेरा कहना है कि यह राजनीति की गंदगी की पराकाष्ठा है।
विनोद अग्निहोत्री: ये रेवड़ी का मौसम है और इसकी चैंपियन आम आदमी पार्टी ही रही है। पहले ये कहा जाता था कि हम गरीबों के लिए ये करेंगे या दलितों के लिए ये करेंगे। अब वो वर्ग बदलकर महिलाएं हो गया है। दक्षिण से लेकर उत्तर तक कई राज्यों में इस तरह की योजानाएं शुरू हुई हैं। लेकिन, इसकी उल्टी गिनती भी शुरू हो गई है। क्योंकि राज्यों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।
राकेश शुक्ल: इस वक्त सभी सरकारें संविधान की अवहेलना करते हुए फ्रीबीज को बढ़ावा दे रही हैं। दिल्ली में तीनों पार्टियों के बीच फ्रीबीज देने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। इस बार कांग्रेस आम आदमी पार्टी को कड़ी चुनौती दे रही है। 2015 और 2020 में कांग्रेस ने पूरी तरह समर्पण कर दिया था। इस बार अगर कांग्रेस इसी तरह लड़ती है तो आप की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
अवधेश कुमार: जिन्होंने व्यवहारिक राजनीति की है उनकी भाषा गंदी हो ही नहीं सकती हैं। जिन लोगों के साथ हम खड़े होकर सार्वजिनक रूप से बात नहीं की जा सकती थी उनके साथ अब टीवी चैनलों पर डिबेट करनी पड़ती है। जिनको आइकन नहीं होना चाहिए उनको हम लोगों ने आइकन बना लिया है। कोई व्यक्ति किसी के पिता पर टिप्पणी करता है और पार्टियां उस पर कार्रवाई तक नहीं करती हैं। क्या पार्टियों के लिए इस तरह की बात करने वाले नेता अपरिहार्य बन गए हैं। जहां तक मुफ्तखोरी की बात है यह उस समाज को आलसी, कामचोर और भ्रष्ट बनाता है